जख़्म ऐ दिल मत दिखा जमाने को।
कि तूने समझा ही क्या जमाने कोlहाथ मिला हमसाया बन।
हमदर्द बना जमाने को ।
देखना चाहता असली चेहरे ।
आईना दिखा दे जमाने को ।
दोगली सियासत फ़िज़ा की।
बेनकाब कर दिखा जमाने को ।
अपने ही लोग कांटे बिछाएंगे ।
बनाकर चमन,दिखा जमाने को ।
मोहब्बत,इश्क,शायरी बेमानी।
शोहरत कमा, दिखा जमाने को,
कर दे रा्हें संजीव फूलों भरी,
कवि तू ही चला जमाने को।।
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