Monday, January 2, 2023

हिन्दू नववर्ष vs अंग्रेजी ईसाई New Year

 

31 दिसम्बर के नजदीक आते ही जगह-जगह जश्न मनाने की तैयारियां प्रारम्भ हो जाती हैं 'हैप्पी न्यू ईयर' के बैनर, होर्डिंग, पोस्टर व कार्डों के साथ शराब, शबाब और कबाब की दुकानो में रौनक हो जाती है और जाम से जाम इतने टकराते हैं कि घटनाऐं दुर्घटनाओं में बदल जाती है.
रात भर जागकर नया साल मनाने से ऐसा प्रतीत होता है मानो सारी खुशियां एक साथ आज ही मिल जायेंगी। हम भारतीय भी पश्चिमी अंधानुकरण में इतने सराबोर हो जाते हैं कि उचित अनुचित का बोध त्याग अपनी सभी सांस्क्रतिक मर्यादाओं को तिलांजलि दे बैठते हैं। पता ही नहीं लगता कि कौन अपना है और कौन पराया।
एक जनवरी से प्रारम्भ होने वाली काल गणना को हम ईस्वी सन् के नाम से जानते हैं जिसका सम्बन्ध ईसाई जगत् व ईसा मसीह से है इसे रोम के सम्राट जूलियस सीजर द्वारा ईसा के जन्म के तीन वर्ष बाद प्रचलन में लाया गया।
भारतीय काल गणना की बात करें तो हमारे ज्योतिष के अनुसार पृथ्वी की आयु एक अरब 97 करोड़ 39 लाख 49 हजार 110 वर्ष है। जिसके व्यापक प्रमाण हमारे पास उपलब्ध हैं। हमारे प्रचीन ग्रंथों में एक-एक पल की गणना की गयी है।
जिस प्रकार ईस्वी सम्वत् का सम्बन्ध ईसा जगत से है उसी प्रकार हिजरी सम्वत् का सम्बन्ध मुस्लिम जगत और हजरत मुहम्मद साहब से है किन्तु विक्रमी सम्वत् का सम्बन्ध किसी भी धर्म से न हो कर सारे विश्व की प्रकृति, खगोल सिध्दांत व ब्रह्माण्ड के ग्रहों व नक्षत्रों से है इसलिए भारतीय काल गणना पंथ निरपेक्ष होने के साथ सृष्टि की रचना व राष्ट्र की गौरवशाली परम्पराओं को दर्शाती है। इतना ही नहीं, ब्रह्माण्ड के सबसे पुरातन ग्रंथ वेदों में भी इसका वर्णन है।
नव संवत् यानि संवत्सरों का वर्णन यजुर्वेद के 27वें व 30वें अध्याय के मंत्र क्रमांक क्रमश: 45 व 15 में विस्तार से दिया गया है। विश्व में सौर मण्डल के ग्रहों व नक्षत्रों की चाल व निरन्तर बदलती उनकी स्थिति पर ही हमारे दिन, महीने, साल और उनके सूक्ष्मतम भाग आधारित होते हैं।
के इसी वैज्ञानिक आधार के कारण ही पाश्चात्य देशों के अंधानुकरण के बावजूद, चाहे बच्चे के गर्भाधान की बात हो, जन्म की बात हो, नामकरण की बात हो, गृह प्रवेश या व्यापार प्रारम्भ करने की बात हो, सभी में हम एक कुशल पंडित के पास जाकर शुभ लग्न व मुहूर्त पूछते हैं और तो और, देश के बड़े से बड़े राजनेता भी सत्तासीन होने के लिए सबसे पहले एक अच्छे मुहूर्त का इंतजार करते हैं जो कि विशुद्ध रूप से विक्रमी संवत् के पंचांग पर आधारित होता है।
भारतीय मान्यतानुसार कोई भी काम यदि शुभ मुहूर्त में प्रारम्भ किया जाये तो उसकी सफलता में चार चांद लग जाते हैं। वैसे भी भारतीय संस्कृति श्रेष्ठता की उपासक है। जो प्रसंग समाज में हर्ष व उल्लास जगाते हुए एक सही दिशा प्रदान करते हैं उन सभी को हम उत्सव के रूप में मनाते हैं राष्ट्र के स्वाभिमान व देश प्रेम को जगाने वाले अनेक प्रसंग चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से जुडे हुए हैं। यह वह दिन है जिस दिन से भारतीय नव वर्ष प्रारम्भ होता है।
आइये इस दिन की महानता के प्रसंगों को देखते हैं:-
ऐतिहासिक महत्व * वर्ष पूर्व इसी दिन के सूर्योदय से ब्रह्मा जी ने जगत की रचना प्रारंभ की। * प्रभु श्री राम, चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य व धर्म राज युधिष्ठिर का राज्यभिषेक राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था। * शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात्, नवरात्र स्थापना का पहला दिन यही है। * प्रभु राम के जन्मदिन रामनवमी से पूर्व नौ दिन का श्री राम महोत्सव मनाने का प्रथम दिन आर्य समाज स्थापना दिवस, सिख परंपरा के द्वितीय गुरु अंगददेव जी, संत झूलेलाल व राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संस्थापक डा0 केशव राव बलीराम हेडगेवार का जन्मदिवस ।
प्राकृतिक महत्व
* वसंत ऋतु का आरंभ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है जो उल्लास, उमंग, खुशी तथा चारों तरफ पुष्पों की सुगंधि से भरी होती है। * फसल पकने का प्रारंभ यानि किसान की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय होता है। * ज्योतिष शास्त्र के अनुसर इस दिन नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं अर्थात् किसी भी कार्य को प्रारंभ करने के लिये शुभ मुहूर्त होता है।
