गलियां सूनी सड़कें सूनी,
सूने पार्क, माल, मुहल्ले।
इस बिपत्ति की घडी में,
कुछ की है बल्ले बल्ले।
कुछ की है बल्ले बल्ले,
कुछ तो चांदी कूट रहे।
कोरोना के कहर में यारों,
दिया जला के लूट रहे।
वह सोच रहे हैं ऐसे ही,
बिपदा की आंधी रोज बहे।
हो अवैध कमाई हर दिन,
कुबेर हमारा हाथ गहें ।।
लूट की कमाई जो खाये,
उन्नति हो उसकी आठ गुनी।
जब प्रकृति की मार पड़े ,
तो रोये बेचारा सिर धुनी।
तो रोये बेचारा सिर धुनी,
पीटे दोनों हाथ से छाती ।
क्या बिगाड़ा राम बताओ,
कह रोवे दुष्ट का नाती ।
लूट मचाने वालों सोचो,
बिना आवाज उसकी लाठी।
पड़ेगी मार जब उसकी,
तो मिलेगा न जग में साथी।।
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