Saturday, September 19, 2020
" आप ही के अंदर शक्तियों का महावृक्ष है "
बहु भी मुस्कुराना चाहती है
दीनदयाल कॉलोनी
जांजगीर छत्तीसगढ़
कभी तो
युवा वर्ग के लिए चुनौती एवं संदेश
देश का भरोसा अभी आप पर है लेकिन
" आप ही के अंदर शक्तियों का महावृक्ष है
Friday, September 18, 2020
आज परमाणु बम से भी ज्यादा बड़ा खतरा फेक न्यूज़ से है
धर्मनिष्ठ तथा धर्मभीरु में अंतर
साक्षात विश्वकर्मा की अद्भुत स्मृति
सृष्टि के आदिकाल, जो पाषाण युग कहलाता है, में आज का यह मानव समाज वनमानुष के रूप में वन-पर्वतों पर इधर से उधर उछल-कूद कर रहा था। मनुष्य की उस प्राकृतिक अवस्था में खाने के लिए कंदमूल, फल और पहनने को वलकल तथा निवास के लिए गुफाएं थीं। उस प्राकृतिक अवस्था से आधुनिक अवस्था में मनुष्य को जिस शिल्पकला विज्ञान ने सहारा दिया, उस शिल्पकला विज्ञान के अधिष्ठाता एवं आविष्कारक महर्षि आचार्य विश्वकर्मा थे। शिल्प विज्ञान प्रवर्तक अथर्ववेद के रचयिता कहे जाते हैं। अथर्ववेद में शिल्पकला विज्ञान के अनेकों आविष्कारों का उल्लेख है। पुराणों ने भी इसको विश्वकर्मा रचित ग्रंथ माना है, जिसके द्वारा अनेकों विद्याओं की उत्पत्ति हुई।
मानव जीवन की यात्रा का लंबा इतिहास है और इसका बहुत लंबा संघर्ष है। भगवान विश्वकर्मा ने उसे सबसे पहले शिक्षित और प्रशिक्षित किया ताकि उसे विभिन्न शिल्पों में प्रशिक्षित किया जा सके। इस तरह मानव की संस्कृति और सभ्यता का प्रथम प्रवर्तक भगवान विश्वकर्मा जी हुए जिसे वेदों ने स्वीकार किया है और उनकी स्तुति की है।
विश्वकर्मा ने मानव जाति को शासन-प्रशासन में प्रशिक्षित किया। उन्होंने अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों का आविष्कार और निर्माण किया, जिससे मानव जाति सुरक्षित रह सके। उन्होंने अपनी विमान निर्माण विद्या से अनेक प्रकार के विमानों के निर्माण किए जिन पर देवतागण तीनों लोकों में भ्रमण करते थे। उन्होंने स्थापत्य कला से शिवलोक, विष्णुलोक, इंद्रलोक आदि अनेक लोकों का निर्माण किया। भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र, इंद्र के वज्र और महादेव के त्रिशूल का भी उन्होंने निर्माण किया जो अमोघ अस्त्र माने जाते हैं। आज शिल्पकला विज्ञान के जो भी चमत्कार देखने को मिलते हैं, वे सभी भगवान विश्वकर्मा की देन हैं।
भारतवर्ष के सामने अखंडता, सांप्रदायिक सद्भावना तथा सामाजिक एकता की समस्याओं का समाधान विश्वकर्मा दर्शन में है। भारत को स्वावलंबी और स्वाभिमानी राष्ट्र बनाने की जो बात कही जाती है, उसका समाधान भी विश्वकर्मा के शिल्पकला विज्ञान में ही है। यदि इसको विकसित किया जाए तो भारत से बेकारी और गरीबी दूर हो जाएगी और पृथ्वी पर भारत का एक अभिनव राष्ट्र के रूप में अवतरण होगा। सभी देवताओं की प्रार्थना पर विश्वकर्मा ने पुरोहित के रूप में पृथ्वी पूजन किया जिसमें ब्रह्या यजमान बने थे। पुुरोहित कर्म का प्रारंभ तभी से हुआ।
सभी देवताओं ने भगवान विश्वकर्मा को ही सक्षम देव समझा तथा उन सब के आग्रह पर वह पृथ्वी के प्रथम राजा बने, इन सभी चीजों का जिक्र भारतवर्ष के वेद पुराणों में है। कश्यप मुनि को राज-सत्ता सौंपकर विश्वकर्मा भगवान शिल्पकला विज्ञान के अनुसंधान के लिए शासन मुक्त हो गए क्योंकि भारत के आर्थिक विकास और स्वावलंबन के लिए यह आवश्यक था। कुछ दिनों के शासन में विश्वकर्मा भगवान ने शासन को सक्षम, समर्थ तथा शक्तिशाली बनाने के अनेकों सूत्रों का निर्माण किया जिस पर गहराई से शोध करने की आज आवश्यकता है।
प्रफुल्ल सिंह "बेचैन कलम"
शोध प्रशिक्षक एवं साहित्यकार
Thursday, September 17, 2020
दिल्ली की चालिस प्रतिशत आबादी का हिस्सा बेघर क्यों?
