वक्त की आंधियां आओ सह लें चलो
लड़खड़ाते कदम फिर संभल जाएंगे
आओ हम ही चलो आज झुक जाएंगे
टूटते रिश्ते फिर से संभल जाएंगे..।।
रिश्तों के खेत में हो उपज प्रेम की
खुशियों के उर्वरक से ही हरियाली हो
काट लें आओ मिलकर फसल प्रेम की
मन के खलिहान फिर से संवर जाएंगे..।।
जो कभी थे हमारे वो अब क्यों नहीं
प्रीति सच्ची थी पहले तो अब क्यों नहीं
आओ छोड़ो शिकायत ख़तम करते हैं
आज फिर पहले जैसे निखर जाएंगे..।।
अपनों से खेद ज्यादा उचित भी नहीं
रख लो मत भेद मन भेद फिर भी नहीं
अपनों से जीत जाना भी इक हार है
हार मानो चलो एक हो जाएंगे..।।
सच्ची निष्ठा प्रतिष्ठा सदा प्रेम से
जीवन में बस प्रगति अपनों के साथ से
एक जुटता से ही मिलता संबल सदा
साथ दे दो चलो जीत हम जाएंगे..।।
साथ दे दो चलो जीत हम जाएंगे..।।
् विजय कनौजिया
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