गोंदिया - भारत में हम किसी भी साहित्यिक, शैक्षणिक, ज्ञान, बौद्धिक क्षमता, इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी,से संबंधित किसी भी प्रोग्राम में हम सबसे पहले मां सरस्वती की स्तुति से शुरुआत करते हैं। क्योंकि इस क्षेत्र में जुड़े ज्ञान का वरदान हमें मां से मिला है। अतः हम सब मानवों का यह कर्तव्य व जिम्मेदारी है कि इस शिक्षा रूपी वरदान का हम सब मिलकर सम्मान करें। वर्तमान समय में हम प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से पढ़ते व सुनते आ रहे हैं कि शिक्षा क्षेत्र का तीव्र गति से भारत में विकास हुआ है। परंतु एक सच्चाई यह भी है कि कई क्षेत्रों में कुछ शैक्षणिक संस्थाएं अपने रास्ते से भटकने का अंदेशा भी महसूस होता है।क्योंकि हम देख रहे हैं और मीडिया के माध्यम से पढ़ सुन भी रहे हैं कि, शिक्षा का व्यवसायीकरण की ओर कदम बढ़ गया है जहां शिक्षा की अपेक्षा धन को महत्त्व देने की ओर कदम बढ़ गए हैं। जिसे सरकार, शासन, प्रशासन व नागरिकों द्वारा मिलकरके इसे रोकना होगा, तथा बड़े हुए कदमों को सही रास्ते पर लाने केलिए संकल्पित होकर एकजुट होना होगा, ताकि भटकी हुई शैक्षणिक संस्थाओं को वापस अपने शैक्षणिक उद्देश्यों की ओर लाया जा सके।....इस विषय से संबंधित ही एक मामला मंगलवार दिनांक 19 जनवरी 2021 को माननीय इलाहाबाद हाई कोर्ट नंबर 40 में 2 जजों की बेंच जिसमें माननीय न्यायमूर्ति मुनीश्वर नाथ भंडारी तथा माननीय न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की बेंच के सम्मुख स्पेशल अपील डिफेक्टिव क्रमांक 39/2021 जो, 8 दिसंबर 2020 के जजमेंट को चैलेंज करने से उदय हुई थी। जिसमें माननीय बेंच ने अपने 5 पृष्ठों और मेमो ऑफ अपील के अपने आदेश के पेज नंबर 4 पैरा नंबर 1 में कहा कि शिक्षा को व्यवसाय के रूप में ले लिया गया है या डिग्री बेचने के उद्योग के रूप में, इसे रोकने की आवश्यकता है। बेंच ने बी.एड में 25 सीटों को भरने के लिए अपीलकर्ताओं/याचिकाकर्ताओं की संस्था द्वारा उठाए गए कदम पर नाराजगी दिखाते हुए यह टिप्पणी की। इन सभी सीटों को सीधे तौर पर भर दिया गया था,जबकि केंद्रीकृत काउंसलिंग के जरिए इन सभी सीटों के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के 25 उम्मीदवारों के नामों की सिफारिश की गई थी।न्यायालय के समक्ष मामला अपील के माध्यम से, 08 दिसंबर 2020 के निर्णय को चुनौती दी गई थी। इस निर्णय के तहत अपीलकर्ताओं/याचिकाकर्ताओं (शिक्षा संस्थानों) की तरफ से दायर की गई रिट याचिका को खारिज कर दिया गया था। अपीलकर्ताओं/ याचिकाकर्ताओं ने प्रस्तुत किया था कि उन्हें सुनवाई का अवसर दिए बिना, गैर-अपीलकर्ताओं/ प्रतिवादियों द्वारा किए गए तर्क पर विचार करते हुए रिट याचिका पर निर्णय ले लिया गया था। इस प्रकार, न्यायालय के समक्ष यह तर्क दिया गया था कि एकल न्यायाधीश द्वारा पारित किए गए निर्णय को पूर्वोक्त आधार पर रद्द कर दिया जाना चाहिए। केस के तथ्य बी.