घर हम सभी की जरूरत या जिंदगी का सबसे बड़ा सहारा। घर का सपना हम सभी देखते हैं ओर उसे पूरा करने के लिए हर कोशिश करते हैं। हमारे जीवन में जितना बड़ा सहारा घर का है उतना अधिक सहारा तो अपने कहें जाने वाले भी नहीं दे पाते हैं। हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब सत्ता में पहली बार आए तब उनका यही कहना था कि सभी के पास अपना मकान होना चाहिए। जिसके लिए उन्होंने सस्ते घरों की योजना भी निकाली थीं, ताकि सभी को घर मिल सकें।
किंतु आज जब कोविड 19 जैसी बिमारी से परेशान हैं और आर्थिक आपदा झेल रहे हैं। तब वह गरीब लोग जो अपने जीवन चलाने के लिए हर रोज कार्य करते हैं। उनको एक ओर जहां बेरोजगारी के चलते खर्चा चलाना मुश्किल हो रहा है, वहीं दूसरी ओर उनके सर से छत छिने के आदेश ने जीना मुश्किल कर दिया है। 31 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि
"यदि कोई अतिक्रमण के संबंध में कोई अंतरिम आदेश दिया जाता है, जो रेलवे पटरियों के पास किया गया है, तो यह प्रभावी नहीं होगा।"
जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने तीन महीने के भीतर दिल्ली में 140 किलोमीटर लंबी रेल पटरियों के आसपास की लगभग 48 हजार झुग्गी-झोपड़ियों को हटाने का आदेश दिया था। कोर्ट ने कहा कि रेलवे लाइन के आसपास अतिक्रमण हटाने के काम में किसी भी तरह के राजनीतिक दबाव और दखलंदाजी को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा था कि रेलवे लाइन के आसपास अतिक्रमण के संबंध में यदि कोई अदालत अंतरिम आदेश जारी करती है तो यह प्रभावी नहीं होगा।
रेलवे और हम सब की सुरक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले का विरोध करना सही नहीं है। किंतु इस तरह से उनको नोटिस दे कर हटाने तीन महीने में हटाने का फैसला कहा तक उचित है यह भी विचार करना जरूरी है। राजनीति हमारे देश में आज बहुत ताकतवर हो चुकी है और यही राजनीतिक पार्टियों के सदस्य होते हैं, जो चुनाव जीतने के लिए इनके पास जाते हैं और वोट मांगते हैं। सवाल यह नहीं है कि उनको वहां से क्यों हटाया जा रहा है। सवाल यह है कि जब यह लोग वह बस रहें थें तब सरकार और रेलवे ने उनको रोका क्यों नहीं। यदि वह वहां ग़ैर क़ानूनी तरीके से रह रहे थें तो उनके घर में बिजली पानी क्यों सरकार द्वारा पहुंचाया जा रहा है। जिस स्थान पर रहना गलत है उस स्थान के पत्ते पर वोटर कार्ड और आधार कार्ड क्यों बनाए गए। सरकारें चुनाव के समय वोट मांगने के लिए की वादें करतीं हैं। ऐसा ही एक वादा मोदी सरकार ने भी चुनाव के समय करते हुए कहा, जहां झुग्गी वहां मकान। किंतु आज जब 48 हजार लोग बेघर हो रहें हैं, तब सभी राजनीतिक पार्टियां राजनीति कर रही है।
