हमारे बुजुर्गों को नहीं होती थी कोई बीमारी।
क्योंकि साइकिल ही तो थी उनकी मुख्य सवारी।
बीते दिनों की साइकिल आज दोबारा सड़को पर दौड़ रही है।
मानो साइकिल चलाने की एक होड़ सी हो रही है।
बढ़ रहे प्रदुषण के तोड़ में एक विकल्प सा सिद्ध हो रही है।
मानव के स्वास्थ्य में सुधार हो रहा है अपार।
समय बड़ा बलवान यह कहावत है पुरानी।
नए ज़माने के सिर चढ़कर साइकिल की सवारी यह बोल रही है।
साईकिल की सवारी सबसे न्यारी।
बूढ़े बच्चे और जवान सबको लग रही है प्यारी।
कैसा भी हो मार्ग पैडल मारो सुगमता से पार हो जाता।
न डीजल न पैट्रोल बस पैडल लगाने से ही चल जाता।
थोड़ा सा खर्च आता वर्षों साथ निभाता।
कितनी भी हो लंबी दूरी अंत तक साथ निभाता।
समय के प्रभाव ने इसका मान घटाया।
कार और गाड़ियों ने इसका स्थान पाया।
समय बड़ा बलवान, फिर लौट कर आया।
मानव साईकिल चलाने में शर्माया।
लोग क्या कहेंगे इस बात से था घबराया।
कार चला कर जिम जाए वहां भी साईकिल ही पकड़ाया।
कविता रचयिता- डॉ. अशोक कुमार वर्मा
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