Monday, December 28, 2020

पर्यावरण का प्रकोप- विकास की आँधी

शहरों के घुटन भरे वातावरण, भागदौड़ आपाधापी की जिंदगी,

चिमनियो के धुँए से निकलकर प्रकृति के रमणीय आंचल में शरण लेने की व्यापक उन्माद लिए मनुष्य प्राकृतिक रूमानियत का स्रोत क्यों खोज रहा है।? ओजोन परत का क्षरण पश्चिमी दुनिया की बेबुनियाद वादे का भयंकर खोखला परिणाम है। पराबैगनी किरणों का आगमन धरित्री के सुहाग को लूट रहा है। मानव जीवन के लिए इस प्रकृति के अधूरेपन को भरना बहुत ही जरूरी है। ग्लेशियरों का पिघलना, अरब के रेगिस्तान में भारी वर्षा, बाढ़, भूकंप, भूस्खलन, अम्लीय वर्षा, असंतुलित पर्यावरण की व्यापक अभिव्यक्ति है। नदियों की सांसे रुकी हुई है नदियों के रास्ते में रेगिस्तान के बरखान बनते जा रहे हैं इसके लिए कौन उत्तरदाई है। वैश्विक और राष्ट्रीय नीतियों में कुछ ना कुछ तो त्रुटियां जरूर है। क्लोरोफॉर्म का उत्सर्जन मिथाईल एवं ब्रोमाइड गैस एक गंभीर समस्या है। 1970 के दशक के उत्तरार्ध से ओजोन रिक्तिकरण तीव्र गति से हुआ है। ओजोन क्षरण  एक वैश्विक समस्या है तथापि इसका निदान वैश्विक व्यक्तिगत दोनों स्तर पर होना बहुत ही जरूरी है। वैश्विक प्रतिद्वंदिता , विकसित देशों की प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था, पर्यावरण असंतुलन का प्रमुख कारण है। मनुष्य के असीम श्रद्धा के कारण पर्यावरण प्रारंभिक दौर में स्वतः सुरक्षित था। लेकिन विकसित देशों के विकास की आँधी ने पर्यावरण को अत्यधिक नुकसान पहुंचाया। पर्यावरण संतुलन के स्वर्णिम भविष्य के सपने व्यर्थ और निरर्थक हो गए। विश्व की विशाल जनसंख्या का सर्वव्यापक असर पर्यावरण पर दिखाई पड़ने लगा है। पर्यावरण  का दारूण  परिदृश्य जनपुंज का आघात, अविश्वास का परिणाम है। बलपूर्वक औद्योगिकरण करना ना तो समझदारी है ना ही बुद्धिमानी है यह विवेक की मूर्खता का परिणाम है। प्रकृति की असीम संपदा का क्षरण मानव समाज ने स्वयं किया है । विश्व की प्रत्येक सभ्यता में प्रकृति पूजा का समाधान है लेकिन मनुष्य के लालच के वशीभूत होकर प्रकृति का निरंतर दोहन कर रहा है। पर्यावरण संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय चिंताएं तो व्यक्त जरूर की जाती हैं परंतु कोई ठोस पहल नहीं की जाती। अमेरिका का क्यूटो की संधि में शामिल ना हो ना इस बात का सूचक है कि विकसित देशों ने बड़ी-बड़ी बातें तो की परंतु कोई ठोस उपाय पर्यावरण संरक्षण के लिए नहीं निकाला। विश्व का सबसे शक्तिशाली राष्ट्र पर्यावरण संरक्षण के बचाव से दूर होते जा रहे हैं तो पर्यावरण संरक्षण की सफलता तो स्वतः संदिग्ध हो जाएगी।

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