आम जनता कोई आम नहीं है जिसे चुनाव के समय इस्तेमाल किया जाए और फिर बाद में उसे कचड़ा समझ कर फैंक दिया जाएं। सरकारें सालों से वादा कर रहीं हैं, लोगों को सपना दिखा रहीं हैं घर मिलने का। आज तक घर नहीं मिलें लेकिन लोग बेघर जरूर हो रहें हैं। रेलवे की सुरक्षा जरूरी है। किंतु उन सभी लोगों को बेघर होने से बचाना भी जरूरी है जिन्होने सालों लगा कर अपने लिए एक छत बनाई है। राजनीति पार्टी का फ़र्ज़ केवल वादे कर वोट लेना नहीं होता है। उनको अपनी जिम्मेदारी समझ कर आज अपने फर्ज पूरे करने चाहिए ना कि राजनीति करतें हुए एक दूसरे पर छींटाकशी।
हम सभी को आज इंसानियत दिखा कर, उन 48 हजार लोगों का दर्द और तक़लिफों को समझना चाहिए। वह गरीब है, किन्तु इंसान है उनको भी हक है। हम तर्क दे सकते हैं कि गैरकानूनी तरीके से सरकारी जमीन पर कब्जा कर के रह रहे थें तो हटाया जाना गलत कहां है। किंतु यह तर्क देते हुए हम यह नहीं भूल सकते हैं कि वह भी नागरिक हैं उस देश और राज्य के जिसके हम है। दिल्ली की चालिस प्रतिशत आबादी उन झुग्गियों में रहतीं हैं जिन्हें ग़ैर क़ानूनी कह कर हम सभी गिरवाने की सोच शहर को साफ-सुथरा और सुरक्षित बनाने का प्रयास कर रहे हैं। जिस प्रकार हम सरकारों के बनाएं कानूनों का विरोध करते है, क्या हम उसी तरह आज सरकार को अपने दिए वादों को याद दिलाने के लिए क्यों नहीं कहते हैं। सरकार पर दबाव बनाने की जरूरत है ताकि बेघर हो रहें लोगों को सरकार घर दें। उनको चुनाव में समय याद करने वाली हमारी सरकार आज अपनी जिम्मेदारी निभाएं।
राखी सरोज
फेसबुक का विवाद एवं सच
कोरोना वैक्सीन 2024 के अंत तक सभी को मिलेगी
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देश में इस समय कोरोना का कहर शिखर पर है। कोरोना वायरस के बारे में लापरवाही बरतने वाले चाहे वे अमीर हों या गरीब, राजनेता हों या सामान्य आदमी, मंत्री हों या संत्री, किसी को भी नहीं छोड़ रहा हैै। यह निश्चित हो गया है कि आप ने जरा भी लापरवाही की नहीं कि आप कोरोना का शिकार हो गए। सोमवार से देश में लोकसभा का मानसून सत्र शुरू हो गया है। लोकसभा और राज्यसभा का सत्र शुरू होने के पहले कोरोना टेस्ट जरूरी होने के कारण मानसून सत्र के पहले ही दिन कोरोना की जांच में दोनोें सदनों में 26 सांसद कोरोना पॉजिटिव पाए गए। इसमें से 18 सांसद लोकसभा और 8 सांसद राज्यसभा के थे। लोकसभा के पॉजिटिव सांसदों में 12 सांसद भाजपा, शिवसेना और वाईआरएस के 2-2 सांसद और आरएलपी का एक सांसद है। एक साथ इतने सारे सांसदों के कोरोना पॉजिटिव होने से संसद में भी भय का माहौल बन गया है। संसद में सोशल डिस्टेसिंग का खास ख्याल रखा गया है। दो सांसदों के बीच 5 से 6 फुट की दूर रखी गई है यानी दो सांसद कम से कम इतनी दूरी पर बैठेंगे। कोरोना पॉजिटिव पाए जाने वाले सांसादों में मीनाक्षी लेखी, अनंत ठेगडे और दिल्ली के प्रवेश वर्मा भी शमिल हैं।
