घर हम सभी की जरूरत या जिंदगी का सबसे बड़ा सहारा। घर का सपना हम सभी देखते हैं ओर उसे पूरा करने के लिए हर कोशिश करते हैं। हमारे जीवन में जितना बड़ा सहारा घर का है उतना अधिक सहारा तो अपने कहें जाने वाले भी नहीं दे पाते हैं। हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब सत्ता में पहली बार आए तब उनका यही कहना था कि सभी के पास अपना मकान होना चाहिए। जिसके लिए उन्होंने सस्ते घरों की योजना भी निकाली थीं, ताकि सभी को घर मिल सकें।
किंतु आज जब कोविड 19 जैसी बिमारी से परेशान हैं और आर्थिक आपदा झेल रहे हैं। तब वह गरीब लोग जो अपने जीवन चलाने के लिए हर रोज कार्य करते हैं। उनको एक ओर जहां बेरोजगारी के चलते खर्चा चलाना मुश्किल हो रहा है, वहीं दूसरी ओर उनके सर से छत छिने के आदेश ने जीना मुश्किल कर दिया है। 31 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि
"यदि कोई अतिक्रमण के संबंध में कोई अंतरिम आदेश दिया जाता है, जो रेलवे पटरियों के पास किया गया है, तो यह प्रभावी नहीं होगा।"
जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने तीन महीने के भीतर दिल्ली में 140 किलोमीटर लंबी रेल पटरियों के आसपास की लगभग 48 हजार झुग्गी-झोपड़ियों को हटाने का आदेश दिया था। कोर्ट ने कहा कि रेलवे लाइन के आसपास अतिक्रमण हटाने के काम में किसी भी तरह के राजनीतिक दबाव और दखलंदाजी को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा था कि रेलवे लाइन के आसपास अतिक्रमण के संबंध में यदि कोई अदालत अंतरिम आदेश जारी करती है तो यह प्रभावी नहीं होगा।
रेलवे और हम सब की सुरक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले का विरोध करना सही नहीं है। किंतु इस तरह से उनको नोटिस दे कर हटाने तीन महीने में हटाने का फैसला कहा तक उचित है यह भी विचार करना जरूरी है। राजनीति हमारे देश में आज बहुत ताकतवर हो चुकी है और यही राजनीतिक पार्टियों के सदस्य होते हैं, जो चुनाव जीतने के लिए इनके पास जाते हैं और वोट मांगते हैं। सवाल यह नहीं है कि उनको वहां से क्यों हटाया जा रहा है। सवाल यह है कि जब यह लोग वह बस रहें थें तब सरकार और रेलवे ने उनको रोका क्यों नहीं। यदि वह वहां ग़ैर क़ानूनी तरीके से रह रहे थें तो उनके घर में बिजली पानी क्यों सरकार द्वारा पहुंचाया जा रहा है। जिस स्थान पर रहना गलत है उस स्थान के पत्ते पर वोटर कार्ड और आधार कार्ड क्यों बनाए गए। सरकारें चुनाव के समय वोट मांगने के लिए की वादें करतीं हैं। ऐसा ही एक वादा मोदी सरकार ने भी चुनाव के समय करते हुए कहा, जहां झुग्गी वहां मकान। किंतु आज जब 48 हजार लोग बेघर हो रहें हैं, तब सभी राजनीतिक पार्टियां राजनीति कर रही है।
आम जनता कोई आम नहीं है जिसे चुनाव के समय इस्तेमाल किया जाए और फिर बाद में उसे कचड़ा समझ कर फैंक दिया जाएं। सरकारें सालों से वादा कर रहीं हैं, लोगों को सपना दिखा रहीं हैं घर मिलने का। आज तक घर नहीं मिलें लेकिन लोग बेघर जरूर हो रहें हैं। रेलवे की सुरक्षा जरूरी है। किंतु उन सभी लोगों को बेघर होने से बचाना भी जरूरी है जिन्होने सालों लगा कर अपने लिए एक छत बनाई है। राजनीति पार्टी का फ़र्ज़ केवल वादे कर वोट लेना नहीं होता है। उनको अपनी जिम्मेदारी समझ कर आज अपने फर्ज पूरे करने चाहिए ना कि राजनीति करतें हुए एक दूसरे पर छींटाकशी।
हम सभी को आज इंसानियत दिखा कर, उन 48 हजार लोगों का दर्द और तक़लिफों को समझना चाहिए। वह गरीब है, किन्तु इंसान है उनको भी हक है। हम तर्क दे सकते हैं कि गैरकानूनी तरीके से सरकारी जमीन पर कब्जा कर के रह रहे थें तो हटाया जाना गलत कहां है। किंतु यह तर्क देते हुए हम यह नहीं भूल सकते हैं कि वह भी नागरिक हैं उस देश और राज्य के जिसके हम है। दिल्ली की चालिस प्रतिशत आबादी उन झुग्गियों में रहतीं हैं जिन्हें ग़ैर क़ानूनी कह कर हम सभी गिरवाने की सोच शहर को साफ-सुथरा और सुरक्षित बनाने का प्रयास कर रहे हैं। जिस प्रकार हम सरकारों के बनाएं कानूनों का विरोध करते है, क्या हम उसी तरह आज सरकार को अपने दिए वादों को याद दिलाने के लिए क्यों नहीं कहते हैं। सरकार पर दबाव बनाने की जरूरत है ताकि बेघर हो रहें लोगों को सरकार घर दें। उनको चुनाव में समय याद करने वाली हमारी सरकार आज अपनी जिम्मेदारी निभाएं।
राखी सरोज
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