ये जिन्दगी हमारी, है मौत से भी भारी,
संकटों को झेला हिम्मत नहीं है हारी।
चलता रहा सदा , मंजिल मिले हमारी,
पर धूंध ना छंटा , चहुँ ओर मारा मारी।
सुबहा से शाम तक यूं खोज मेरी जारी,
ठहरा हुआ समय है,जीने की बेकरारी।
कांटो भरे चमन में,फूलों की वफादारी,
बंदिशों का पहरा, कदम दर पहरेदारी।
धूप ,वर्षात,ठंडक तंम्बू में दिन गुजारी,
चाहा नहीं कभी महलों की तीमारदारी।
मुक्तेश्वर सिंह मुकेश
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