ये महुआ फूल किसी रसगुल्लों से कम नही है। चलो एक पहेली बूझौ- "बाप बेटी को एकई नाम महतारी को कछु और" क्योंकि
Friday, April 5, 2024
महुआ
अकर्मण्यता से उपजा पलायनवादी यथार्थ,संघर्ष से होता ऊंचा मनोबल
(जिजीविषा ही सफलता का पर्याय)
अकर्मण्यता एक बड़ी शारीरिक,मानसिक व्याधि और दशा है, यह जीवन को निर्रथक बनाती है। इस अवस्था को तत्काल त्यागना चाहिए,और अपने जीवन के संघर्ष के लिए तैयार रखना चाहिए। मन ही मन यदि आपने किसी कठिन कार्य को करने का संकल्प ले लिया तो निरंतर जिजीविषा और संयम के साथ संघर्ष हर बड़ी जीत और सफलता के उत्तम मार्ग हैं। वैसे जीवन में दुष्कर, कठिन कार्य को पहले चुनना चाहिए जिससे पूरी शक्ति एवं उर्जा लगाकर हम उसे प्राप्त कर सकेl कठिन कार्य से घबराकर उससे पलायन करना निराशा को जन्म देता हैl निराशा से बढ़कर कोई अवरोध नहीं अतः निराशा, हताशा को त्यागें और ऊर्जा उत्साह के साथ आगे बढ़े, सफलता आपके कदमों पर होगी। हर बड़ा व्यक्ति जो हमें समाज से अलग हटकर खड़ा दिखाई देता हैl जिसे हम विलक्षण मानते और प्रतिभा संपन्न मानते हैं और आज के संदर्भ में हम उसे सेलिब्रिटी कहते हैं तो निसंदेह उसकी इस सफलता के पीछे अनवरत श्रम, अदम्य मानसिक शक्ति और संयम छुपा होता हैl बड़ी सफलता प्राप्त करने का कोई सरल उपाय या शॉर्टकट नहीं होता है। विपरीत परिस्थितियों में मनुष्य की मानसिक दृढ़ता एवं संकल्पित कठिन श्रम ही सफलता के रास्ते खोलते हैं।यूं तो हर इंसान के जीवन में विशेषताएं, मान्यताएं, प्रतिबद्धताओं और आकांक्षाएं होती हैंl सभी लोग मूलभूत आवश्यकताओं के साथ साथ सामाजिकता , प्रसिद्धि और प्रतिष्ठा जैसी उच्च स्तरीय आवश्यकताओं की पूर्ति करना चाहते हैंl मानव की स्वाभाविक और अदम्य इच्छा की पूर्ति के संपूर्ण जीवन और उसके अस्तित्व के लिए अत्यंत आवश्यक है किंतु व्यक्ति की इच्छा,आकांक्षा सफलता उस उसके मूल्यों,सिद्धांतों और आदर्शों की कीमत पर कतई नहीं होनी चाहिए l यदि व्यक्ति की आकांक्षा,सफलता और इच्छा उसकी अदम्य इच्छा, भूख और मूल्यों को समाविष्ट ना करते हुए दूसरी दिशा में जाती हो तो ऐसे में उसकी सफलता पूरे मानव समाज और मानवता के लिए संकट का कारण भी बन सकती हैl जिस तरह एक वैज्ञानिक मेहनत, लगन, प्रयोगशाला में मानवी संविधान मूल्यों से ओतप्रोत मानव कल्याण के उपकरण न बनाकर जैविक व रासायनिक हथियार बनाकर व्यापक नरसंहार जैसे अमानवीय अविष्कार को मूर्त रूप दे, तो यह समाज के लिए खतरनाक हो सकता हैl यही वजह है की सफलता का नक्शा और इच्छा के पीछे माननीय मूल्यों का होना अत्यंत आवश्यक भी हैl
मूल्य, सिद्धांत और नैतिकता जीवन के लक्ष्य और उसके क्रियान्वयन में सर्वाधिक संवेदनशील एवं महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैंl सफलता की धारणा केवल स्थापित मापदंड न होकर मानवीय मूल्यों से जुड़ा होकर मानव कल्याण के लिए भी होना चाहिएlइसमें कोई संदेह नहीं की विश्व भर की सभी सभ्यताओं, संस्कृतियों और धर्मों में अहिंसा, सत्य ,करुणा, सेवा, दया और विश्व बंधुत्व की भावना की निर्विवाद उपस्थिति दिखाई देती हैl और वैश्विक विकास की अवधारणा भी इन्हीं बिंदुओं पर रखकर तय की जाती हैl भारत में प्राचीन काल से ही मूल्यों की प्रतिबद्धता की परंपरा चली आ रही हैlऋषि-मुनियों