विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि कोरोनावायरस महामारी 1918 के स्पेनिश फ्लू की तुलना में कम समय तक रहेगी। संगठन के प्रमुख टेड्रॉस गैब्रेसस ने गत 21 अगस्त को कहा कि यह महामारी दो साल से कम समय में खत्म हो सकती है। इसके लिए दुनियाभर के देशों के एकजुट होने और एक सर्वमान्य वैक्सीन बनाने में सफल होने की जरूरत है। जो संकेत मिल रहे हैं उनके अनुसार जो पाँच छह उल्लेखनीय वैक्सीन परीक्षणों के अंतिम दौर से गुजर रही हैं, उनमें से दो-तीन जरूर सफल साबित होंगी। कहना मुश्किल है कि सारी दुनिया को स्वीकार्य वैक्सीन कौन सी होगी,पर डब्लूएचओ के प्रमुख का बयान हौसला बढ़ाने वाला है।
इतिहास लिखने वाले कहते हैं कि महामारियों के अंत दो तरह के होते हैं। एक, चिकित्सकीय अंत। जब चिकित्सक मान लेते हैं कि बीमारी गई। और दूसरा सामाजिक अंत। जब समाज के मन से बीमारी का डर खत्म हो जाता है। कोविड-19 का इन दोनों में से कोई अंत अभी नहीं हुआ है, पर समाज के मन से उसका भय कम जरूर होता जा रहा है। यानी कि ऐसी उम्मीदें बढ़ती जा रही हैं कि इसका अंत अब जल्द होगा। डब्लूएचओ का यह बयान इस लिहाज से उत्साहवर्धक है।
चार महीने पहले अनुमान था कि बीमारी दो से पाँच साल तक दुनिया पर डेरा डाले रहेगी। दो साल से कम समय का मतलब है कि 2021 के दिसम्बर से पहले इसे विदा किया जा सकता है। साल के शुरू में अंदेशा इस बात को लेकर था कि वैक्सीन बनने में न जाने कितना समय लगेगा। पर वैक्सीनों की प्रगति और वैश्विक संकल्प को देखते हुए अब लगता है कि इसपर समय से काबू पाया जा सकेगा। टेड्रॉस ने जिनीवा में एक प्रेस ब्रीफिंग में कहा कि 1918 के स्पेनिश फ्लू को खत्म होने में दो साल लगे थे। आज की वैश्विक कनेक्टिविटी के कारण वायरस को फैलने का भरपूर मौका है। पर हमारे पास इसे रोकने की बेहतर तकनीक है और ज्ञान भी। सबसे बड़ी बात मानवजाति की इच्छा शक्ति इसे पराजित करने की ठान चुकी है।
महामारी से दुनियाभर में अबतक करीब 8 लाख लोगों की मौत हुई है और करीब 2.3 करोड़ लोग संक्रमित हुए हैं। इसकी तुलना में स्पेनिश फ्लू से, जो आधुनिक इतिहास में सबसे घातक महामारी मानी गई है, पाँच करोड़ लोगों की जान गई थी। उसमें करीब 50 करोड़ लोग संक्रमित हुए थे। पहले विश्व युद्ध के मृतकों की तुलना में स्पेनिश फ्लू से पाँच गुना ज्यादा लोग मारे गए थे। पहला पीड़ित अमेरिका में मिला था, बाद में यह यूरोप में फैला और फिर पूरी दुनिया इसकी चपेट में आ गई। वह महामारी तीन चरणों में आई थी। उसका दूसरा दौर सबसे ज्यादा घातक था।
चार महीने पहले भी विशेषज्ञों का अनुमान था कि इस बीमारी को 2022 तक नियंत्रित नहीं किया जा सकेगा और यह तभी काबू में आएगी जब दुनिया की दो तिहाई आबादी में इस वायरस के लिए इम्यूनिटी पैदा न हो जाए। गत 1 मई को अमेरिका के सेंटर फॉर इंफैक्शस डिजीज के डायरेक्टर क्रिस्टन मूर, ट्यूलेन यूनिवर्सिटी के सार्वजनिक स्वास्थ्य इतिहासविद जॉन बैरी और हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हैल्थ के महामारी विज्ञानी मार्क लिप्सिच की एक रिपोर्ट ब्लूमबर्ग ने प्रकाशित की थी, जिसमें कहा गया था कि इस महामारी पर काबू पाने में कम के कम दो साल तो लग ही जाएंगे।
उस रपट में कहा गया था कि नए कोरोनावायरस को काबू करना मुश्किल है, क्योंकि हमारे बीच ऐसे लोग हैं जिनमें इस बीमारी के लक्षण दिखाई नहीं दे रहे, लेकिन वे दूसरों तक इसे फैला सकते हैं। इस बात का डर बढ़ रहा है कि लोगों में लक्षण तब सामने आ रहे हैं जब उनमें संक्रमण बहुत ज्यादा फैल चुका होता है। मार्च-अप्रैल के महीनों में दुनियाभर में अरबों लोग लॉकडाउन के कारण अपने घरों में बंद थे। इस वजह से संक्रमण में ठहराव आया, लेकिन फिर बिजनेस और सार्वजनिक स्थानों के खुलने के कारण प्रसार बढ़ता गया। महामारी पर तभी काबू पाया जा सकेगा, जब 70 प्रतिशत लोगों तक वैक्सीन पहुंचे या उनमें इम्यूनिटी पैदा हो चुकी है।
इस साल के अंत तक वैक्सीन बाजार में आ भी जाएंगी, पर वे कितने लोगों तक पहुँचेंगी, यह ज्यादा बड़ा सवाल है। सन 2009-2010 में अमेरिका में फैली फ्लू महामारी से इम्यूनिटी के लिए बड़े पैमाने पर वैक्सीन तब मिले, जब महामारी पीक पर थी। वैक्सीन के कारण वहाँ 15 लाख मामलों पर काबू पाया गया। अप्रैल-मई में ही हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के एक रिसर्च में कहा गया कि बिना असरदार इलाज के कोरोना सीज़नल फ्लू बन सकता है और 2025 तक हर साल इसका संक्रमण फैलने का अंदेशा है। विवि के डिपार्टमेंट ऑफ इम्यूनोलॉजी एंड इंफैक्शस डिजीज के रिसर्चर और इस स्टडी के मुख्य अध्येता स्टीफन किसलर का मानना था कि कोविड-19 से बचने के लिए हमें कम से कम 2022 तक सोशल डिस्टेंसिंग रखनी होगी।
प्रफुल्ल सिंह "बेचैन कलम"
शोध प्रशिक्षक एवं साहित्यकार
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