हमारा देश भारत कृषि प्रधान देश है। देश की 70 प्रतिशत आबादी किसी न किसी रूप में कृषि से जुड़ी हुई है। आज देश में कुल आबादी का 86.21 फीसदी हिस्सा लघु सीमांत किसान(दो हेक्टेयर से कम जोत वाले), अर्ध मध्यम और मध्यम आकार वाली जोतों (02 से 10 हेक्टेयर तक की जोत वाले ) की संख्या 13.22 प्रतिशत और बड़ी जोत (10 हेक्टेयर या ऊपर) वाले किसान 0.57 प्रतिशत है।
आजादी से पहले और भूमि सुधार कानून लागू होने तक खेतों की जोत का आकार बड़ा होता था। खेती की जमीन बड़े बड़े जमींदारों के पास होती थी। गांवों के ज्यादातर लोग जमींदारों से खेत लेकर खेती करते थे। बदलें में पैदा हुए अनाज का एक निश्चित भाग जमींदार को देते थे। पर्याप्त मात्रा में सिंचाई के साधन न होने, मौसम की मार पड़ जाने तथा आज जैसे खाद और कीटनाशकों के न होने से उपज अच्छी नहीं होती थी। जनमानस हमेशा अभाव में जीता था। किसान के लिए दो वक्त की रोटी जुटा पाना मुश्किल था।
यह वह दौर था जब देश में किसान और कृषि क्षेत्र अनेकों समस्याओं से जूझ रहा था। ऐसे समय में चौधरी चरण सिंह एक किसान नेता के रूप में उभरे। जमीन और किसान से जुड़ी समस्याओं को व्यापक रूप से सरकार के सामने लाना शुरू किया। उन्होंने समाजवाद के नारे "जो जमीन को जोते-बोये वो जमीन का मालिक है" के साथ काम करना शुरू किया। वे जानते थे कि जब तक सभी के पास जमीन नहीं होगी तब तक देश से गरीबी और भुखमरी का अंत नहीं हो सकता। देश की आर्थिक हालत ठीक नहीं हो सकती।
उस समय राजनीतिक दल अपने घोषणापत्र में किए वादे को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध होते थे। उस समय सत्ता में कांग्रेस पार्टी की सरकार थी। उनके घोषणा पत्र के अधिकांश वादे देश के विकास और नव निर्माण से संबंधित थे। उनके घोषणा पत्र में भूमि सुधार एक मुख्य कार्यक्रम था। उस समय उत्तर प्रदेश में पंडित गोविंद बल्लभ पंत की सरकार थी। चौधरी चरण सिंह उनकी सरकार में राजस्व मंत्री थे। उन्होंने उत्तर प्रदेश में भूमि सुधार के काम को अंजाम देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके प्रयासों से 01 जुलाई 1952 को उत्तर प्रदेश में जमींदारी प्रथा का उन्मूलन हुआ। लेख पाल का पद उनके ही प्रयासों से सृजित किया गया। उन्होंने 1954 में उत्तर प्रदेश भूमि संरक्षण कानून को पारित कराया। 03 अप्रैल 1967 को वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। 17 अप्रैल 1968 को उन्होंने कुछ कारणों से मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। वह उत्तर प्रदेश के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे। मध्यावधि चुनाव हुए जिसमें उन्हें अच्छी सफलता मिली। 17 फ़रवरी 1970 को वे फिर मुख्यमंत्री बने। उनकी कार्यशैली के कारण आज भी उनकी गणना सबसे प्रभावी जननायक, कुशल प्रशासक और ईमानदार राजनेता के रूप में होती है। उन्होंने सन् 1974 में राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश किया और कांग्रेस के विरोध में एक नयी पार्टी का गठन किया। जिसमें भारतीय क्रांति दल के साथ-साथ बीजू जनता दल, समाजवादी पार्टी, स्वतंत्र पार्टी जैसे कई दल शामिल हुए। आपातकाल के बाद और जे पी आंदोलन के समय यह दल काफी करीब आ गये और सबने साथ मिलकर एक नयी पार्टी का गठन किया। जो कि जनता पार्टी कहलायी। 28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 तक देश के पांचवें प्रधानमंत्री के रूप में देश की बागडोर संभाली।
