कटु अनुभवों के साथ वर्ष 2020 का अब अंत हो गया , कोरोना महामारी ने भारत समेत पूरी दुनियां को प्रभावित किया है ,अब हम सब नए साल 2021 में नई उम्मीद के साथ नई शुरुआत आज से करने के लिए उत्सुक हैं।दोस्तों नया वर्ष आ गया जाहिर सी बात है, जब कुछ नया आता है तो पहले वाला खुद -ब-खुद पुराना हो जाता है ,वैसे भी यह तो मानव जीवन की परम्परा ही है । इस परम्परा की कड़ी को जोड़ते हुए एक और अद्भुत वर्ष विदा हो ही गया है ,और उसकी जगह पर एक नया साल अपनी संभावनाओं की सुबह और संघर्षों के दिन आज से लेकर आ ही गया हैं। अब जब नया साल दस्तक दे ही दिया है तो हर बार की तरह इस साल भी खुद से और दूसरों से कुछ वादें किए होंगे, कुछ इरादे होंगे, कुछ संकल्प लिए जाएंगे तो कुछ बदलावों को गले लगाने की बात होगीं लेकिन क्या यह वादें, इरादे, संकल्प या फिर बदलाव इतना आसान होगा जितना कि कहना ? हरगिज नहीं । हर किसी के लिए बदलावों को स्वीकार करना आसान नहीं होता है । ‘बीत गयी सो बात गयी’ कहना जितना आसान है, करना उतना आसान नहीं होता । अच्छे अनुभव भलें ही याद न रहें, पर कडवी यादें रह – रह कर कचोटती ही रहती है । इसलिए साथियों हार से उबरना भी आसान नहीं होता । बार- बार मिली हार ने न जाने कितनी बार आपके सपने और इच्छाओं का गला घोटा होगा ,लेकिन कई लोग ऐसे भी होते है ,जिनके सपनें टूट जाते है फिर भी वे महान लोग सपने देखना नहीं छोड़ते है । कहते है कि नये साल में आपने अगर सोच को नहीं बदला तो साल बदल जाने से क्या होगा ? दोस्तो अब वो वक्त आ गया है कि इस नये साल पर लिए गए संकल्पों पर अमल करने का ,अगर दिल से आप चाहते हो की अपने व परिवार के साथ ही देश दुनियां की नक्शा बदल दिया जाये तो एक दुसरे के हाथ पकड़कर साथ चलने का आज ही संकल्प लिजिये।एक बात और साथियों परिवार से बड़ी कोई सम्पत्ति नहीं है ,ये बात भी हमें 2020 ने सिखाई ही हैं , हम सभी ने देखा लॉकडाउन की वजह से हम लोगों को अपने घरों में बंद रहना पड़ा, इससे लोगों ने अपने परिवारों के साथ अच्छा और कीमती समय बिताया , पैसा कमाने की जो अंधाधुंध दौड़ चल रही थी उससे ब्रेक मिला तो लोग अपनों के साथ वक्त बिता पाए , कोरोना काल में एक ऐसी चीज़ भी हुई, जिसकी भारत में कल्पना करना भी मुश्किल था, लॉकडाउन के दौरान हमारे देश में सभी मंदिर, मस्जिद, चर्च और गुरुद्वारे बंद रहे और हम लोगों ने इसका पालन भी किया, हम सभी को ये समझने का मौक़ा भी मिला कि अगर भगवान मन में हों तो घर मंदिर से कम नहीं होता हैं ।
2020 ने साथियों हमें यह भी सिखाया हैं कि स्वास्थ्य से बड़ी पूंजी कोई नहीं है, जो स्वस्थ है वही सुखी है । ध्यान से देखे तो 2020 में बहुत से लोगों ने अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देना शुरू किया भी हैं,कसरत और योगा को बोझ समझने वाले लोगों ने भी इसका महत्व समझा हैं , इम्युनिटी को बढ़ाने के लिए आयुर्वेदिक पद्धति को घर घर में अपनाया गया , हम लोगों ने खूब काढ़ा भी पिया, अगर कोरोना नहीं होता को शायद आयुर्वेदिक पद्धति का ये महत्व भी हम लोग समझ नहीं पाते , सिंगापुर में तो इसी वर्ष डिजिटल हेल्थ पासपोर्ट की शुरुआत भी हुई है यानी साथियों हेल्थ ही अब हम सभी का नया पासपोर्ट है ,इसीलिए इस नव वर्ष में संकल्प लीजिए कि किसी भी प्रकार के नशा ना करेंगे व साथ ही कुछ समय जरूर व्यायाम और योगा के लिए निकालेंगे !
