यह शाम अकेला कर देती है
नया झमेला कर देती है
तनहाई की बारिश करती
खाली मेला कर देती है
शाम अकेला कर देती है।
मन चंचल भी हो जाता है
दिल निश्चल भी हो जाता है
कुछ भी मुझको समझ न आता
पागल हर पल हो जाता है
पास खुशी की लहरें लाता
दूर ये रेला कर देती है
शाम अकेला कर देती है
आंसू आते उमड़-घुमड़ कर
ज्यों जलधर आते उड़ उड़कर
याद अतीत फिर मुझको आता
किन्तु न देखूँ मैं मुड़ मुड़कर
अनमोल बहुत है शाम नजारा
पर ये धेला कर देती है
शाम अकेला कर देती है
अंदर ही घर के रहता हूं
शाम से यारों मैं डरता हूं
मुझसे शाम का जिक्र न करो
सब से यह मैं तो कहता हूं
मेरे खुशी के सब. लम्हों को
दुख की बेला कर देती है
शाम अकेला कर देती है
शाम अकेला कर देती है
तनहाई की बारिश करती
खाली मेला कर देती है
शाम अकेला कर देती है।
शाम अकेला कर देती है।।।
—-घनश्याम शर्मा
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