एक बात तय और निश्चित मान लीजिए कि किसानों का आंदोलन किसी भी रूप में सही था,सही है मगर अब क्या रहेगा,इसमें अभी संशय हैं?किसानों की मांगे भी जायज हैं,मानी ही जानी चाहिए थी मगर सरकार ने बहुत ही सधे हुए तरीके से गेंद किसानों के पाले में ऐसे डाली कि किसान सारे मामले को शायद समझ ही नहीं पाए?हो सकता समझ पाए हों मगर फिलवक्त हमारा मानना है कि शायद नहीं।यहाँ यह तो नहीं कहा जा सकता कि किसान नेताओं में समझ की कमी है पर सम्भवतः सरकार ने एक रणनीति के तहत ऐसा करने में कामयाब हो गई लगती है।इसी का परिणाम है कि सरकार पर किसान आंदोलन का जो दबाव बना था,उसे सरकार ने दबाब माना भी पर धीरे-धीरे सरकार उस दबाव से मुक्त होती जा रही है तभी तो उसने किसानों को अंतिम प्रस्ताव दे दिया और गेंद किसानों के पाले में डालकर अपनी और से बातचीत के दरवाजे बंद कर दिए,यह कहकर कि अगर किसान किसी निर्णय पर पहुँचते हैं तो सरकार बातचीत को तैयार है,अब फैसला किसानों को करना हैं,यहीं पेंच हैं।अंतिम दौर की बातचीत का जो रवैया सरकार का था,वह उसकी रणनीति बिल्कुल साफ़ कर देता है।अब देखिए सरकार ट्रैक्टर रैली से काफी सकते में थी लेकिन ठीक उससे पहले गेंद किसानों के पाले में डालकर रैली की इजाजत दिलवा दी और एक तरह से किसान आंदोलन के दबाव से मुक्त होने का काम एक झटके में ही कर गई।यहाँ एक अवसर था किसानों के पास कि जो प्रस्ताव सरकार ने दिया है,उसे दो साल की बजाय तीन साल तक करवाकर,साथ ही एमएसपी पर कानून बनवाकर आंदोलन को सफलता की और ले जाकर समाप्त कर देते ताकि एक जड़ता टूटती और आगे का रास्ता खुलता।वह यह होता कि फिर एक अलग तरह का आंदोलन चलाकर तमाम चुने हुए प्रतिनिधियों पर दवाव बनाया जाता कि वो संसद में इन कानूनों पर बहस करें और इन्हें रद्द करवाएं।साथ ही यह विकल्प भू खुला रहता कि 2024 में जब चुनाव होते तो तमाम राजनैतिक दलों पर दबाब बनाया जाता कि इन कानूनों को लागू न किया जाए।इस समय बेशक इस ट्रैक्टर रैली को विश्व का मीडिया दिखाएगा,बेशक यह ट्रैक्टर रैली ऐतिहासिक होगी क्योंकि सौ किलोमीटर तक होगी और इसमें लाखों ट्रैक्टर भाग लेंगे।बाकायदा तिरंगा लगा होगा।वैसे किसी भी सूरत में देश के राष्ट्रीय पर्व पर तिरंगे के साथ मार्च पास्ट करना सम्भवतः देश विरोधी नहीं हो सकता बल्कि यह हम सबके लिए गर्व की बात है।साथ ही यह भी साफ़ हो गया कि दिल्ली पुलिस इस ट्रैक्टर रैली का एक रूट प्लान देगी,जिससे किसी भी प्रकार के टकराव की सम्भावना भी नहीं रहेगी।सवाल इससे आगे खड़ा होता है कि अब आगे क्या?क्योंकि जैसे-जैसे आंदोलन लम्बा चलेगा,वैसे-वैसे आंदोलन से लोग उकताते चले जाएंगे और दूसरी तरफ ट्रैक्टर रैली के बाद सरकार को बातचीत की टेबल पर लेकर आना काफी मुश्किल होगा क्योंकि अब तक बातचीत के लिए पहल सरकार की ओर से थी,बेशक वह अड़ी हुई थी मगर अब बातचीत की पहल किसानों को करनी होगी और सरकार के तेवर पहले की अपेक्षा ज्यादा कड़े होंगे।ट्रैक्टर रैली के बाद क्या प्लान होगा क्योंकि अगर आंदोलन ऐसे ही चला तो ज्यादा सम्भावना आंदोलन के टूटने की बन सकती है क्योंकि पिछले दिनों से कई बातें रह-रहकर निकलकर भी आ रही है,जिससे निपटना होगा।आगे की रणनीति में क्या होगा क्योंकि अभी निकट भविष्य में ऐसा कोई दिवस नहीं है,जिससे सरकार पर दबाब बनाया जा सके।दूसरी तरफ सरकार आज भी यही कह रही है कि ये तीनों बिल किसानों के हित में है और हम इन्हें वापिस नहीं लेंगे क्योंकि हम कृषि में सुधार चाहते हैं और किसानों की आय दोगुनी करना चाहते हैं।कई तरह के अनर्गल आरोप सरकार की और से पहले भी लगते रहे हैं।अब हमारी नजर में यह हो सकता है कि या तो सरकार को बातचीत के लिए राजी किया जाए और तीन साल के लिए कानूनों पर रोक लगवाकर एमएसपी पर गारन्टी का कानून बजट सत्र में बनवा लिया जाए और इस आंदोलन को वापिस लेकर किसानों की तमाम समस्याओं को लेकर नए सिरे से अलग तरह का आंदोलन चलाया जाए।जिसमें सभी दलों पर दबाब बनाया जाए ताकि वो मजबूर हों किसानों की बातें मानने के लिए या फिर अभी इस आंदोलन को जन आंदोलन का स्वरुप देकर एक लम्बे समय तक का आंदोलन बनाया जाना चाहिए ताकि केवल ये सरकार नहीं बल्कि सता में आने वाली हर सरकार जनता के हित की नीतियां बनाने के लिए विवश हो सकें वरना ये आंदोलन पिटा तो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण होगा देश और समाज के लिए।
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