शहरों की नीयत ठीक नहीं,
टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों के बीच,
नन्हें-नन्हें पैरों के निशान,
तोतली बोली में झूमती हवाएं,
लहरा लहरा कर उड़ता दुपट्टा,
अनाज की बालियां,
खेतों की हरियाली,
छल छल कर बहता पानी,
पहली बरसात की
काली मिट्टी की सोंधी गंध,
गोधूलि की फैली संध्या,
बैलों का मुंडी हिला हिला कर चलना,
छोटी सकरी सड़क पर,
बकरी और गाय हांकने की आवाज,
दूर दिखाई देता,
घास फूस का मचान,
और उस पर बैठा प्रसन्न मंगलू,
सब कुछ धुंधला दिखता,
फ्लैशबैक की तरह मलीन,
घिसटता मित्टता सहमता दिखाई देता,
कसैला धूंआ
गोधूलि की बेला को धूमिल करता,
निश्चल पानी कसैला हो उठा,
नन्हें पैर भयानक बन गए,
काली सौंधी मिट्टी पथरीली हो चली,
छोटी पगडंडी हाईवे में बदल गई,
मशीनी हाथियों का सैलाब झेलती,
दूर लकड़ी का मचान नहीं,
गगनचुंबी इमारत दिखती,
उस पर बैठा बिल्डर लल्लन सिंह,
गाड़ियों की गड़गड़ाहट,
कहीं कोई चिन्ह निशान नहीं दिखते,
अब खुशहाल हरीतिमा के,
इमारतों की फसल, लोहे का जंगल,
सब कुछ कठोर,
शायद खुशहाल हरे हरे गांव और जंगल
को देखकर,
शहरों की नीयत ठीक नहीं दिखती?
संजीव ठाकुर,रायपुर छ.ग.9009415415,
No comments:
Post a Comment