देशमेंइससमयरोजाना 90 हजारसेअधिककोरोनापॉजिटिवमामलेआरहेहैं।मंगलवारको 90027 मामलेसामनेआएथे।इससेदेशमेंकुलकोरोनापॉजिटिवकीसंख्या 50 लाखके पार होगईहै।मंगलवार कोकोरोनासेमरनेवालोंकीसंख्या 81989 होगईहै।देशमेेंइससमयकोरोनापॉजिटिवरोगियोंकीसंख्या 9,90,061 है।जिसमेंसे 60 प्रतिशतरोगीदेशकेपांचराज्यों- महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, उत्तरप्रदेशऔरतमिलनाडुकेहैं।इन 60 प्रतिशतरोगियोंमें 21-9 प्रतिशतरोगीमहाराष्ट्रके, 11-7 प्रतिशतरोगीआंध्रप्रदेशके, 10-4 प्रतिशतरोगीतमिलनाडुके, 9-5 प्रतिशतरोगीकर्नाटकके
कृषि में कौशल विकास की चुनौतियां
कृषि में कौशल विकास की चुनौतियां
संवेदनहीनता,लाचारी या दुर्भाग्य-किसान,मजदूर का
Wednesday, September 16, 2020
जिंदगी चलने का ही दूसरा नाम है यारों
मानसिक स्वास्थ्य एक गंभीर समस्या
क्या कोरोना के अंत की शुरुआत हो चुकी है
विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि कोरोनावायरस महामारी 1918 के स्पेनिश फ्लू की तुलना में कम समय तक रहेगी। संगठन के प्रमुख टेड्रॉस गैब्रेसस ने गत 21 अगस्त को कहा कि यह महामारी दो साल से कम समय में खत्म हो सकती है। इसके लिए दुनियाभर के देशों के एकजुट होने और एक सर्वमान्य वैक्सीन बनाने में सफल होने की जरूरत है। जो संकेत मिल रहे हैं उनके अनुसार जो पाँच छह उल्लेखनीय वैक्सीन परीक्षणों के अंतिम दौर से गुजर रही हैं, उनमें से दो-तीन जरूर सफल साबित होंगी। कहना मुश्किल है कि सारी दुनिया को स्वीकार्य वैक्सीन कौन सी होगी,पर डब्लूएचओ के प्रमुख का बयान हौसला बढ़ाने वाला है।
इतिहास लिखने वाले कहते हैं कि महामारियों के अंत दो तरह के होते हैं। एक, चिकित्सकीय अंत। जब चिकित्सक मान लेते हैं कि बीमारी गई। और दूसरा सामाजिक अंत। जब समाज के मन से बीमारी का डर खत्म हो जाता है। कोविड-19 का इन दोनों में से कोई अंत अभी नहीं हुआ है, पर समाज के मन से उसका भय कम जरूर होता जा रहा है। यानी कि ऐसी उम्मीदें बढ़ती जा रही हैं कि इसका अंत अब जल्द होगा। डब्लूएचओ का यह बयान इस लिहाज से उत्साहवर्धक है।
चार महीने पहले अनुमान था कि बीमारी दो से पाँच साल तक दुनिया पर डेरा डाले रहेगी। दो साल से कम समय का मतलब है कि 2021 के दिसम्बर से पहले इसे विदा किया जा सकता है। साल के शुरू में अंदेशा इस बात को लेकर था कि वैक्सीन बनने में न जाने कितना समय लगेगा। पर वैक्सीनों की प्रगति और वैश्विक संकल्प को देखते हुए अब लगता है कि इसपर समय से काबू पाया जा सकेगा। टेड्रॉस ने जिनीवा में एक प्रेस ब्रीफिंग में कहा कि 1918 के स्पेनिश फ्लू को खत्म होने में दो साल लगे थे। आज की वैश्विक कनेक्टिविटी के कारण वायरस को फैलने का भरपूर मौका है। पर हमारे पास इसे रोकने की बेहतर तकनीक है और ज्ञान भी। सबसे बड़ी बात मानवजाति की इच्छा शक्ति इसे पराजित करने की ठान चुकी है।