नव-वर्ष का आगमन सदा ही हर्षोल्लास का अवसर होता है, ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि इस नये वर्ष में समस्त विश्व के लोगों में भरपूर शान्ति, सद्भाव व समृद्धि बनी रहे। आप संकल्प लीजिए कि हमेशा चेहरे पर मुस्कान रखना है ,चाहे हालत कितना भी बुरा क्यों ना हो , अगर कोई भी आपसे पूछे भी कि, इतने दुःख के चलते कैसे मुस्कुराते रह सकते हैं? सच है, इतने दुःख में खुश रहना आसान नहीं होता लेकिन उदास रहना भी तो कोई समाधान नहीं है। हमारे हाथ में चोट लग जाये तो रोते बैठने से तो यह ठीक नहीं होगा, उल्टे इन्फेक्शन ही हो जायेगा। चाहिए तो यह कि घाव को साफ़ कर के उस पर मरहम लगाया जाये। आशा का दामन छोड़ देने पर तो हम किसी परकटे पंछी जैसे हो जायेंगे। जिस प्रकार ऐसा पंछी उड़ान नहीं भर पाता, ठीक उसी प्रकार हम भी जीवन के आकाश में ऊँचे नहीं उड़ पाएंगे। हम अपने मनोबल को टूटने नहीं दे सकते। सच तो यह है कि किसी भी दूसरे फैसले की तरह, प्रसन्न रहना भी एक फैसला है, एक पक्का फैसला कि, चाहे कुछ भी हो जाये, मैं हमेशा प्रसन्न और निड़र रहूँगा। साथियों लक्ष्य के प्रति हमारे मन में प्रेम होगा तो आगे बढ़ते रहने तथा लक्ष्य की प्राप्ति की प्रेरणा मिलेगी। फिर पीड़ा हो तब भी हम कमज़ोर नहीं पड़ेंगे। पीड़ा में भी एक मिठास बनी रहेगी। बच्चे के साथ प्यार और उसे बाँहों में लेने की भावना ही है, जो एक माँ को प्रसव-काल तक बच्चे का बोझ उठाये रखने और प्रसव की भारी पीड़ा सहने की शक्ति व इच्छा प्रदान करती है। लक्ष्य के प्रति हमारा प्रेम ही, हमें सब विघ्न-बाधाओं का सामना करने की शक्ति प्रदान करता है , नए साल के आते ही लोगों को अक्सर कहते पाया जाता है कि, पिछला साल कितनी जल्दी बीत गया ना! पता ही नहीं चला। वास्तव में, समय की चाल न धीमी होती हैं और न ही ते़ज़। स्थितियों तथा उनका सामना करने के हमारे भाव पर निर्भर करता है कि समय की चाल हमें धीमी मालूम होती है या तेज़! हो सकता है कि हम बहुत व्यस्त रहे हों लेकिन हमें स्वयं से प्रश्न करना होगा कि, मैं इतना व्यस्त क्यों था? मैं नित्य-वस्तु की प्राप्ति में इतना व्यस्त रहा अथवा अनित्य-वस्तु की? आत्म-निरीक्षण कर के अपनी आध्यात्मिक प्रगति के आकलन के लिए, नए वर्ष में प्रवेश करने का समय अच्छा समय है। यहाँ अगर हमें लगे कि हम आगे बढ़ने की बजाय नीचे फिसले हैं तो कोई संकल्प लें और गिरने से बच जाएँ और फिर उठ कर आगे बढ़ें। हमें नए वर्ष में नयापन आख़िर क्यों लगता है? 31 दिसंबर और 1 जनवरी में क्या सचमुच कोई फ़र्क है? हमारा मन ही इस नयेपन और आशा की भावना का निर्माण करता है। यदि हम निरंतर अपने तथा जगत के कल्याण-कार्यों में लगे रहते हैं तो हमें नयेपन, जोश और उत्साह का जरूर अनुभव होता है। इसलिए हमें चाहिए कि हम वर्तमान का सदुपयोग करें और आज का काम कल पर न टालें और पूरी तरह से सद्कर्म करने में लग जाएँ। जगत को प्रेम तथा आंनद सहित देखने का प्रयत्न करें। साथियों हम सभी चाहते हैं कि दुनियाँ में आज के मुकाबले अधिक अच्छाई और सुन्दरता हो और ऐसे जगत की रचना में हमें अपना योगदान भी अवश्य देना चाहिए।एक ऐसा नव-वर्ष हो जिसमें कोई भी भुखमरी व गरीबी का शिकार ना हो व इसके साथ ही युद्ध तथा आतंकवाद के लिए कोई स्थान न हो ,साथ ही जिसमे लिंग , धर्म या वर्ण भेद से ऊपर उठ कर,सभी लोग परस्पर आदर भाव सहित रहे । इसके साथ ही संकल्प लेते हैं कि आज से ही दूसरे की सहायता का कोई भी अवसर नहीं गवाएंगे ,व आज से हम किसी के साथ भी कठोर शब्दों का प्रयोग नहीं करेंगे व किसी की भी निन्दा नहीं करेंगे । सुख-समृद्धि भरे नव-वर्ष, 2021 के लिए आप सभी को शुभ-कामनाएं।
No comments:
Post a Comment