[ सोशल मीडिया लोगों की प्राइवेसी के अधिकार का हनन कर रहा है और उनको इस बात का पता भी नहीं चल रहा है. हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि लगता है कि जैसे सोशल मीडिया और लोकतंत्र के बीच लड़ाई चल रही है. सोशल मीडिया निरंकुश होता जा रहा है. लेकिन अब इस पर अंकुश लगाने की कवायद शुरू हो गई है। ]
सोशल मीडिया अभिव्यक्ति का काफ़ी सशक्त माध्यम बन चुका है। यह ऐसा प्लेटफॉर्म है, जो केवल व्यक्तिगत संवाद के लिए नहीं है, बल्कि यह राजनीतिक और सामाजिक सरोकारों से भी जुड़ा है। यह संसार के विभिन्न कोनों में बैठे लोगों से संवाद का महत्त्वपूर्ण माध्यम है साथ ही यह संपर्क, संवाद, मनोरंजन तथा नौकरी आदि के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर रहा है। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर मैन्युअल कैसट्ल के अनुसार “सोशल मीडिया के विभिन्न माध्यमों फेसबुक, ट्विटर आदि के जरिये जो संवाद करते हैं, वह मास कम्युनिकेशन न होकर सेल्फ कम्युनिकेशन है”। लेकिन आज जिस तरह फेसबुक, ट्विटर आदि पर प्रतिक्रिया हो रही है और टेलीविज़न चैनलों पर इसके उदाहरण दिये जा रहे हैं, इससे यह स्पष्ट हो गया है कि यह केवल सेल्फ कम्युनिकेशन नहीं है, बल्कि यह अब मास कम्युनिकेशन बन चुका है।
आज के तकनीकी युग में इसके द्वारा केवल एक सेकेंड में हजारों लोगों तक अपना संदेश पहुँचाया जा सकता है। आज सोशल मीडिया संवाद, संपर्क और मनोरंजन से आगे बढ़कर नौकरी खोजने और सकारात्मक एवं नकारात्मक सोच को भी आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाह रहा है। आज सोशल मीडिया के कारण हमारी जीवन-शैली बदल गई है। हमारी ज़रूरतें, कार्य-प्रणालियाँ, रुचियाँ आदि भी इसके माध्यम से सामने आ रही हैं। आज सुबह होते ही व्हाट्सअप पर कई तरह की सूचनाएँ मिल जाती हैं। सोशल मीडिया ने राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक विसंगतियों को समाप्त करने में अपनी सक्रिय भागीदारी दिखलाई है, तो इसका कुछ नकारात्मक पक्ष भी सामने आ रहा है। चूँकि यह एक सेकेंड में ही सूचनाएँ लोगों तक पहुँचा सकता है जिससे नकारात्मक पोस्ट से लोग काफ़ी कुप्रभावित भी होने लगे हैं। सच्चाई तो यह है कि टेलीविज़न ने लोगों से उसकी अपनी सोच छीनने और अपनी सोच उनपर थोपने की जो पहल आरंभ की, उसे सोशल मीडिया ने काफ़ी आगे बढ़ा दिया है। कई सूचनाएँ लोगों को भ्रमित करने लगी हैं। सत्य को असत्य और असत्य को सत्य सिद्ध करने में भी सोशल मीडिया सक्रिय भूमिका निबाह रहा है।
आज सोशल मीडिया के द्वारा हम पुराने परिचित लोगों को भी खोज लेते हैं। व्हाट्सअप पर हम एक ही छत के नीचे रहने वाले लोगों को गुड मॉर्निंग का संवाद भेजते हैं पर कमरे में दिखने पर उन्हें अपनी व्यस्तताओं में भूल जाते हैं और उनसे बातचीत की ज़रूरत महसूस नहीं करते। इसने पारिवारिक ही नहीं सामाजिक संबंधों को भी काफ़ी प्रभावित किया है। अपरिचित लोग केवल एक बार मिलने पर हमारे अपने हो जाते हैं, पर अपनों की भावनाओं की ओर हमारा ध्यान नहीं जाता। सोशल मीडिया भारत में बदल रही संस्कृति और समाज की तस्वीर ही हमें नहीं दिखाता, बल्कि कई ऐसे समाचारों को भी हमारे सामने लाता है, जिसका सामाजिक सरोकार है। आज सोशल मीडिया हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गया है, जिसके बिना हमारे कार्य पूरे नहीं हो पाते हैं।
सोशल मीडिया एक अपरंपरागत मीडिया है, जो एक वर्चुअल वर्ल्ड बनाता है। यह एक विशाल नेटवर्क है, जो पूरे विश्व को जोड़कर रखने में सक्षम है। यह संचार का काफ़ी अच्छा माध्यम है, जिससे काफ़ी तेज़ गति से सूचनाओं का आदान-प्रदान होता है। इसके माध्यम से लोकतंत्र को मज़बूत बनाया जा सकता है, किसी उत्पाद को लोकप्रिय बनाया जा सकता है, साथ ही जनता को जागरूक किया जा सकता है। आज फ़िल्मों के ट्रेलर, टीवी प्रोग्राम का प्रसारण आदि भी सोशल मीडिया के माध्यम से किया जा रहा है। वीडियो और ऑडियो चैट भी इसके माध्यम से सुगम हो गई हैं, जिससे यह समाज और राष्ट्र को विकसित एवं सशक्त करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
सोशल मीडिया की नैतिकता और स्वच्छंदता के संदर्भ में कहा जा सकता है कि इसपर अभी तक अंकुश नहीं लगा है, जिससे जो ख़बरें मीडिया के अन्य माध्यमों के द्वारा लोगों तक नहीं पहुँच पातीं, वे भी सोशल मीडिया के द्वारा लोगों तक पहुँच जाती हैं। हालांकि देश में कई स्थानों पर सोशल मीडिया के माध्यम से ग़लत ख़बर प्रसारित होने के कारण मॉब लिंचिंग की घटनाएं भी देखने को मिली हैं।
आपसी विरोध को दर्शाने, भड़ास निकालने और विरोधियों को हानि पहुँचाने के लिए भी सोशल मीडिया का धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है। अश्लील चित्र, धार्मिक उन्माद, हिंसा फैलाने वाले आलेख आदि का इसपर शेयर और फॉरवर्ड काफ़ी होता है, जिसपर नियंत्रण नहीं है। लोग एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए आईआईटी सेल का प्रयोग करते हैं और अपनी पोस्ट द्वारा जनता को भ्रमित करते हैं। सोशल मीडिया पर व्यक्तिगत आक्षेप काफ़ी होने लगा है, अपराधी प्रवृत्तियाँ और अपसंस्कृति सोशल मीडिया के माध्यम से फैलने लगी हैं, साइबर अपराध की घटनाएँ भी दिनों दिन बढ़ती जा रही हैं,जिनपर अंकुश लगना चाहिए। सोशल मीडिया भारत जैसे लोकतंत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाह सकता है, बशर्ते यह अपनी नैतिक ज़िम्मेदारी का एहसास कर ले।
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