पुराने कच्चे घरों की बात ही अलग थी और है ऊहान ,ओबरी,बोहडी, परली बोहडी सब एक दरवाजे के साथ जुड़े होते थे सभी कमरों को 15 दिन के बाद नया फर्श मिलता था क्योंकि सब कच्चे फर्श होते थे तो घर की औरतें उनको गोहे मे सैल्ला रंग पाई के फिर से नया रूप देती थी ताकि सब साफ सुधरा दिखे एक अलग ही ख़ुश्बूब महक उठती थी पूरे घर का वातावरण साफ सुधरा हो जाता था सब नया नया लगता था I
बोहडी रोज दोपहर के खाने के बाद चुले को गोलमे से फिर से चमका देती थी रात को चुले में घोटु आग में दबा देती थी ताकि सुबह आग जलाने के लिए माचिस की जरूरत ही नही पड़ती थी परली बोहडी चल्ला होता था जहाँ कच्चे घड़े में पीने का पानी होता था जिसे बायीं से रोज ताजा ले के आते थे बर्तन दोहने का पानी अलग रखा होता था सभी के कमरे में पीतल की लोडकी में पानी रखा होता था पीने के लिए कच्चे आँगन होते थे हर बरसात के बाद नया आँगन बनता था मिट्टी से मिट्टी को नया रूप दे कर आँगन तैयार किया जाता था पुरा परिवार साथ मे मिलकर आपने काम मे मस्त रहते थे बच्चों के खेल के साथ साथ घरवालों का काम आसान हो जाता था बच्चों को भी पता नही चलता था कि घर वाले उनसे काम करवा रहे है क्योंकि बच्चे गिल्ली मिट्टी में मस्त हो के खेलते रहते थे I
वो कच्चे घर बहुत संदेश देते है जिन्हें हम समझ ही नही पाए बस चमक के चक्कर मे भुल गए क्यों पहले इतनी बीमारियों के नाम ही नही होने दिए थे ना ही बीमार होते थे कुछ तो था जो हम सोच ही नही पाए I
बेशक दिखावे के लिए आज हवेलियां डाल ली हो पर सकून पुराने घरों में ही था और है...
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