आज देश के ओ वंचित वर्ग सबसे ज्यादा परेशान हैं,जो रोज कुंआ खोदते रोज पानी पीते थे,यानी की मजदूर वर्ग जो दिहाड़ी करके कमाते थे, जिससे इनके घरों में चूल्हे जला करते थे , आंकड़ों को देखें तो इस कोरोना महामारी ने लगभग 63 फीसदी तो घरेलू कामगारों से ही रोजगार छीन लिया है , ऐसे में अब तो घर चलाना बहुत ही मुश्किल हो रही है। हमने देखा की पिछले साल कोरोना के चलते लगाएं गए लॉकडाउन ने देश की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह से प्रभावित किया था, हालांकि कुछ समय बाद चीजें धीरे-धीरे पटरी पर लौटना शुरू हुई तो कोरोना की दूसरी लहर ने सब कुछ तबाह कर दिया है , दूसरी लहर के बाद अचानक नए कोरोना के मामलों में भारी उछाल आया और फिर राज्य सरकारों ने धीरे-धीरे सख्त पाबंदियां लगाते हुए लॉकडाउन लगा दिया है ,इस कोरोना महामारी से भारी संख्या में लोगों की नौकरी गई हैं,स्थिति यह हो गई कि जिन लोगों का रोजगार छूटा है, उनके घरों में आर्थिक संकट इस कदर हावी हो गया कि घर चलाना भी मुश्किल हो गया है। हम सभी ने देखा की हमारे प्रवासी मजदूर देश के अलग-अलग शहरों और राज्यों से पैदल ही हजारों हजार किलोमीटर चलने को मजबूर हुए थे, जिनमें से बहुत से प्रवासी मजदूर अपने घर पहुंचने से पहले ही कोई ट्रेन के पहियों के नीचे तो कोई ट्रक के पहियों के नीचे तो बहुत से प्रवासी मजदूर भूखे दम तोड़ दिया था ,अब तो लगभग देश के हर वह वर्ग रोजी रोटी के लिए संघर्ष कर रहा है जो रोज कमाता खाता था, साथ ही मध्यम वर्गीय परिवार वालों का भी आज हालात दिन पर दिन बदतर होती जा रही है , एक रिपोर्ट में पता चला है कि केवल देश के राजधानी दिल्ली में 63 फिसदी घरेलू कामगारों जो मकानों में कपड़े, बर्तन, झाडू-पोछा और खाना बनाने वाली महिलाओं ने ही इस महामारी के बाद से नौकरी खो दी हैं, तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि अन्य क्षेत्रों में काम करने वालों की हालत क्या हो सकती है ? वही दूसरी तरफ इस महामारी ने मजदूरों को झझकोर कर रख दिया है, सबसे ज्यादा दुखों का पहाड़ प्रवासी मजदूरों पर टूटा है, मजदूरों के पास अब रोजी-रोटी का संकट है, इनके साथ ही अन्य क्षेत्रों में काम करने वाले मध्यम वर्गीय परिवार पर भी रोजी रोटी का संकट मंडरा रहा है , सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से जो राशन भारत सरकार पहुंचाने का प्रयास कर रही है , गरीबों और जरूरतमंद लोगों के रोटी पर भी कालाबाजारी करने वाले डंका डाल दे रहे है , मजदूरों के उत्थान के लिए सरकार की योजनाएं सरकारी कार्यालयों में दम भर रही हैं,हर शहर व नगर के चौराहों पर सुबह के समय रोजी-रोटी की तलाश में ना जाने कितने मजदूर रोजी की तलाश में खड़े रहते हैं, देखे तो दो वर्षों में कोराना महामारी ने मजदूरों के सामने बड़ा संकट खड़ा कर दिया है, रोजी-रोटी की तलाश में मजदूर इधर-उधर भटक रहे हैं, बाहर से आने वाले प्रवासी मजदूर कोरोना संकट से जूझ रहे है ,आज गांवों में भी रोजगार के संसाधन नहीं हैं, मनरेगा योजना में भी मजदूरी केवल 201 रुपये है, जिसमे पहले से काफी श्रमिक मजदूर जुड़े हुए है ,ऐसे में शहरों से अभी गए हुए ,मजदूरों को रोजी रोटी का व्यवस्था कैसे होगा ? वही दूसरी तरफ देश के कुछ रहीस लोग गरीबों पर ही कोरोना महामारी का भी आरोप लगा देते है, बोलते हैं कि गरीबों के कारण यह करोना का रफ्तार बढ़ा है, अब इनको मैं कैसे समझाऊं कि हमारा गरीब तबका जहाज से नहीं चलता है, जहाजों में बैठकर आप लोग आएं और आप हमारे यहां लाए,फिर जो वर्षों तक आपके शहर को चमकाने में हमारे प्रवासी मजदूर दिन रात एक किए थे उसको आप रोटी तक के लिए भी नहीं पूछते हो, बल्कि घटिया राजनीति करते हो झूठी आश्वासन देते हो फिर सोशल मीडिया पर उसका आप मजाक भी बनाते रहते हों, हालांकि सभी लोग ऐसे ही नहीं करते बहुत से लोग आज भी मानवता के रास्ते पर चलते हुए जरूरतमंद लोगों को मदद दे रहे हैं, आज आप सभी से मेरा विनम्र निवेदन है कि आप भी अपने सामर्थ्य अनुसार जो भी जरूरतमंद आपके आंखों से दिखे तो जरूर आगे बढ़कर उसका साथ दे।
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