जब पानी बिन सूखें वृक्ष और खेत-खलियान
जिस व्यथा के कारण होता किसान परेशान
तब बादल बरसे खिली चेहरे पे मुस्कान
उम्मीद की धारा बन कर आई प्रकृति का वरदान
आशाओं का पानी कभी न सूखने देना मन से
हौंसलों की खनकती आवाज़ गूँजती रहे जन-जन के जीते मन से
आई आज विकट संकट की घड़ी
जानलेवा बन रही लापरवाही बढ़ी
नोबल कोरोना वायरस है वैश्विक महामारी की कड़ी
नैतिक जागरूकता से बच सकती है ज़िन्दगी की लड़ी
घर पर रहकर हम यही लगाते आस
यह जीवन उम्मीदों की ज़िन्दा प्यास
~अतुल पाठक
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