वीरेन्द्र बहादुर सिंह
लोहड़ी और मकर सक्रांति आ रहे हैं। ये नए साल के ये पहले त्योहार हैं। पुराने साल के ज्यादातर त्योहार हम मना नहीं पाए। पुराने साल की कड़वी यादें सभी के पास हैं, पर अच्छी बात यह है कि हम सभी का वह खराब समय गुजर गया। नए साल की शुरुआत में हम सभी को अब पॉजिटिव बात ही करनी चाहिए। ऐसे में कवि दुष्यंत कुमार की एक कविता याद आ रही है।
इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है,
नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है,
एक चिनगारी कहीं से ढूंढ़ लाओ दोस्तों,
इस दिए में तेल से भीगी हुई बाती तो है,
एक खंडहर के हृदय सी, एक जंगली फूल सी
आदमी की पीर गूंगी ही सही, गाती तो है,
एक चादर सांझ ने सारे नगर पर डाल दी,
यह अंधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है,
निर्वसन मैदान में लेटी हुई है जो नदी,
पत्थरों से ओट में जाकर बतियाती तो है,
दुख नहीं कोई कि अब उपलब्धियों के नाम पर,
और कुछ हो या न हो, आकाश सी छाती तो है।
नया सवेरा हमेशा नया उत्साह, उमंग लेकर आता है। हम सब इस उत्साह को कितना स्वीकार करते हैं, यह हम पर निर्भर करता है। अंधेरा कितना गहरा है, इसे कहने से क्या होने वाला है। सवाल मात्र एक दीप प्रकट करने का है। 2020 की यादें कितनी भी खराब हों, आखिर उन्हेें सीने पर ले कर हम कब तक घूमते रहेंगें? यह हमेें ही तय करना है। पूराने साल में अगर हम बीमार हुए हैं तो नए साल में हमें स्वास्थ्य के प्रति जागरुक रहना है। पुराने साल में धंधा-रोजगार ठप्प हो गया है तो नए साल मे प्लानिंग कर के अपने बिजनेस को आगे बढ़ाना
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