जी हां कुछ बातें हमेशा कैद में पड़ी रहती है। वे जन्म लेती है हृदय में भावों की गहराई से और वहीं अपना जीवन गुजार देती है। उन्हें मिली कैद का भी कारण होता है, उन्हें शांति बिगाड़ने की शंका में मिलती है कैद। क्योंकि हृदय भयभीत होता है, कि यदि इन्हें आज़ाद कर दिया तो सब बदल जाएगा। हो सकता है कि बदलाव सकारात्मक हो परन्तु नकारात्मक का संदेह सदैव अधिक ही रहता है। इसलिए हृदय बचता है जोखिम मोल लेने से और ये बातें कैद में पड़ी रहती है। पर ये बातें सदैव चाहती है स्वतंत्रता ,चाहती है होंठों में घूमते हुए बाहर जाना,हवा में बहना, जहां कोई इन्हें सुन सकें। और कभी कभी ये आज़ादी इसे नसीब भी हो जाती है। परंतु इसके भी केवल दो मार्ग हैं पहला हृदय को सकारात्मक बदलाव का आश्वासन या कम से कम जोखिम का वादा, हालांकि इसके लिए लंबी पेशी होती है हृदय व मस्तिष्क के बीच, पर यह तब भी बेहतर मार्ग होता है पूरी तरह वैधानिक और वैधानिक प्रक्रियाओं की ही तरह अत्यंत धीमा। और दुसरा मार्ग होता है जो अचानक खुलता है भावनाओं के अत्यधिक दबाव के बीच जब होंठों के सारे ताले टूट जाते हैं , मस्तिष्क का नियंत्रण छूट जाता है तब ये बातें हो जाती है आज़ाद, पूर्णतः अनियंत्रित और भयावह रूप से।
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