आँखों में सागर लहराए
होठों पर मुस्कान खिली है!
आत्म-कक्ष में भंडारे में
दुख की बस सौगात मिली है!
मन उपवन में किया निरीक्षण
प्रेम-पुष्प सब निष्कासित हैं!
सांसों से धड़कन तक फैले
कंटक सारे उत्साहित हैं!
पीडाओं के कंपन से अब
अंतस की दीवार हिली है!
आत्म-कक्ष के--------
उलझ गये रिश्तों के धागे
जगह-जगह पर गाँठ पड़ी है!
द्वार प्रगति के बंद हुए सब
मुश्किल अब हर राह खड़ी है!
सत्य-झूठ की दुविधा में ही
विश्वासों की परत छिली है!
आत्म-कक्ष के---------
प्रश्न सरीखा जीवन जैसे
निशदिन उत्तर ढूढ़ रही हूँ!
पर्वत नदियाँ झरनों से अब
पता स्वयं का पूँछ रही हूँ!
सृष्टि करे संवाद भले पर
सबकी आज जुबान सिली है!
आत्म-कक्ष के-------
No comments:
Post a Comment