कोविड 19 से उपजी वैश्विक महामारी कोरोना वायरस से दुनिया के लगभग सभी लोग त्राहिमाम है । लेकिन सबसे अधिक हमारे गरीब मजदूर और किसान लोग है । जब देश में लॉकडाउन लगाया गया था तो हमारे प्रवासी मजदूर जो कभी रोटी के लिए अपना घर छोड़कर दूसरे राज्यों और महानगरों में गए थे, लेकिन हम सभी ने देखा दोस्तों की हमारे देश के रीढ़ प्रवासी मजदूर हजारों किलोमीटर पैदल ही चल कर अपने घरों की तरफ लौटने के लिए विवश हो गए थे । इनमें से बहुत से प्रवासी मजदूर अपनी मंजिल तक पहुंचने से पहले हीे कहीं किसी ट्रेन के नीचे तो कहीं कुछ हमारे प्रवासी मजदूर बसों और ट्रकों के नीचे कुचलकर मारे गए। हैरानी की बात यह है कि इन प्रवासी मजदूरों पर सभी राजनीतिक दलों ने खूब राजनीति की मुफ्त में अपना प्रचार किया लेकिन वास्तव में किसी भी प्रवासी मजदूरों का मदद नहीं किया गया। लेकिन हमने देखा कि लॉकडाउन के दौरान सरकार ने गरीबों को मुफ्त में राशन मुहैया कराने का निर्णय लिया और बहुत से संपन्न लोगों ने भी अपने सामर्थ्य अनुसार जरूरतमंद लोगों का मदद भी किए । लेकिन इस बिच में देखा गया कि अलग-अलग राज्यों और जिलों में सक्रिय राशन माफिया गरीबों के राशन पर झपट्टा मारने से बाज नहीं आए। कुछ दिनों पहले ही केवल 2 महीनों में राशन डीलरों द्वारा ब्लैक किया गया 8 कुंटल से अधिक सरकारी गेहूं और चावल पकड़ा जा चुका है । आखिर क्यों गरीबों के पेट पर लात मारते हो ?
जैसा कि हम सब जानते हैं कि अपने देश में 25 मार्च को लॉकडाउन लागू किया गया था पहली बार इसलिए गरीबों और वंचितों के हालात को देखते हुए केंद्र और राज्य सरकार ने शहर और ग्रामीण क्षेत्र के गरीब लोगों को मुफ्त में राशन वितरण करने का आदेश जारी किया । लेकिन हमने देखा कि सभी गरीबों को तो राशन नहीं मिला लेकिन राशन माफिया सक्रिय हो गए और राशन डीलरों से सांठगांठ कर गरीबों के लिए आने वाला राशन ब्लैक में खरीदना शुरू कर दिया ।
दोस्तों अगर हम लोकतंत्र का मतलब चुनाव है बोले तो फिर गरीबी का मतलब चुनावी वादा ही होगा । जिस प्रकार से कानपुर के कुख्यात अपराधी विकास दुबे जोकि पिछले दिनों हमारे 8 पुलिसकर्मियों को भी मार डाला था । यह विकास दुबे राजनैतिक संरक्षण से ही पैदा हुआ था । जो वर्षों से अपना अत्याचार गरीब लोगों पर किया करता था और सभी राजनैतिक पार्टियों के साथ कहीं ना कहीं इसका सांठगांठ था ,इसीलिए वर्षों से यहां अपना अत्याचार किया करता था। लेकिन जब सभी राजनैतिक पार्टियों को लगा कि अब उनका राज खुलने वाला है तो विकास दुबे को मुठभेड़ में मार दिया गया । क्या यही लोक कल्याणकारी राज्य है ?
अगर लोकतंत्र का मतलब सत्ता की लूट है, माफिया पैदा करना है तो फिर नागरिकों के पेट का निवाला छीन कर लोकतंत्र के रईस होने का राग होगा ही और अपने देश में गरीबी और अमीरी का भेदभाव होगा ही। आपको जानकर हैरानी होगी कि देश के लगभग 90% संपत्ति पर 10% लोगों का कब्जा है वही 10% देश की संपत्ति पर 90% लोग किसी तरह गुजर- बसर करते हैं । आखिर इतना भेदभाव क्यों ? जबकि हमारे संविधान के अनुच्छेद 14 में सभी के बराबरी की बात कही गई है।
आपको बता दे कि पूरी दुनिया भारत को अपना बाजार इसलिए मानती है कि हमारे यहां जनसंख्या तो है ही ज्यादा लेकिन एक बात और है जो लोग चर्चा नहीं करते अधिकतर वह है हमारे यहां की सत्ता कमीशन पर देश के खनिज संसाधनों की लूट की छूट देने के लिए हमेशा तैयार रहती है । सोच कर देखो आप ही बिहार झारखंड जैसे राज्य जहां लोग मेहनती होने के साथ-साथ यहां खनिज संसाधन प्रचुर मात्रा में फिर भी गरीबी क्यों नहीं खत्म होती है? लोग दूसरे राज्यों और महानगरों में जाकर अपनी रोजी-रोटी के लिए भटकते हैं । इन सब का कारण मुझे लगता है कि घटिया राजनीति ही एकमात्र है ।
आपको जानकर हैरानी होगी सोशल इंडेक्स में भारत इतना नीचे है कि विकसित देशों का रिजेक्टेड माल भी भारत में खप जाता है , और ध्यान से देखें तो हमारे भारत का बाजार इतना अधिक
बिकसित है कि दुनिया के विकसित देश जिन दवाइयों को जानलेवा मानकर अपने देश में पाबंदी लगा चुके हैं वह दवा भी भारत के बाजार में खप जाती है ।