ने तो यहां तक कहा है कि जिसका चरित्र तथा माननीय आदर्श चला गया वह व्यक्ति, मृतक लाश की तरह हो जाता है। भारतीय संस्कृति में आदर्शों तथा मूल्य के पोषक उदाहरणों की अंतहीन सूची है जिनमें कबीर, रैदास, संत,ज्ञानेश्वर तुकाराम,मोइनुद्दीन चिश्ती, निजामुद्दीन औलिया, रहीम,खुसरो, गांधी,नेहरू, टैगोर, सुभाष, विवेकानंद जैसे महान लोग सिद्धांतों की प्रतिबद्धता को अपने जीवन की सफलता मानकर अपने जीवन को समाज को सौंप दिया था।परिणाम स्वरूप व्यक्ति को महज सफलता का पुजारी ना बन कर मूल्यों के प्रति प्रतिबंध होने का प्रयास करना चाहिए। ताकि तनिक सफलता के स्थान पर चिरस्थाई एवं समाज उपयोगी सफलता प्राप्त हो सके। वर्तमान में यह स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है कि व्यक्ति स्वाद तथा सफलता के लिए अक्सर अपने मूल्यों को तिलांजलि दे देता है। वर्तमान सुख एवं लालच चिरस्थाई सफलता के सामने महत्वपूर्ण एवं प्राथमिक हो जाता है ।आज मनुष्य तत्काल एवं अस्थाई सफलता के पीछे माननीय मूल्यों प्रतिबद्धताओं को किनारे कर उस मरीचिका की तरफ दौड़ रहा है जो अत्यंत अस्थाई एवं पानी के बुलबुले की तरह है। और इससे न तो कोई इतिहास बनता है और ना ही कोई प्रतिमान ही स्थापित होता है। पानी का पतला रेला नदी का रूप नहीं ले सकता। उसी तरह बिना मूल्यों की सफलता स्थाई नहीं होती है। राजनीति तथा प्रशासन में मूल्यों सिद्धांतों की तो ज्यादा आवश्यकता महसूस की जाती है। क्योंकि राष्ट्र तथा नीति निर्देशक तत्वों को संचालन की दिशा देने के लिए मानवीय संवेदना, मूल्य और सिद्धांतों की अत्यंत आवश्यकता होती है। अन्यथा समाज दिग्भ्रमित होकर बिखरने के कगार पर पहुंच जाता है। राष्ट्र विखंडित होने की स्थिति में आ जाता है। मूल्य विहीन समाज अपने अधिकारों के दुरुपयोग तथा कर्तव्य के प्रति लापरवाही तथा उदासीनता के चलते समाज को सोचनीय स्तर पर लाकर खड़ा कर देता है। सफलता तब ही शाश्वत तथा स्थाई हो सकती है जब इसमें जीवन के मूल्यों और सिद्धांतों का समावेश होता है। वही देश और राष्ट्र चिरस्थाई तथा लंबे समय तक स्वतंत्र रह सकता है, जिसके शासक एवं प्रजा अपने संपूर्ण कार्य मूल्यों, उसूलों और नैतिक प्रतिबद्धता के मार्ग पर चलकर वैश्विक देशों से अपने संबंध निर्मल तथा सैद्धांतिक बनाकर रखता हैअन्यथा उस राष्ट्र को विखंडित और पराधीन होने से कोई नहीं बचा सकताl
संजीव ठाकुर,(वर्ल्ड रिकॉर्ड धारक लेखक) स्तम्भकार, चिंतक , टिप्पणीकार,रायपुर छत्तीसगढ़,
शराब की पार्टी
सूरज सुरेश रमन तीनों दोस्तों ने अलग से समीर को पार्टी करने के लिए कहा था देख समीर तेरे जन्मदिन पर शराब की बोतले खुलेंगी जमकर डांस होगा सूरज के दो फ्लैट है एक फ्लैट खाली पड़ा है सूरज वही पार्टी की व्यवस्था कर देगा दोपहर 12:00 बजे पार्टी शुरू करेंगे शाम तक पार्टी चलेगी यह बात समीर को दो दिन पहले ही सुरेश ने बता दी थी
Thursday, April 4, 2024
देश में विदेश से ड्रग की तस्करी बनी बड़ी समस्याl युवा वर्ग की बड़ी जनसंख्या नशे की गिरफ्त में बर्बाद
( ड्रग से बृहद शारीरिक,आर्थिक क्षति)
