Sunday, July 26, 2020

संतान

राधिका की शादी राहुल से हुए आठ वर्ष व्यतीत हो गए थे किंतु उनके कोई संतान न थी। राधिका जब दूसरे के बच्चों को देखती तो उसका मन घावों से भर जाता और वह भी अपनी गोद में कोई बालक या बालिका को लेने के लिए तरसने लगती। किंतु ईश्वर ने उसे यह सुख प्रदान नहीं किया था। उसकी ममता व्याकुल होकर उससे यही प्रश्न पूछती कि आखिर मैंने ऐसा कौन सा पाप किया था, जो मैं मां न बन सकी। उसने और उसके पति राहुल ने सभी मेडिकल टेस्ट करवा लिए थे। दूर-दूर के सिद्ध और प्रसिद्ध धर्म स्थानों में जा-जाकर ईश्वर से संतान की प्रार्थना भी कर चुके थे। किंतु सब कुछ असफल ही रहा, उनकी गोद न भर सकी। राहुल को भी संतान की कमी बहुत सालती थी किन्तु वह कभी अपनी पीड़ा राधिका के सामने जाहिर नहीं होने देता था और स्वयं को ऑफिस के कामों में अधिकाधिक व्यस्त रखता था। वह समझता था कि इस दुर्भाग्य के पीछे राधिका का कोई दोष नहीं है। संतान का सुख उसके भाग्य में ही नहीं है इसीलिए मेडिकल रिपोर्टों में भी कोई कमी न निकलने के बावजूद उन्हें यह सुख प्राप्त नहीं हो पा रहा। राधिका भी यही कोशिश करती कि वह राहुल के सामने सामान्य रह सके और उसके भीतर ममता का उठता हुआ ज्वार राहुल को न दिखे। किंतु थी तो वह औरत ही न, ममता की भूखी औरत, जिसका मन सदैव तरसता रहता था, अपनी कोख में बच्चे की हलचल को महसूस करने का, अपनी गोद में किलकारी लेते हुए अपने बच्चे को देखने का। एक मां के रूप में अपने बच्चे को पालने को तरसता हुआ उसका मन सदैव भीतर ही भीतर रोता रहता था। वह बस मन ही मन सदैव ईश्वर से प्रार्थना करती रहती कि ईश्वर उसके दुर्भाग्य को मिटाकर उसे मां बनने का सुख प्रदान करें। पर मानो ईश्वर ने भी अपने कान बंद कर रखे थे और उसकी दिन रात की प्रार्थना पर भी ध्यान नहीं दे रहे थे। कभी-कभी वह स्वयं को ही अपराधी मानने लगती कि वह राहुल को पिता होने का सुख प्रदान न कर सकी।

      एक दिन रात्रि में जब दोनों पति-पत्नी बिस्तर पर लेटे हुए थे, राधिका ने बहुत हिम्मत जुटा कर राहुल से कहा कि मैं चाहती हूं कि तुम दूसरी शादी कर लो। शायद तुम्हारी दूसरी पत्नी तुम्हें पिता होने का सुख प्रदान कर सके और मैं भी उसकी संतान को अपनी संतान समझ कर मातृत्व सुख भोग लूंगी। उसकी बात सुनकर राहुल तमतमाकर बोला, 'तुम्हें शर्म नहीं आती ऐसी बात करते हुए, मैं इतना गया गुजरा नहीं कि संतान न होने पर अपनी पत्नी को छोड़ दूं या उसकी उपेक्षा कर दूसरी शादी कर लूं, मेरे जीवन में तुम ही हो और तुम ही रहोगी, संतान हो चाहे ना हो।' राहुल की बात सुनकर राधिका फफककर रोते हुए राहुल से लिपट गई और उसके सीने को अपने गर्म-गर्म आंसुओं से नहला दिया।

        समय बीतता गया अब विवाह को हुए दस वर्ष बीत गए थे। दोनों के मन में संतान होने की जो रही-सही उम्मीद थी वो भी जाती रही। एक दिन शाम को चार पीते वक्त राधिका ने राहुल का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा, ' मैं आपसे कुछ मांगना चाहती हूं, प्लीज़ आप मना मत करना।' राहुल उसे संशय भरी निगाहों से देखने लगा कि अब वह क्या कहने वाली है। राधिका ने उसके कंधे पर अपना सर रखते हुए और प्यार भरी नजरों से उसे देखते हुए कहा कि क्यों न हम किसी बच्चे को गोद ले लें। राहुल ने राधिका को अपनी बाहों में भरते हुए कहा कि वह बहुत दिनों से यही सोच रहा था पर उससे कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था।

       अब दोनों अपनी जिंदगी का एक नया निर्णय ले चुके थे। अगले ही दिन वो एक अनाथाश्रम पहुंचे और वहां से एक बहुत प्यारी सी, छोटी सी परी को अपनी बेटी बनाकर ले आए।

        अब राधिका उस नन्ही सी परी के लालन-पालन में ऐसा व्यस्त हुई कि समय का पता ही न चला। उसकी वह लाडली बेटी अब बड़ी हो गई थी और इंजीनियरिंग की परिक्षा पास कर एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करने लगी। 'स्नेहा', ये नाम माता-पिता ने बड़े स्नेह से अपनी बेटी को दिया था और बेटी भी अपने नाम को सार्थक करते हुए अपने माता-पिता को अत्यधिक स्नेह करती थी।

 

रंजना मिश्रा ©️

कानपुर, उत्तर प्रदेश

 

 

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