आज धरा पे देखो आया कौन?
जिसे देख है सकल धरा मौन।
प्राची प्रदीप्त रवि की किरणों से
है नभ रंजित बहुरंगी वर्णों से
लालिमा की छटा गगन में बिखरी
अरे! लो आ गई उषा सुंदरी!
जिसे देख है सकल धरा मौन।
आज धरा पे देखो आया कौन?
दिनकर किरणों का आँचल फैलाए
प्रत्यूष वातावरण में नमी समाए
सूर्य सजा है भाल, दसों दिशाएँ लाल
पक्षी चहके डाल-डाल, प्रात:काल।
जिसे देख है सकल धरा मौन।
आज धरा पे देखो आया कौन?
चर-अचर सब सोएँ, नदियाँ अलसाईं
धरती विहँसी, फिर कलियाँ मुस्काईं
आ गई फूलों में जब नव तरुणाई
भोर की मृदुल मनोहर बेला आई
जिसे देख है सकल धरा मौन।
आज धरा पे देखो आया कौन?
नवल प्रभात का नवल संदेश लिए
जन-जन के भावों का उद्गार लिए
बुझी हुई आशाएँ जगाओ मन की
कहती हैं हमसे ये किरणें रवि की
जिसे देख है सकल धरा मौन।
आज धरा पे देखो आया कौन?
-शिम्पी गुप्ता
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