कविता रचयिता- डॉ. अशोक कुमार वर्मा
संभल जाओ रै सारे भाईयों, न प्रकृति तै खिलवाड़ करो।
धरती खोदी अंबर छेदा, अब और न संहार करो।
संभल जाओ रै सारे भाईयों, न प्रकृति तै खिलवाड़ करो....
पहाड़ काटे पेड़ काटे, न जंगलों का उजाड़ करो।
संभल जाओ रै सारे भाईयों, न प्रकृति तै खिलवाड़ करो....
कंक्रीट की सड़क बना कर, न पृथ्वी का विनाश करो।
संभल जाओ रै सारे भाईयों, न प्रकृति तै खिलवाड़ करो....
नदियों को दुषित करके, न इतना तुम पाप करो।
संभल जाओ रै सारे भाईयों, न प्रकृति तै खिलवाड़ करो....
पीने को भी तरस जाओगे, न गंदगी का बहाव करो।
संभल जाओ रै सारे भाईयों, न प्रकृति तै खिलवाड़ करो....
जनसँख्या न इतनी बढ़ाओ, धरती माँ पर उपकार करो।
संभल जाओ रै सारे भाईयों, न प्रकृति तै खिलवाड़ करो....
धरती भी छोटी पड़ जागी, मिलकर सब विचार करो।
संभल जाओ रै सारे भाईयों, न प्रकृति तै खिलवाड़ करो....
अन्य जीव जंतुओं पर भाइयों, न इतना अत्याचार करो।
संभल जाओ रै सारे भाईयों, न प्रकृति तै खिलवाड़ करो....
वो हैं पर्यावरण मित्र, यह बात थाम स्वीकार करो।
संभल जाओ रै सारे भाईयों, न प्रकृति तै खिलवाड़ करो....
बड़े बड़े हिमखंड पिघल रहे, न इतना अधिक तापमान करो।
संभल जाओ रै सारे भाईयों, न प्रकृति तै खिलवाड़ करो....
धरती माता धधक रही है, न आपदाओं का आह्वान करो।
संभल जाओ रै सारे भाईयों, न प्रकृति तै खिलवाड़ करो....
पैट्रॉल डीज़ल के प्रयोग करने में, थोड़ा थाम विचार करो।
संभल जाओ रै सारे भाईयों, न प्रकृति तै खिलवाड़ करो....
डॉ. अशोक कुमार वर्मा
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