उस समय किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य जैसी कोई व्यवस्था नहीं थी। सरकार अपने तरीके से फसलों के दाम घोषित किया करती थी। उनके कार्यकाल में ही आढ़तियों की मनमानी पर अंकुश लगा। किसानों को कर्ज दिलाने के लिए उन्होंने नाबार्ड की व्यवस्था की। इसकी स्थापना से किसानों को खेती के लिए ऋण मिलना आसान हो गया। किसानों को कुछ हद तक साहूकारों से मुक्ति मिली।
उन्होंने 1937 में किसानों और सामाजिक, शैक्षिक रूप से पिछडे़ वर्ग के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण का मुद्दा उठाया । उन्हीं के प्रयासों से मंडल कमीशन का गठन हुआ। 28 जुलाई 1979 को चौधरी चरण सिंह समाजवाद से इत्तेफाक रखने वाली पार्टियों के सहयोग से देश के प्रधानमंत्री बने। वह गरीब, किसान और मजदूर के नेता थे। वे सादगी, सच्चाई, ईमानदारी के पक्षधर और भ्रष्टाचार के खिलाफ थे। एक बार उन्हें एक थाने के पुलिस कर्मियों द्वारा घूस लेने की बात पता चली। उस समय वह देश के प्रधानमंत्री थे। उन्होंने खुद किसान बनकर सच्चाई का पता लगाया। पुलिस द्वारा रिपोर्ट लिखने के लिए उनसे भी घूस मांगा गया। सच्चाई साबित होते ही उन्होंने पूरे थाने को सस्पेंड कर दिया । इतने निचले स्तर पर जाकर ऐसी कार्यवाही को अंजाम देना जनमानस के प्रति उनकी भावना को दर्शाता है।
चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसम्बर 1902 को बाबूगढ़ छावनी के निकट नूरपुर , तहसील हापुड़, जनपद गाजियाबाद में एक मध्यम वर्गीय किसान मीर सिंह के यहां हुआ था। उन्होंने 1923 में विज्ञान से स्नातक तथा 1925 में आगरा विश्वविद्यालय से एल एल बी की शिक्षा पूरी किया और गाजियाबाद में वकालत करने लगे।
सन् 1929 में आजादी के लिए पूर्ण स्वराज्य आंदोलन में जुड़ गये। सन् 1930 में महात्मा गाँधी द्वारा सविनय अवज्ञा आन्दोलन के तहत् नमक कानून तोडने के आह्वान पर हिंडन नदी पर नमक बनाकर अंग्रेजों के बिरूद्ध शंखनाद किया। इसके लिए उन्हें 6 माह की सजा सुनाई गई। 1940 में सरकार ने उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया और 1941 में छोड़ा। अब तक वे आजादी के दीवाने बन चुके थे। अपने क्रांतिकारी साथियों के साथ मिलकर अंग्रेजी सरकार को खूब छकाया। अंग्रेज सरकार उनकी गतिविधियों से परेशान हो उठी। उसने उन्हें देखते ही गोली मारने का आदेश दे दिया। काफी मशक्कत के बाद आखिरकार अंग्रेज पुलिस उन्हें पकड़ने में कामयाब हो गयी। उन्हें डेढ़ साल की सजा हुई।
चौधरी चरण सिंह ने लम्बे समय तक गांव, गरीब और किसान की सेवा की। सादगी की मिसाल बने। 29 मई 1987 को दिल्ली में किसानों का मसीहा चिर निद्रा में लीन हो गया। खुशहाल किसान का उनका सपना आज तक पूरा न हो सका। किसानों की समस्याओं को किसान ही समझ सकता है। गन्ने के रस को जूस कहने वाले जब तक किसान के लिए योजनाएं बनाएंगे तब तक किसान खुशहाल नहीं हो सकता। किसानों के लिए योजनाएं राजधानियों के वातानुकूलित कमरों में नहीं बल्कि खेतों की मेड़ों पर बैठकर बनायी जाने की आवश्यकता है। जब इस स्तर पर योजनाएं बनेंगी तब ही चौधरी चरण सिंह का सपना साकार हो सकता है।
हरी राम यादव
स्वतंत्र लेखक
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