अजीब हमारा लोकतंत्र है क्योंकि एक तरफ विकसित देशों की तर्ज पर सत्ता ,कारपोरेट और बहुराष्ट्रीय कंपनियां काम करने लगी है तो वहीं दूसरी तरफ नागरिकों के हक में आने वाले खनिज संसाधनों की लूट उपभोग के बाद जो बचा खुचा गरीबों को बांटा जाता है, और इसको कल्याणकारी योजना का प्रतीक बना दिया जाता है । और हद तब हो जाता है इस कल्याणकारी योजना में भी माफिया अपना लूटमार करना शुरू कर देते हैं।
आज सभी राजनैतिक दल धनबल ,बाहुबली और भाई भतीजावाद के दम पर ही अपनी पार्टियों को चला रहे हैं। आप ध्यान से देखें तो जो विश्वविद्यालय स्तर की छात्र संघ चुनाव होता है उसमें भी उन्हीं को टिकट दी जाती है जिनके पास यह तीनों शक्तियां हो साथ ही चापलूसी हो इसी प्रकार से सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों का भी हालात है।
इस तरह की व्यवस्था पर आखिर किसका हक रहे इसके लिए ही चुनाव है । जिस पर काबिज होने के लिए लूटतंत्र का रुपया लुटाया जाता है । लेकिन लूटतंत्र के इस लोकतंत्र की जमीन के हालात क्या है? आपको विकास दुबे जैसे राजनैतिक संरक्षण पाए हुए अपराधी से पता चल गया होगा ।
आज बहुत से लोग बहुआयामी गरीबी इंटेक्स के दायरे में आते हैं मतलब की सवाल सिर्फ मेरा गरीबी रेखा से नीचे भर होने का ही नहीं है बल्कि कुपोषित होने ,बीमार होने ,भूखे होकर जीने के कुचक्र में लगभग 50 फ़ीसदी से अधिक वंचित लोगों का है और अब तो इस वैश्विक महामारी के कारण और भी ज्यादा यह संख्या बढ़ेगी। वहीं दूसरी तरफ लोग ओवरन्यूट्रिशन से परेशान है तो एक तरफ मालनूट्रिशन से आखिर इतना भेदभाव क्यों ?
यूएनडीपी यानी संयुक्त राष्ट्र डेवलपमेंट कार्यक्रम चलाने वाली संस्था कहती है कि भारत को आर्थिक मदद दिया जाता है लेकिन मदद का रास्ता भी क्योंकि दिल्ली से होकर गरीब तक जाता है इसीलिए राजनैतिक दल गरीब को रोटी की एवज में सत्ता का चुनावी मेनिफेस्टो दिखाता है, वोट मांगता है और विभिन्न प्रकार के वादे करता है और इसके बावजूद भी इन गरीबों की हालत में कोई सुधार नहीं होता है। अब सवाल मेरा यह है कि क्या दुनिया भर से भारत के गरीबों के लिए जो अलग-अलग कार्यक्रमों के जरिए मदद दिया जाता है वह भी कहीं राजनैतिक पार्टियां तो नहीं हड़प लेते हैं और अगर नहीं हड़पते है तो फिर कहां जाता है?
दुख की बात तो यह है कि गरीबी या गरीबों के लिए काम करने वाली संस्थाएं भी विदेशी मदद के रुपयों को हड़पने में सत्ता का साथ देती। अक्सर सत्ता देखे तो उन्हीं संस्थानों को मान्यता देती है या धन देती है जो रुपयों को हड़पने में राजनैतिक सत्ता के साथ खड़े रहे । जब देश और राज्य में सत्ता पर काबिज होने के लिए राजनेता लोग अरबों रुपए प्रचार प्रसार में लुटाते हैं और चार्टर्ड प्लेन और हेलीकॉप्टर से आसमान में उड़ते हुए नेता कुलांचे मारते रहते हैं आखिर यह सब पैसे कहां से आते हैं ?
आपको एक बात बता देते हैं दुनिया के मानचित्र में अफ्रीका का देश नामीबिया एक ऐसा देश है जहां सबसे ज्यादा भूख है और कल्पना कीजिए आप कि यूएनडीपी रिपोर्ट के मुताबिक नामीबिया एमपीआई मतलब मेरा कहने का है कि मल्टीनेशनल पॉवर्टी इंडेक्स गरीबी स्तर में 0.181है उसी प्रकार मध्य प्रदेश का भी लेवल 0.181 है मतलब की आज जिस अवस्था में नामीबिया है उसी अवस्था में मध्य प्रदेश और भी अन्य राज्यों जैसे बिहार झारखंड उत्तर प्रदेश यह सब बीमारू राज्यों में आते हैं ।
जिस बिहार की सत्ता के लिए नीतीश कुमार बिहार में बहार है कि बात करते हैं लेकिन सच्चाई यह है कि भारत के सबसे निचले पायदान पर और दुनिया के 5 वे सबसे निचले पायदान पर आने वाले साउथ ईस्ट अफ्रीका के मलावाई देश के बराबर है ।
आखिर अपने देश में क्यों जरूरी है जीरो बजट पर चुनाव लड़ने के लिए जनता का दबाव बनाना। उसकी सबसे बड़ी वजह यही लोकतंत्र है जिसके आसरे लोकतंत्र का राग गाया जाता है और हद तो तब हो जाती है जिस केरल के मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर सियासत अंधी हो चली थी । आपको बता दें कि केरल हमारे देश के सबसे विकसित राज्यों में एक हैं जहां सबसे कम गरीबी में यहां का एमपीआई 0.004 है । तो वही सत्ता और सियासत चुनावी लोकतंत्र के नाम पर देश को ही हड़प ले उससे पहले चेत जाइए दोस्तों ।
कवि विक्रम क्रांतिकारी (विक्रम चौरसिया -अंतरराष्ट्रीय चिंतक)
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