महामारी से दुनियाभर में अबतक करीब 8 लाख लोगों की मौत हुई है और करीब 2.3 करोड़ लोग संक्रमित हुए हैं। इसकी तुलना में स्पेनिश फ्लू से, जो आधुनिक इतिहास में सबसे घातक महामारी मानी गई है, पाँच करोड़ लोगों की जान गई थी। उसमें करीब 50 करोड़ लोग संक्रमित हुए थे। पहले विश्व युद्ध के मृतकों की तुलना में स्पेनिश फ्लू से पाँच गुना ज्यादा लोग मारे गए थे। पहला पीड़ित अमेरिका में मिला था, बाद में यह यूरोप में फैला और फिर पूरी दुनिया इसकी चपेट में आ गई। वह महामारी तीन चरणों में आई थी। उसका दूसरा दौर सबसे ज्यादा घातक था।
चार महीने पहले भी विशेषज्ञों का अनुमान था कि इस बीमारी को 2022 तक नियंत्रित नहीं किया जा सकेगा और यह तभी काबू में आएगी जब दुनिया की दो तिहाई आबादी में इस वायरस के लिए इम्यूनिटी पैदा न हो जाए। गत 1 मई को अमेरिका के सेंटर फॉर इंफैक्शस डिजीज के डायरेक्टर क्रिस्टन मूर, ट्यूलेन यूनिवर्सिटी के सार्वजनिक स्वास्थ्य इतिहासविद जॉन बैरी और हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हैल्थ के महामारी विज्ञानी मार्क लिप्सिच की एक रिपोर्ट ब्लूमबर्ग ने प्रकाशित की थी, जिसमें कहा गया था कि इस महामारी पर काबू पाने में कम के कम दो साल तो लग ही जाएंगे।
उस रपट में कहा गया था कि नए कोरोनावायरस को काबू करना मुश्किल है, क्योंकि हमारे बीच ऐसे लोग हैं जिनमें इस बीमारी के लक्षण दिखाई नहीं दे रहे, लेकिन वे दूसरों तक इसे फैला सकते हैं। इस बात का डर बढ़ रहा है कि लोगों में लक्षण तब सामने आ रहे हैं जब उनमें संक्रमण बहुत ज्यादा फैल चुका होता है। मार्च-अप्रैल के महीनों में दुनियाभर में अरबों लोग लॉकडाउन के कारण अपने घरों में बंद थे। इस वजह से संक्रमण में ठहराव आया, लेकिन फिर बिजनेस और सार्वजनिक स्थानों के खुलने के कारण प्रसार बढ़ता गया। महामारी पर तभी काबू पाया जा सकेगा, जब 70 प्रतिशत लोगों तक वैक्सीन पहुंचे या उनमें इम्यूनिटी पैदा हो चुकी है।
इस साल के अंत तक वैक्सीन बाजार में आ भी जाएंगी, पर वे कितने लोगों तक पहुँचेंगी, यह ज्यादा बड़ा सवाल है। सन 2009-2010 में अमेरिका में फैली फ्लू महामारी से इम्यूनिटी के लिए बड़े पैमाने पर वैक्सीन तब मिले, जब महामारी पीक पर थी। वैक्सीन के कारण वहाँ 15 लाख मामलों पर काबू पाया गया। अप्रैल-मई में ही हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के एक रिसर्च में कहा गया कि बिना असरदार इलाज के कोरोना सीज़नल फ्लू बन सकता है और 2025 तक हर साल इसका संक्रमण फैलने का अंदेशा है। विवि के डिपार्टमेंट ऑफ इम्यूनोलॉजी एंड इंफैक्शस डिजीज के रिसर्चर और इस स्टडी के मुख्य अध्येता स्टीफन किसलर का मानना था कि कोविड-19 से बचने के लिए हमें कम से कम 2022 तक सोशल डिस्टेंसिंग रखनी होगी।
