शिखाबन्धन (वन्दन) आचमन के पश्चात् शिखा को जल से गीला करके उसमें ऐसी गाँठ लगानी चाहिये, जो सिरा नीचे से खुल जाए। इसे आधी गाँठ कहते हैं। गाँठ लगाते समय गायत्री मन्त्र का उच्चारण करते जाना चाहिये ।
गायत्री शिखा बंधन क्या है?
शक्ति परमाणु हर घड़ी बाहर निकल-निकलकर आकाश में दौड़ते रहते हैं। इस प्रवाह से शक्ति का अनावश्यक व्यय होता है और अपना कोष घटता है।
इसका प्रतिरोध करने के लिये शिखा में गाँठ लगा देते हैं। सदा गाँठ लगाये रहने से अपनी मानसिक शक्तियों का बहुत-सा अपव्यय बच जाता है।
सन्ध्या करते समय
विशेष रूप से गाँठ लगाने का प्रयोजन यह है कि रात्रि को सोते समय यह गाँठ प्रायः शिथिल हो जाती है या खुल जाती है।
फिर स्नान करते समय केश-शुद्धि के लिये शिखा को खोलना पड़ता है।
सन्ध्या करते समय अनेक सूक्ष्म तत्त्व आकर्षित होकर अपने अन्दर स्थिर होते हैं, वे सब मस्तिष्क केन्द्र से निकलकर बाहर न उड़ जाए इसलिये शिखा में गाँठ लगा दी जाती है।इसमें गाँठ लगा देने से भीतर भरी हुई वायु बाहर नहीं निकल पाती। गाँठ लगी हुई शिखा से भी यही प्रयोजन पूरा होता है।
वह बाहर के विचार और शक्ति समूह को ग्रहण करती है । भीतर के तत्त्वों का अनावश्यक व्यय नहीं होने देती ।
आचमन से पूर्व शिखा बन्धन इसलिये नहीं होता, क्योंकि उस समय त्रिविध शक्ति का आकर्षण जहाँ जल द्वारा होता है, वह मस्तिष्क के मध्य केन्द्र द्वारा भी होता है।
इस प्रकार शिखा खुली रहने से दुहरा लाभ होता है । तत्पश्चात् उसे बाँध दिया जाता है।
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