आ गए तुम?
द्वार खुला है, अंदर आओ..!
मधुमालती लिपटी है मुंडेर से,
अपनी नाराज़गी वहीँ उड़ेल आना..!
तुलसी की क्यारी में,
मन की चटकन चढ़ा आना..!
अपनी व्यस्ततायें,*बाहर खूंटी पर ही *टांग आना..!
जूतों संग, हर नकारात्मकता उतार आना..!
बाहर किलोलते बच्चों से,
थोड़ी शरारत माँग लाना..!
वो गुलाब के गमले में,
मुस्कान लगी है..
*तोड़ कर पहन आना..!*
लाओ, अपनी उलझनें मुझे थमा दो..
तुम्हारी थकान पर, *मनुहारों का पँखा झुला दूँ..!
देखो, शाम बिछाई है मैंने,
सूरज क्षितिज पर बाँधा है,
लाली छिड़की है नभ पर..!
प्रेम और विश्वास की मद्धम आंच पर,* चाय चढ़ाई है,
घूँट घूँट पीना..!
सुनो, इतना मुश्किल भी नहीं हैं जीना..!!
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