प्रफुल्ल सिंह "बेचैन कलम"
शोध प्रशिक्षक एवं साहित्यकार
Tuesday, September 15, 2020
दिव्यांगों एवं वृद्धों की सामाजिक सुरक्षा योजना
सबकी मधुर जुबान है हिन्दी
हमारे भारत रत्न अभियंताओं के लिए प्रेरणा है
हाइकु
Monday, September 7, 2020
थाना ठाकुरगंज पुलिस ने शातिर किस्म के लुटेरे को किया गिरफ्तार
लखनऊ :- पुलिस उप आयुक्त पश्चिमी सर्वश्रेष्ठ त्रिपाठी द्वारा अपराध नियंत्रण करने तथा अपराधियों पर अंकुश लगाने हेतु अपर पुलिस उप आयुक्त पश्चिमी श्याम नारायण सिंह के निर्देशन पर काम कर रही पश्चिमी जोन पुलिस के हाथ लगी बड़ी सफलता ।
सहायक पुलिस आयुक्त चौक आई.पी.सिहं के नेतृत्व में गठित पुलिस टीम थाना प्रभारी ठाकुरगंज राजकुमार सिहं, उ0नि0 जगदीश प्रसाद पाण्डेय, उ0नि0विनय कुमार, का0 संजीव कुमार सिंह, का0 सियाराम को एक बडी सफलता हाथ लगी । पुलिस टीम के प्रयासों के फलस्वरूप शातिर किस्म का लूटेरा सूफियान पुत्र स्व0 फुरकान निवासी वजीरबाग बडी मस्जिद थाना सआदतगंज लखनऊ को भूहर पुल के आगे से एक अदद अवैध 12 बोर तमचां मय दो अदद अवैध 12 बोर जिन्दा कारतूस के साथ गिरफ्तार किया गया । जिसका पूर्व आपराधिक इतिहास भी है। इसी क्रम में आज पुलिस टीम द्वारा अभियुक्त उपरोक्त के विरुद्ध अभियोग पंजीकृत कर माननीय न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया ।
Wednesday, September 2, 2020
भारत ने फिर किया चीन पर डिजिटल स्ट्राइक, PUBG समेत 118 चीनी ऐप्स बैन
भारत ने 118 चीनी ऐप को बैन कर दिया है। भारत ने चीन को एक और बड़ा झटका दिया है। तीसरी बार है ये जब चीनी ऐप पर पाबंदी लगाई गई है। एलएसी पर चीनी कारस्पतानियों के बाद भारत ने पबजी समेत 118 चीनी ऐप पर पाबंदी लगाई गई। बैन किए गए चीनी ऐप को सुरक्षा के लिए खतरा बताया गया है। अभी तक सरकार 224 चीनी ऐप को बैन कर चुकी है।
भारत ने 29 जून को टिकटॉक समेत 58 ऐप को बैन कर दिया था। ऐप को बैन करने की वजह देश की सुरक्षा के लिए जरूरी बताया गया था। बैन किए गए ऐप्स में शेयर इट, UC ब्राउजर, वीचैट और कैम स्कैनर जैसे कई और ऐप भी शामिल थे। इसके बाद एक बार फिर से भारत सरकार ने पिछले महीने 47 अन्य ऐप्स को भी बैन किया। इन ऐप्स के बारे में कहा गया कि ये पहले बैन किए गए 59 ऐप्स के क्लोन के तौर पर काम कर रहे हैं और इनसे यूजर्स के डेटा की सेफ्टी पर बड़ा खतरा है।
Tuesday, September 1, 2020
समलैंगिक विवाह करके फतेहपुर की पूनम बनी पति व कानपुर की कोमल पत्नी
