सारण (ब्यूरो चीफ संजीत कुमार) दैनिक आयोध्या टाइम्स बिहार में कोरोना महामारी लगातार बढ़ रही है ऐसे में बिहार सरकार ने इस महामारी को फैलने से रोकने के लिए 25 दिनों के लिए लॉक डाउन लगाते हुए त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को स्थगित कर दी है । अगर बिहार सरकार पंचायत के जनप्रतिनिधियों की सत्ता का अधिकार छीन लेती है तो पंचायती राज पदाधिकारी से लेकर, बीडीओ, सीओ, अनुमंडल अधिकारी से लेकर जिला के सभी वरीय अधिकारियों को पंचायत के जनसमस्याओं को जानकारी पूर्ण रूप से हो जाएगी। जिस तरह से पंचायतों में कुछ भष्ट जनप्रतिनिधियों के कारण जातिवाद, व्यक्तिवाद, और कुटनितिवाद के कारण पंचायत का विकास न होकर सरकारी योजनाओं की धरातल पर पूर्ण रूप से नहीं होना एवम् सरकार की योजनाओं की जानकारी आम जनता तक नहीं मिलने के कारण जन प्रतिनिधियों ने भले ही पंचायत की विकास नहीं की हो लेकिन अपना सर्वांगीण विकास करते हुए पीढ़ी दर पीढ़ी तक सरकार की योजनाओं का खुलियाम कागजों पर घोटाला करते हुए समाज के अंदर अपना वर्चस्व कायम कर लिया । अगर सरकार की मंशा पंचायत की विकास चाहती है तो सत्ता में बैठे जनप्रतिंनीधियो की त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के समय पूर्ण होते ही सत्ता छीन कर अधिकारियों को दे दी गयी तो निश्चित ही जमीनी हकीकत कुछ और बयां करती दिखाई देगी । जिस तरह कोरोना काल में भी मास्क, साबुन के साथ अन्य सरकारी योजनाओं का भी घोटाला हुआ है वैसे कई उदाहरण है जो जमीनी हकीकत को अगर नेक आला अधिकारी निरीक्षण करे तो कई तरह की खामियां ही खामियां पंचायतो में उजागर होगी और भर्स्ट जनप्रतिनिधियों की पोल खुल सकती हैं । जिस तरह से मतदाता को जनप्रतिनिधियों द्वारा चुनाव में विकास के सपने दिखाते हैं लगता है कि महात्मा गांघी के सपना पूर्ण हो जायेगा और सरकार की योजनाओं का लाभ लाभान्वितों को मिल जायेगा लेकिन जैसे ही सत्ता मिली कि जनप्रतिनिधियों गिरगिट के तरह रंग बदलकर अपना विकास में लग जाते हैं और जनता माथे पर हाथ धर कर अफसोस जताते हुए नये जनप्रतिनिधियों की 5 साल बीतने की बाट जोहते है कुछ ग्रामीण प्रखंड के अधिकारियों को जन समस्याओं या अपनी समस्याओं को अवगत कराते हुए निदान करने की गुहार लगाते-- लगाते थक जाते है क्योंकि कुछ कुर्सियाँ भर्स्ट व जनप्रतिनिधियों के कथनानुसार चलने के कारण ग्रामवासियों के विकास रुक जाती है और सरकारी लाभ से वंचित हो जाते हैं जिसके कारण हर पांच साल पर जनता छलते जाते है जिसके कारण महात्मा गांधी का सपना चकनाचूर होते जा रहा है ।
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