एड कोर्स में प्रवेश के लिए केंद्रीकृत काउंसलिंग में पच्चीस अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों/ छात्रों के नाम की सिफारिश की गई थी। हालांकि, उन उम्मीदवारों/ छात्रों में से किसी को भी प्रवेश नहीं दिया गया, बल्कि अपीलकर्ताओं/ याचिकाकर्ताओं के संस्थान ने खाली सीटों को सीधे भर दिया। संस्थान ने तर्क दिया कि जब कोई भी छात्र प्रवेश के लिए इच्छुक नहीं था तो अपीलकर्ताओं/याचिकाकर्ताओं के संस्थान ने नियमों के अनुसार रिक्त सीटों को भर दिया।यह भी तर्क दिया गया था कि नियम ऐसी स्थिति में सीधे प्रवेश की अनुमति देते हैं, जब उम्मीदवार प्रवेश लेने में विफल हो जाते हैं और इसप्रकार संस्थान द्वारा पच्चीस अन्य उम्मीदवारों/छात्रों के इन सीटों पर सीधे प्रवेश देने की कार्रवाई में कोई अवैधता नहीं थी। अपनी कार्रवाई को सही ठहराने के लिए, एक दलील दी गई थी कि केंद्रीकृत काउंसलिंग में प्रवेश के लिए जिन उम्मीदवारों के नाम की सिफारिश की गई थी,उनमें से कोई भी प्रवेश लेने के लिए इच्छुक नहीं था और इसके लिए कुछ उम्मीदवारों के हलफनामे की एक प्रति संलग्न की गई थी। न्यायालय ने आगे कहा,अपीलकर्ता याचिकाकर्ताओं की संस्था द्वारा एक ही भाषा वाले हलफनामे प्राप्त किए गए थे, लेकिन अगर इन हलफनामों को अलग-अलग तारीखों पर अलग-अलग उम्मीदवारों द्वारा दिया गया था,तो ऐसा नहीं हो सकता है। एक ही भाषा वाले हलफनामों को अपीलकर्ताओं/ याचिकाकर्ताओं के संस्थान के निर्देश पर तैयार किया गया था और ऐसा लगता है कि ऑनलाइन भुगतान की गई राशि का रिफंड देने के लिए इनको तैयार किया गया है। न्यायालय ने यह भी रेखांकित किया कि प्रवेश के लिए पच्चीस उम्मीदवारों/छात्रों के नाम की सिफारिश की गई थी। ऐसा नहीं हो सकता है कि इनमें से किसी ने भी प्रवेश न लिया हो। कोर्ट ने कहा कि,यह एक असाधारण स्थिति होगी जब प्रवेश के लिए केंद्रीकृत परामर्श द्वारा अनुशंसित उम्मीदवारों में से कोई भी प्रवेश लेने से इनकार करेगा, जबकि हर किसी को शिक्षक के पद पर नियुक्ति के लिए बी.एड. कोर्स करने की बहुत ज्यादा आवश्यकता है। तथ्यों को समग्रता को देखते हुए,न्यायालय को एकल न्यायाधीश के फैसले में कोई अवैधता नहीं मिली क्योंकि यह एक एक्ट-पार्टी आदेश नहीं था, बल्कि अपीलकर्ता /याचिकाकर्ताओं की तरफ से दायर याचिका पर सुनवाई के समय उनकी उपस्थिति के समय उठाए गए मुद्दे पर चर्चा करने के बाद दिया गया था।इस प्रकार, 8 दिसम्बर 2020 को दिए गए फैसले को चुनौती देने वाली अपील विफल रही और खारिज कर दी गई। अंत में,अदालत ने कहा कि वह उचित कार्रवाई के लिए इस मामले को राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एन.सी.टी.ई) को भेजने के लिए इच्छुक थी (उनके आचरण को देखते हुए संस्था की मान्यता समाप्त करने सहित), लेकिन इस अपील में व याचिका में एन.सी.टी.ई एक पक्षकार नहीं थी,इस कारण से अदालत ने सू-मोटो संज्ञान लेने से अपने आप को रोक लिया, लेकिन संस्था को चेतावनी दी है कि वह इस तरह की प्रैक्टिस में लिप्त न रहें। गैर-अपीलीय विश्वविद्यालय को हालांकि यह लिबर्टी दी गई है कि यदि अपीलकर्ताओं/याचिकाकर्ताओं की संस्था भविष्य में इसी तरह की प्रैक्टिस में लिप्त पाई जाए तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है और उस बारे में एन.सी.टी.ई. को भी सूचित किया जाए ताकि आवश्यक कार्यवाही की जा सकें।
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