हनुमानजी के पांच सगे भाई भी थे, जानिए उनके नाम ?
हनुमानजी हिन्दू धर्म में 33 करोड़ देवी-देवता होने की बात कही जाती है, दरअसल वह 33 करोड़ नहीं वरन् 33 कोटि देवी-देवता हैं। यानि कि उन्हीं देवी-देवताओं के विभिन्न रूप एवं अवतार हैं। अब स्वयं देव हों या उनके कोई मानव रूपी अवतार, सभी से जुड़े तथ्य एवं पौराणिक वर्णन काफी दिलचस्प हैं।
रोचक जानकारी आज हम हनुमान जी के बारे में आपको कुछ रोचक जानकारी देंगे। बजरंगबली, पवन पुत्र, अंजनी पुत्र, राम भक्त, ऐसे ही कई नामों से पुकारा जाता है हनुमान जी को। यह बात शायद सभी जानते हैं लेकिन आगे बताए जा रहे कुछ तथ्य हर कोई नहीं जानता।
भगवान शिव का अवतार सबसे पहली बात, हनुमान जी को भगवान शिव का ही अवतार माना जाता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार अंजना नाम की एक अप्सरा को एक ऋषि द्वारा यह श्राप दिया गया कि जब भी वह प्रेम बंधन में पड़ेगी, उसका चेहरा एक वानर की भांति हो जाएगा। लेकिन इस श्राप से मुक्त होने के लिए भगवान ब्रह्मा ने अंजना की मदद की।
अंजनी पुत्र उनकी मदद से अंजना ने धरती पर स्त्री रूप में जन्म लिया, यहां उसे वानरों के राजा केसरी से प्रेम हुआ। विवाह पश्चात श्राप से मुक्ति के लिए अंजना ने भगवान शिव की तपस्या आरंभ कर दी। तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें वरदान मांगने को कहा। अंजना ने भगवान शिव को कहा कि साधु के श्राप से मुक्ति पाने के लिए उन्हें शिव के अवतार को जन्म देना है, इसलिए शिव बालक के रूप में उनकी कोख से जन्म लें।
शिव आराधना ‘तथास्तु’ कहकर शिव अंतर्ध्यान हो गए, इस घटना के बाद एक दिन अंजना शिव की आराधना कर रही थीं और इसी दौरान किसी दूसरे कोने में महाराज दशरथ, अपनी तीन रानियों के साथ पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए यज्ञ कर रहे थे।
अंजना के हाथ में गिरा प्रसाद अग्नि देव ने उन्हें दैवीय ‘पायस’ दिया जिसे तीनों रानियों को खिलाना था लेकिन इस दौरान एक चमत्कारिक घटना हुई, एक पक्षी उस पायस की कटोरी में थोड़ा सा पायस अपने पंजों में फंसाकर ले गया और तपस्या में लीन अंजना के हाथ में गिरा दिया।
शिव का प्रसाद अंजना ने शिव का प्रसाद समझकर उसे ग्रहण कर लिया और कुछ ही समय बाद उन्होंने वानर मुख वाले एक बालक को जन्म दिया। बहुत कम लोग जानते हैं कि इस बालक का नाम मारूति था, जिसे बाद में ‘हनुमान’ के नाम से जाना गया।
अन्य कथा हनुमान जी से जुड़ा एक और तथ्य काफी रोचक है। एक कथा के अनुसार एक बार हनुमान जी ने श्रीराम की याद में अपने पूरे शरीर पर सिंदूर भी लगाया था। यह इसलिए क्योंकि एक बार उन्होंने माता सीता को सिंदूर लगाते हुए देख लिया। जब उन्होंने सिंदूर लगाने का कारण पूछा तो सीता जी ने बताया कि यह उनका श्रीराम के प्रति प्रेम एवं सम्मान का प्रतीक है।
लाल हनुमान बस यह जानने की देरी ही थी कि हनुमान जी ने अपने पूरे शरीर पर सिंदूर लगा लिया, यह दर्शाने के लिए कि वे भी श्रीराम से अति प्रेम करते हैं। इस घटना के बाद हनुमान का ‘लाल हनुमान’ रूप भी काफी प्रचलित हुआ।
हनुमान शब्द का संस्कृत अर्थ हनुमान जी से जुड़े कुछ छोटे-छोटे तथ्य हैं, जो काफी कम लोग जानते हैं। जैसे कि उनका नाम, ‘हनुमान’ शब्द का यदि संस्कृत अर्थ निकाला जाए तो इसका मतलब होता है जिसका मुख या जबड़ा बिगड़ा हुआ हो।
हनुमान और भीम अगली बात जो हम बताने जा रहे हैं उसे जान आप वाकई हैरत में पड़ने वाले हैं। महाभारत काल में पाण्डु पुत्र राजकुमार भीम अपने बल के लिए जाने जाते थे। कहते हैं वे हनुमान जी के ही भाई थे।
ब्रह्मचारी हनुमान इसके अलावा जिन हनुमान जी को ब्रह्मचारी कहा जाता है, उनकी शादी भी हुई थी। उनके पुत्र का नाम मकरध्वज है। लेकिन इसके अलावा उनके पांच भाई भी थे, क्या आप जानते हैं?
हनुमान जी के पांच सगे भाई जी हां... हनुमान जी के पांच सगे भाई थे और वो पांचों ही विवाहित थे। यह कोई कहानी या मात्र मनोरंजन का साधन बनाने के लिए हवा में बताई गई बात नहीं है, बल्कि सच्चाई है। हनुमान जी के पांच सगे भाई थे, इस बात का उल्लेख 'ब्रह्मांडपुराण' में मिलता है।
ब्रह्मांडपुराण के अनुसार इस पुराण में भगवान हनुमान के पिता केसरी एवं उनके वंश का वर्णन शामिल है। बड़ी बात यह है कि पांचों भाइयों में बजरंगबली सबसे बड़े थे। यानी हनुमानजी को शामिल करने पर वानर राज केसरी के 6 पुत्र थे।
सबसे बड़े थे बजरंगबली बजरंगबली के बाद क्रमशः मतिमान, श्रुतिमान, केतुमान, गतिमान, धृतिमान थे। इन सभी के संतान भी थीं, जिससे इनका वंश वर्षों तक चला। हनुमानजी के बारे जानकारी वैसे तो रामायण, श्रीरामचरितमानस, महाभारत और भी कई हिंदू धर्म ग्रंथों में मिलती है।
लेकिन उनके बारे में कुछ ऐसी भी बातें हैं जो बहुत कम धर्म ग्रंथों में उपलब्ध है। 'ब्रह्मांडपुराण' उन्हीं में से एक है। पिता केसरी का वंशज इस महान ग्रंथ में हनुमान जी के जीवन एवं उनसे जुड़ी कई बातें हैं। इसी ग्रंथ में उल्लेख है कि बजरंगबली के पिता केसरी ने अंजना से विवाह किया था।
साभार~ पं देवशर्मा
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