वतन
इन हवाओ में बसे है प्राण मेरे दोस्तों
इस वतन की मिटटी में है जान मेरी दोस्तों
और भी दुनिआ के नक़्शे में हज़ारो मुल्क है
पर तिरंगे की सबसे जुदा है शान मेरे दोस्तों
आज बैठी है ये दुनिआ ढेर पर बारूद के
कौन देगा अमन का पैगाम मेरे दोस्तों
राह से भटके है जो वो भी राह पर आ जाएंगे
कोई उनको भी दे प्यार का पैग़ाम मेरे दोस्तों
क्या मिला है जंग से किसको कभी जो अब मिले
कितने कलिंगो में निकाले अरमां मेरे दोस्तों
कितने सिकंदर लूट कर दुनिआ को ख़ाली चल दिए
ख़ाली हाथ में देखा नहीं कोई सामान मेरे दोस्तों
चन्द सिक्को में न बेचो तुम वतन की आबरू
पहले भी खादी हो चुकी बदनाम मेरे दोस्तों
और इंसानो को ज़रूरत है तो बस इंसान की
दूर कर दो हैवान का गुमान मेरे दोस्तों
बख्श दो आबो हवा इस ज़हर को रोको यही
आने वाली नस्लों पे करो अहसान मेरे दोस्तों
दुनिआ की नज़रे जब तलाशेंगी धरम का रास्ता
विश्व गुरु का तब मिलेगा सम्मान मेरे दोस्तों
हरविंदर सिंह गुलाम
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