नशीले पदार्थ अपराधिक गतिविधियों के लिए शासन, प्रशासन तथा पुलिस के लिए एक गंभीर चुनौती बन हुआ है|देश में लगातार हो रही ड्रग्स की सप्लाई ने देशभर में अपराधों का इजाफा कर दिया है| नशीले पदार्थों की अंतरराष्ट्रीय, अंतर राज्यीय तस्करी देश तथा विश्व के लिए एक बड़ा सिरदर्द बनी हुई है| यह चुनौती इसलिए भी है कि पिछले वर्ष में अपराधियों ने सूखे नशे का सेवन कर अपराध की वारदातें की हैं, नशे की लत में आकर अपराधियों में महानगरों मुंबई, कोलकाता, हैदराबाद, दिल्ली, बेंगलुरु, चेन्नई में लगातार बलात्कार, लूट, डकैती,और राहगीरों की हत्या को जन्म दिया है| दूसरी तरफ सूखे नशे की लत में स्कूल और कॉलेज के युवा तथा बच्चे अपना भविष्य खराब करने पर आमादा है| पिछले कुछ माह में मुंबई नारकोटिक्स इकाई ने ताबड़तोड़ छापेमारी कर बड़ी मात्रा में चरस, कोकीन, गांजा, स्मैक की बड़ी तादाद में जप्त कर कई नामचीन अभिनेता, अभिनेत्रियों को गिरफ्तार कर प्रकरण न्यायालय के हवाले किया है| दूसरी तरफ दिल्ली,बेंगलुरु, कोलकाता में भी पुलिस प्रशासन द्वारा सीधे कड़ी कार्रवाई की हैं|वर्तमान में
शराब तो सामाजिक बुराई बना ही हुआ है| साथ-साथ सूखा नशा भी समाज के लिए गंभीर चुनौती बना हुआ है, सुखे नशे के मामले में केंद्र के सर्वोच्च नेतृत्व में यानी प्रधानमंत्री ने भी गंभीरता पूर्वक इसे रोकने के लिए चिंता जताई है देश में न सिर्फ ड्रग्स के नशे का इस्तेमाल किया जा रहा है बल्कि बड़े पैमाने पर इसकी तस्करी कर अवैध कारोबार भी किया जा रहा है ड्रग्स का नशा सामाजिक विडंबना बना हुआ है| तब देश में नए वर्ष के आगमन के पूर्व बड़े-बड़े आलीशान होटलों मैं सूखे नशे की पार्टियां आयोजित करने की तैयारी कर ली है, ऐसे में पुलिस के केंद्र सरकार के तथा राज्य सरकार के आला अधिकारी इसे रोकने के लिए हर संभव प्रयास की रणनीति बनाने में जुट गए है और शासन तथा पुलिस प्रशासन अपना पूरा ध्यान सूखे नसे को प्रतिबंधित करने में लगे हुए हैं, मूलतः मुंबई गोवा और पाकिस्तानी सरहद से लगे क्षेत्र और राज्य से सूखे नशे पदार्थों की आवक सभी राज्यों में होती है| निसंदेह इसे गंभीर षड्यंत्र के रूप में लिया जाना चाहिए| मुंबई सूखे नशे का एक बड़ा केंद्र बन चुका है, सुशांत सिंह राजपूत के आत्महत्या प्रकरण को लेकर जब पुलिस के आला अधिकारी को नशीले पदार्थों रेकेट हाथ लगा तब राज्य तथा केंद्र के कान खड़े हो गए और तब से पूरे देश में ताबड़तोड़ नशे के विरोध में कार्रवाई की जाने लगी और इसी तारतम्य में देश को यह बात समझ में आई कि सूखे नशे की लत में बड़े शहरों के तमाम पूंजीपति नशे के आदी हो चुके परिस्थितियां बहुत गंभीर एवं चुनौतीपूर्ण है, नए वर्ष के आगमन की सेलिब्रेशन तमाम नशीले पदार्थ की सप्लाई करने वाले तस्कर अपनी तैयारी में जुट गए हैं| देश के सभी राज्यों में नशीले पदार्थों के विरोध में केंद्र के निर्देशन पर लगातार कार्रवाई की जा रही है और युवा वर्ग बच्चों को सोशल मीडिया के द्वारा भी इसकी बुराई के संबंध में लगातार अवगत कराया जा रहा है एवं इस बुराई से दूर रहने का आह्वान किया गया है, देश के बड़े-बड़े रिसोर्ट, जंगल के पिकनिक स्पॉट, देश की मुख्य सड़कों के आसपास ढाबों के संचालकों पर भी नजर रखने की योजना को मूर्त रूप दिया जाना है ताकि अपराधों में कमी आ सके ,शराब से तो अपराध होते ही हैं पर सूखे नशे से अपराधिक ज्यादा उम्र हिंसक और मस्तिष्क शुन्य हो जाते ऐसे में अपराध करने में उन्हें कोई