क्या एक जनवरी के साथ ऐसा एक भी प्रसंग जुड़ा है जिससे राष्ट्र प्रेम जाग सके, स्वाभिमान जाग सके या श्रेष्ठ होने का भाव जाग सके ?
आइये! विदेशी को फेंक स्वदेशी अपनाऐं और गर्व के साथ भारतीय नव वर्ष यानि विक्रमी संवत् को ही मनायें तथा इसका अधिक से अधिक प्रचार करें।
भारत देश में समस्त त्योहार विशेष महत्व रखते हैं, हर त्योहार के पीछे गहरा संदेश रहता है, हम जानते हैं कि हमारे सभी अच्छे कार्य भारतीय दर्शन पर आधारित होते हैं जिसका प्राकृतिक सामंजस्य भी होता है, हमारे देश में शुभ घड़ी देखने की परम्परा है हम यह भी जानते हैं वो शुभ घड़ी भारतीय पंचांग से ही निकाली जाती है। आज तक के इतिहास में ऐसा कभी भी सुनने को नहीं मिला है कि शुभ घड़ी देखने के लिए अग्रेजी कैलेंडर का प्रयोग किया गया हों, वास्तविकता यह है कि अंग्रेजी महीना घड़ी मुहूर्त के मिलान के अनुसार नहीं 'चलते! वह कैसे चलते है इस बात पर गजब का विरोधाभास है!
भारत में हर दिन त्योहार का दिन होता है लेकिन यह सारे त्योहार भारतीय पंचांग पर आधारित होते हैं! यह सारा खेल गृह नक्षत्रों पर मिलान के आधार पर होता है। भारत के सारे त्योहार का प्रकृति साथ देती है जो त्योहार प्राकृतिक तालमेल के साथ मनाये जाते हैं उनके साथ परिणाम बेहतर होते है !
एक जनवरी वाले नव वर्ष में ऐसा कोई भी प्राकृतिक संदेश नहीं होता जिससे समाज को खुशी का अहसास होता हों, वातावरण में कड़ाके की ठंड रंगीन मौसम का परिचायक नहीं है इसके विपरीत हमारे भारत के नव वर्ष पर बसंत का सुहावना मौसम होता है !
किसानों के चेहरे पर उल्लास होता है गृह नक्षत्र अनुकूल हों जाते हैं! सबसे बड़ी बात तो यह है कि जनवरी वाले नव वर्ष पर समाज किस प्रकार की कार्यशैली अपनाता है कहीं शराब के दौर चलते हैं तो कहीं युवा वर्ग पूरी मस्ती के साथ झूमते हैं, क्या यही भारत है क्या यह भारत की संस्कृति है ! हम नव वर्ष मनाते समय अपने देश की परिपाटी का भी ध्यान रखें तो अच्छा है!
हम भारतवासी आज भी अंग्रेजों द्वारा प्रवाहित की गयी धारा में जीवन यापन कर रहे हैं. क्या हमारे देश में सांस्कृतिक धारा का अभाव है वास्तव में हमारी सांस्कृतिक विरासत विश्व की महान विरासत है पूरे विश्व में हमारी संस्कृति का कोई मुकाबला नहीं ......
लेकिन हम अन्धानुकरण की आंधी में ऐसे दौड़ रहे हैं कि हम अपना वजूद ही भूल रहे हैं।
हम भारतवासी आज भी अंग्रेजों द्वारा प्रवाहित की गयी धारा में जीवन यापन कर रहे हैं. क्या हमारे देश में सांस्कृतिक धारा का अभाव है वास्तव में हमारी सांस्कृतिक विरासत विश्व की महान विरासत है पूरे विश्व में हमारी संस्कृति का
कोई मुकाबला नहीं...... लेकिन हम अन्धानुकरण की आंधी में ऐसे दौड़ रहे हैं कि हम अपना वजूद ही भूल रहे हैं .......
मेरा कहना यह है कि जनवरी में १ तारीख को मनाया जाने वाला नव वर्ष भारत
का नव वर्ष नहीं है........
यह अंग्रेजों द्वारा थोपा गया नया साल है, आज भी हम मानसिक रूप से उसी विचार के साथ जी रहे हैं जो विचार गुलामी में दिया गया था ... हालाँकि यह बात सही है कि लम्बे समय तक एक धारा में जीने का मतलब है उसी को अंगीकार करना, लेकिन आज हमारे ऊपर ऐसी कौन सी मजबूरी है कि हम आज भी उसी नव वर्ष को मनाने को बाध्य हो रहे हैं जो गुलामी का प्रतीक है.......... हमारे देश के सारे त्यौहार हम भारतीय काल पद्धति से मनाते आ रहे हैं आज भी
मनाते हैं भारत का कोई भी पर्व अंग्रेजी महीने से नहीं होता.... क्योंकि प्रकृति इसका साथ
नहीं देती.........
हम प्रकृति का साथ देंगे तो प्रकृति भी हमारा साथ देगी. हमारे सारे त्योहार धार्मिक मान्यतायों पर आधारित हैं. यानी एक धार्मिक त्यौहार है लेकिन क्या हम बता सकते हैं कि एक जनवरी को किस आधार पर हम नव वर्ष मनाएं जबकि भारतीय नव वर्ष जो चैत्र में शुरू होता है उस पर गृह नक्षत्र साथ देते हैं .... इसलिए मेरा आग्रह है कि हम अपना भारतीय नव वर्ष मनाएं
|| जय श्री राम ||
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