दैनिक अयोध्या टाइम्स फतेहपुर
---समलैंगिक जोडे ने सदर कोतवाली के प्रभारी निरीक्षक को दी विवाह की जानकारी
फतेहपुर 31 अगस्त
फतेहपुर जनपद में पहली बार एक समलैंगिक जोड़े द्वारा दांपत्य सूत्र में बंधने की खबर ने सबको हैरान कर दिया है ।यह समलैंगिक दोनों लड़कियां कानपुर के एक मॉल में काम करती थी ।जहां से दोनों में प्रेम संबंध हो गए और उन्होंने आपस में समलैंगिक विवाह करने के बाद फतेहपुर पहुंची । अब वह हो पति-पत्नी की तरह रह रहे हैं ।सामाजिक मान्यताओं के अनुसार समलैंगिक विवाह उचित नही है।यद्यपि इसे मान्यता नहीं दी जाती है किंतु सरकार द्वारा धारा 377 के तहत समलैंगिक संबंधों को मान्यता जब दे दी गई है। तो सामाजिक मान्यताओं का कोई मूल्य नहीं रह जाता है। इसी का परिणाम है कि आज फतेहपुर की लड़की ने कानपुर की एक लड़की के साथ समलैंगिक विवाह कर लिया।
प्राप्त जानकारी के अनुसार आज यह समलैंगिक जोड़ा फतेहपुर सदर कोतवाली में पहुंचा और मौजूद कोतवाली प्रभारी निरीक्षक रवीन्द्र श्रीवास्तव को बताया कि उन्होंने एक दूसरे के साथ विवाह कर लिया है और अब पति पत्नी के रूप में साथ रह रहे हैं ।इस मौके पर दोनों लड़कियों के परिजन भी थाने पहुंचे ।
जानकारी के अनुसार फतेहपुर शांति नगर की रहने वाली पूनम 22 वर्ष व कानपुर की रहने वाली कोमल 19 वर्ष कानपुर बड़े चौराहे पर स्थित जेड स्क्वायर में एक साथ काम करती थी ।वहीं पर दोनों में प्रेम हो गया और यह प्रेम शादी के बंधन में बांधने को मजबूर कर दिया । दोनों ने विवाह रचाकर पति पत्नी के रूप में एक दूसरे को स्वीकार कर लिया। फतेहपुर शांति नगर निवासिनी पूनम की मां से जब पूछा गया कि उसकी बेटी ने जो समलैंगिक विवाह किया है उससे आप कितना खुश हैं तो उन्होंने कहा कि अब जब कर लिया है तो हम लोग कर भी क्या सकते हैं। उन्होंने दोनों लड़कियों को अपने घर में रहने की इजाजत दे दी है। थाना प्रभारी रविंद्र श्रीवास्तव ने बताया कि दोनों लड़कियां उनके पास आई थी जिसके लिए कानूनी प्रक्रिया को उन्होंने अपनाया है। इस समलैंगिक विवाह को लेकर समाज सेविका लक्ष्मी साहू का कहना है कि सामाजिक व सांस्कृतिक दृष्टिकोण से यह शादी ठीक नहीं है किंतु जब सरकार में इसे वैधता दे दी है तो समाज के सामने भी अब एक समस्या खड़ी हो गई है। वही इस शादी को लेकर फतेहपुर के अधिवक्ता सफीकुल गफ्फार से जब बात की गई तो उन्होंने बताया कि धारा 377 के तहत यह समलैंगिक विवाह पूरी तरह से वैध है। किंतु जब उनसे कहा गया कि क्या सामाजिक दृष्टिकोण से यह समलैंगिक विवाह उचित है तो उन्होंने कहा कि सामाजिक तौर पर तो इसे उचित नहीं ठहराया जा सकता ।किंतु कानून की दृष्टि में यह विवाह अपनी पूरी मान्यता रखता है।