हिचक नहीं होती, और इस तरह वे नशे में अपराधिक कृत्य करने से नहीं चूकते |केंद्र तथा राज्य प्रशासन की चिंता इस बात के लिए तो है ही कि इससे अपराध की संख्या में काफी वृद्धि हुई है पर साथ में इसके तस्करों द्वारा की जा रही ड्रग्स की तस्करी पर एक गंभीर चुनौती बनी हुई है|अंतरराष्ट्रीय सीमा से आने वाला ड्रग्स शारीरिक रूप से भी काफी नुकसानदेह होता है अंतरराष्ट्रीय तथा राष्ट्रीय नशीले पदार्थों की तस्करी को रोकने का एक राष्ट्रीय स्तर पर योजना बनाकर उसे रोकने का प्रयास किया जा रहा है, जितने व्यक्ति नशा करके अपराध करने के लिए दोषी हैं |उससे ज्यादा दोषी नशीले पदार्थों के तस्करी करने वाले भी है, तस्कर समूह को चिन्हित कर उस पर बड़ी कार्रवाई करने की देश को गंभीर आवश्यकता है, देश में शराब जहां ग्रामीण क्षेत्रों में एक बड़ी बुराई है उससे ग्रामीण आमजन को आर्थिक नुकसान के साथ-साथ शारीरिक नुकसान भी बहुत बड़ा होता है, इसी के साथ शहरी क्षेत्रों में खासकर बड़े शहरों में सुखा नशा एक बडी सामाजिक बीमारी की तरह अत्यंत गंभीर चुनौती बन गई है, इसे रोकने के हर संभव प्रयास किए जाने चाहिए तभी इस सामाजिक गंभीर समस्या पर कुछ राहत और निदान मिल सकता है|
संजीव ठाकुर, (वर्ल्ड रिकॉर्ड धारक लेखक) स्तंभकार,चिंतक, कथाकार, रायपुर छत्तीसगढ़
अच्छी नियत साफ इरादे रखिए जनाब
जिंदगी के हर पल चमकदार नहीं होते,
जिंदगी में हर पल चमत्कार नहीं होते।
ईमान और पसीने से बनती है जिंदगी,
बेईमान कभी भी इज्जतदार नहीं होते।
अच्छी नियत और साफ इरादे रखिए,
आस्तीन के सांप वफादार नहीं होते ।
गर नमक खाया वतन का तो अदा कर,
नमक हराम कभी अच्छे पहरेदार नहीं होते
जख्म पर अपने मरहम की उम्मीद मत कर,
हर उठे हुए हाथ मददगार नहीं होते l
जमाने की चकाचौंध से फिसल मत जाना संजीव,
सफेद लिबास में हर कोई ईमानदार नहीं होतेl
संजीव ठाकुर, रायपुर छत्तीसगढ़, 9009 415 415।
Wednesday, April 3, 2024
अतीत का दर्द
कभी नेनुँआ टाटी पे चढ़ के रसोई के दो महीने का इंतज़ाम कर देता था। कभी खपरैल की छत पे चढ़ी लौकी महीना भर निकाल देती थी, कभी बैसाख में दाल और भतुआ से बनाई सूखी कोहड़ौरी, सावन भादो की सब्जी का खर्चा निकाल देती थी!
Tuesday, April 2, 2024
क्यों नहीं काटतीं कोहड़ा महिलाएं
इस बार बाजार से सब्जी के साथ कोहड़ा भी आ गया था। लगभग दो किलो का साबूत। इसमें दो दिन सब्जी बन जाती। शाम को उसे काटने के पहले दिव्या ने कहा-पापा काट देते तो सब्जी बना देती। मैंने चाकू से उसे आधा काट दिया। उसने इसी के साथ ही सवाल भी किया कि महिलाएं कद्दू क्यों नहीं काटती़। ऐसा हमेशा से होता आ रहा था कि जब भी पूरा कद्दू आता कोई पुरुष ही उसे पहला चाकू मारता और बाद में महिलाएं उसे काटतीं। मेरी मां भी ऐसा ही करती थीं और ऐसा ही अभी तक चल रहा है। मैंने भी एक बार मां से पूछा था कि तुम इसे क्यों नहीं काटती तो उसने जवाब दिया कि कद्दू बेटा होता है तो उसे कैसे काटा जाए।मैने पूछा कि तो क्या अन्य सब्जियों बेटी होती हैं जिन्हें कोई भी काट सकता है। वह कोई जवाब नहीं दे सकी। उसका यह जवाब मुझे संतुष्ट नहीं कर सका। कुछ अन्य लोगों से भी पूछा लेकिन कोई भी उसका सही जवाब नहीं दे पाया। आज यही प्रश्न मेरे सामने था और मेरे पास कोई तार्किक जवाब नहीं था।