एक बुढ़ि मां ने हाथ आटा चक्की टांचने वाले कारीगर को बुलाया।
देख भाई चक्की टांचना जानता तो है ना ?...ये पड़ी चक्की इसे ठीक कर दे, बस आज लायक दलिया बचा है, वो चूल्हे पर चढ़ा दिया है, तू इसे ठीक कर, मैं तब तक कुए से मटकी भर लाती हूँ।
ठीक है अम्मा चिंता मत कर मेरी कारीगरी के 7 गाँवों में चर्चे हैं, चक्की ऐसी टांचूंगा कि आटा पीसेगी और मैदा निकलेगी। चूल्हे पर चढ़ा तेरा दलिया भी सम्भाल लूंगा।
हत्थे से निकल कर हथौड़ी उछल चूल्हे के ऊपर लटकी घी की बिलौनी पर लगी, घी सहित बिलौनी चूल्हे पर चढ़ी दलिये की हांडी पर गिरी।
कारीगर हड़बड़ा गया और हड़बड़ाहट में चक्की का पाट भी टूट गया। कुछ समझ में आता, उससे पहले चूल्हे पर बिखर गए घी से लपटें उछली और फूस की छान/छत ने आग पकड़ ली और झोंपड़ी धू-धू कर जलने लगी।
कारीगर उलटे पाँव भागा और रास्ते में आती बुढ़िया से टकरा गया, जिससे उसकी मटकी गिर गयी।
अरे रोऊँ तुझे, ऐसी क्या जल्दी थी, अब रात को क्या प्यासी सोऊंगी, एक ही मटकी थी, वो भी तूने फोड़ दी।
कारीगर बोला अम्मा किस- किस को रोयेगी। पानी की मटकी को रोयेगी, घी की बिलौनी को रोयेगी, दलिये की हांड़ी को रोयेगी, टूटी चक्की को रोयेगी या जल गई अपनी झोंपड़ी को रोयेगी और कारीगर झोला उठा कर भाग छूटा।
No comments:
Post a Comment