एक रात में रद्दी
अखबार हो क्या?
खून के प्यासे
तलवार हो क्या?
करते हो कविता
बेकार हो क्या?
डरते हो खुद से
गद्दार हो क्या?
लौटाया सबने
पुरस्कार हो क्या?
सर पर हो चढ़ते
बुखार हो क्या?
बढ़ते ही जाते
उधार हो क्या?
रुलाते हो सबको
प्यार हो क्या?
जीत की बधाई
हार हो क्या?
सबकी है नजरें
इश्तहार हो क्या?
नींद नहीं आती
मेरी तरह बेचैन हो क्या...??
प्रफुल्ल सिंह "बेचैन कलम"
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