तुम तो निकले वोट बैंक के नेताजी,
महामारी के समय जनता को क्या बचाओगे।
तुम खुद ही आकर देखो,
मजदूर किस तरह सड़कों पर चल रहे हैं।
मजदूरों के पैरों में किस तरह छाल पड़ गए हैं,
अरे चल चलकर मेरे देश के मजदूर जान को लुटा रहे हैं।
मजदूरों की मेहनत से तुम्हारी इमारत खड़ी है,
मजदूरों की मेहनत से ही अर्थव्यवस्था चलती है।
तुम बोलोगे कैसे मजदूरों की बदौलत देश चलती है,
सुन लो मेरी इबारत से,
सांसद भवन मजदूर ही बनाए हैं।
तुम जिस सड़कों पर चलकर,
वोट मांगते सभी के द्वार जाते हो,
मजदूर ही वह सड़क बनाएं हैं।
जब आई मुसीबत मजदूरों पर,
तू घर में बैठकर टीवी टेलीविजन देखते हो।
मुसीबत तो किसी ना किसी तरह चल ही जाएगी,
जब महामारी जाएगी चुनाव आएगा तो हम भी,
तुमको बताएंगे जब मेरी दहलीज पर वोट मांगने आओगे।
तब हम भी खुलकर बोलेंगे बता क्यों आए हो,
मेरी दहलीज पर उस टाइम कुछ नहीं सुनूँगा।
अब नहीं पहनाऊंगा फूलों की माला तुमको
नहीं लूंगा रिश्वत नहीं दूंगा वोट तुमको।
जो जनता की सुनेगी उसी को दूंगा वोट,
तब तो तेरा क्या होगा तुम ही सोचना,
मेरा भी अधिकार मैं खुद ही चुनूंगा अपनी सरकार को।
मो. जमील
अंधराठाढ़ी, मधुबनी (बिहार)
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