नए डिजिटल भारत में चुनावी घोषणा पत्रों का स्वरूप बदला- नए प्रौद्योगिकी भारत में मतदाता स्पष्ट विकल्प चुनने में सक्षम
क्या चुनावी घोषणा पत्रों में दिए अंतर्वस्तु को पूरा करने कानूनी बाध्यता होनी चाहिए ??- इसपर देश में डिबेट ज़रूरी- एड किशन भावनानी
गोंदिया - भारत में घोषणा पत्र यह शब्द सदियों पुराना है क्योंकि यह शब्द हम बचपन से ही सुनते आ रहे हैं इसलिए घोषणा पत्र नाम सुनते ही अनायस ही हमारा ध्यान चुनाव की ओर चला जाता है!! इसलिए यह नाम सुनते ही हमारे मुख से निकल पड़ता है कि किस पार्टी का घोषणा पत्र?? साथियों बात अगर हम घोषणा पत्र की करें तो इस आधुनिक नए भारत डिजिटल भारत के मानवीय दैनिक जीवन में कई प्रकार का घोषणा पत्र होतें है और करीब-करीब हर सरकारी विभाग में किसी योजना स्कीम या अन्य कारण से हमें स्वयं घोषणा पत्र देना होता है, जो हमारी उस बात की सत्यता के लिए शपथ, वचन, वादा होता है जिस कारण से हम वह सरकारी फॉर्म भर रहे हैं।
साथियों बात अगर हम चुनावी घोषणा पत्र की करें तो मैनीफेस्टो’ शब्द का पहली बार प्रयोग अंग्रेजी में 1620 में हुआ था। वैसे सार्वजनिक रूप से अपने सिद्धान्तों, इरादों व नीति को प्रकट करना घोषणा पत्र कहलाता है। राजनीतिक पार्टियों द्वारा चुनाव में जाने से पहले लिखित डॉक्यूमेंट जारी किया जाता है, इसमें पार्टियां बताती है कि अगर उनकी सरकार बनी तो वे किन योजनाओं को प्राथमिकता देंगी और कैसे कार्य करेंगी।
अब पार्टियों ने अलग अलग नाम से प्रस्तुत करना शुरू कर दिया है, जिसमें विजन डॉक्यूमेंट, संकल्प पत्र आदि शामिल है। वर्षों पहले यह घोषणा पत्र के नाम से ही घोषित होता था परंतु समय के बदलते चक्र, विज्ञान प्रौद्योगिकी, मानवीय बुद्धि कौशलता, वैचारिक क्षमता, मानवीय बौद्धिक विकास, चुनावी रणनीति, चुनावी जीत की कार्यशैली का विकास सहित अनेक कारणों से वर्तमान कुछ वर्षों से घोषणा पत्र के नाम पर हर राजनीतिक पार्टी अपने विज़न, विचारधारा या किसी अन्य सोच से संलग्नता कर अपने घोषणापत्र को कोई नाम देते हैं।
वर्तमान चुनाव 2022 जिसकी चुनावी प्रक्रिया 10 फरवरी से शुरू हुई हैं और 10 मार्च को परिणाम घोषित होंगे, के घोषणा पत्रों के नाम लोक कल्याण संकल्प पत्र, सत्य वचन और उन्नति विधान के नाम से प्रमुख पार्टियों ने जारी किए हैं जो न केवल घोषणा पत्र हैं बल्कि उनके नाम से भी एक अलग अपना आकर्षण महसूस होता है जो मतदाताओं को पढ़ने और उस पार्टी की विचारधारा को समझने के लिए प्रेरित करता है और मतदाता इन घोषणाओं के आधार पर ही स्पष्ट विकल्प चुनने की कोशिश करता है।
साथियों बात अगर हम इन घोषणा पत्रों की करें तो, कुछ संसदीय लोकतांत्र की व्यवस्था वाले देशों में राजनैतिक दल चुनाव के कुछ दिन पहले अपना घोषणापत्र प्रस्तुत करते हैं। जैसा कि 2022 के चुनाव में भारत में भी हुआ, इन घोषणापत्रों में इन बातों का उल्लेख होता है कि यदि वे जीत गये तो नियम-कानूनों एवं नीतियों में किस तरह का परिवर्तन करेंगे। घोषणापत्र पार्टियों की रणनीतिक दिशा भी तय करते हैं। सार्वजनिक रूप से अपने सिद्धान्तों एवं इरादों (नीति एवं नीयत) को प्रकट करना घोषणापत्र (मैनिफेस्टो) कहलाता है। इसका स्वरूप प्रायः राजनीतिक होता है किन्तु यह जीवन के अन्य क्षेत्रों से भी सम्बन्धित हो सकता है।
साथियों बात अगर हम घोषणा को की अंतर्वस्तु की करें तो मैंने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में रिसर्च से पाया कि चुनाव आयोग के अनुसार, घोषणा पत्र में ऐसा कुछ नहीं हो सकता, जो संविधान के आदर्श और सिद्धांत से अलग हो और या आचार संहिता के दिशा-निर्देशों के अनुरूप ना हो। साथ ही चुनाव आयोग के दिशा-निर्देशों में लिखा है कि राजनीतिक पार्टियों को ऐसे वादे करने से बचना चाहिए, जिनसे चुनाव प्रक्रिया के आदर्शों पर कोई असर पड़े या उससे किसी भी वोटर के मताधिकार पर कोई प्रभाव पड़ता हो।
साथियों बात अगर हम हर चुनावी घोषणापत्र के अंतर्वस्तु की करें तो हालांकि उनके पास इस संबंध में रणनीतिक रोडमैप हो सकता है? और अर्थव्यवस्था में उसका आवंटन और प्रबंधन करने की तरकीब भी जरूर होगी जिसके आधार पर कड़ियों को जोड़कर यह बनाया जाता है परंतु मेरा मानना है कि क्या चुनावी घोषणा पत्र की अंतर्वस्तु को उनके जीतने और सत्ता पर काबिज होने के बाद पूरा करने की जवाबदारी और कानूनी बाध्यता होनी चाहिए?? इस विषय और बात को देश के बुद्धिजीवियों द्वारा रेखांकित कर, एक डिबेट कर इसे कानूनी अमलीजामा पहनाने की ओर कदम बढ़ाए जाने की ज़रूरत है।
हालांकि वर्तमान नए प्रौद्योगिकी भारत में मतदाता स्पष्ट विकल्प चुनने में सक्षम है परंतु यदि उस विकल्प को अमलीजामा अगर उन वि लज़न 5 वर्षों में नहीं पहनाया जाता हैं, तो फिर मतदाता के पास क्या अधिकार है?? इसे रेखांकित कर यह सुनिश्चित करने की ओर कदम बढ़ाना वर्तमान समय की मांग है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि लोग कल्याण संकल्प पत्र, सत्य वचन और उन्नति विधान के रूप में नए डिजिटल भारत में चुनावी घोषणा पत्रों का स्वरूप बदला है जबकि नए प्रौद्योगिकी की भारत में मतदाता स्पष्ट विकल्प चुनने में सक्षम है तथा क्या कानूनी घोषणा पत्रों में दिए गए अंतर्वस्तु को पूरा करने की कानूनी बाध्यता होनी चाहिए?? इस पर देश में डिबेट होना ज़रूरी है।
-संकलनकर्ता लेखक- कर विशेषज्ञ एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
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