माना हम छोटे बच्चे हैं,
अपनी भी इक्षाएं हैं।
अपने भी तो कुछ सपने हैं,
अपनी भी आशाएं हैं।
खेल खिलौने अजब अनूठे,
अपनी भी कुछ बातें हैं।
उजले-उजले दिन हैं अपने,
सपनों बाली रातें हैं।
मन पतंग की तरह हमेशा,
उच्च उड़ाने भरता है।
अपने ढँग का काम अनोखा,
करने को मन करता है।
इंद्रधनुष सा रंग-रँगीला,
अपना तो संसार है।
जिसमें राज कुँवर के जैसा,
अपना तो किरदार है।
लेकिन कोई नहीं समझता,
अपनी सोच थोपते हैं।
उनके जैसा बनूँ, करूँ मैं,
हमसे यही बोलते हैं ।
कैसे उनको समझाऊँ मैं,
अमृत रस को पीने दो।
बचपन की मस्ती के ये दिन,
अपने ढँग से जीने दो।
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