आप भी सोच रहे होंगे कि आज अगर हमारा बिवाद चीन के साथ बढ़ता है तो रूस भारत का साथ देगा या चीन का अभी हमारे रक्षा मंत्री जी रूस की तीन दिवसीय यात्रा पर मास्को के रेड स्क्वायर पर होने वाली विक्ट्री डे परेड में हिस्सा लेने के लिए रूस पहुंचे हुए हैं। वैसे तो रक्षा मंत्री जी का इस दौरे का उद्देश्य रूस और भारत के बीच रक्षा खरीदारी को बढ़ाने के लिए कहा जा रहा है और साथ ही रूस के साथ रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करना भी है।
ध्यान से देखें तो भारत और रूस के बीच बहुत ही पुराना ऐतिहासिक संबंध है । देखा गया है कि अगर कभी भारत किसी भी दूसरे देश के साथ युद्ध में उलझा तो सबसे पहले रूस भारत का साथ देता है। वैसे भी रूस और भारत के लोग सांस्कृतिक रूप से भी एक दूसरे के बहुत ही करीब है और हिंदू धर्म रूस में सबसे तेजी से उभरते धर्मों में से वर्तमान में एक है । याद होगा आपको भी की जब 1971 के युद्ध हुआ था उसमें भी रूस ने भारत का भरपूर साथ दिया था और तो और भारत के लिए रूस ने अमेरिका से भी टकरा गया था । जानकर आपको हैरानी होगी कि कई मौकों पर रूस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भी भारत के पक्ष में वीटो रूस ने किया है।
हमने देखा है कि जब भी दो ताकतवार देश आपस में कभी भी उलझते हैं तो पूरी दुनिया की नजर उन पर टिक जाती है , और सभी देश यह देखना चाहते हैं कि दुनिया के बाकी ताकतवर देश किसका साथ देंगे ? वैसे तो अभी समझौता दोनों देशों की तरफ से हुआ है कि हम एक दूसरे का सम्मान करते हुए अपने -अपने सेना को पीछे हटाना चाहते हैं ।लेकिन चीन अपना नापाक हरकत कभी भी दिखा सकता है इसलिए हमें चौकन्ना में रहने की जरूरत है । वैसे भी हम देख रहे हैं चीन का तो अमेरिका से भी टकराव बहुत पहले से चल रहा है कोरोना वायरस और डब्ल्यूएचओ को लेकर इसलिए हम सब जानते हैं कि चीन को लेकर अमेरिका का रूख लेकिन अब सवाल लोगों के मन में यह है कि इस विवाद में रूस का क्या पक्ष होगा ? वैसे भी रूस यह जानता है कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है और चीन में करीब-करीब तानाशाही है । ध्यान से देखें तो भारत का लोकतंत्र ही भारत और रूस के पुराने और घनिष्ठ संबंधों का आधार भी है ।
दूसरी तरफ समस्या यहां यह मुझे दिख रहा है कि अमेरिका के साथ रूस की भी दुश्मनी है और चीन की भी दुश्मनी है और अक्सर कहां जाता भी है कि दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है और चीन और रूस की दोस्ती का भी एक बड़ा कारण है फिर कैसे इस पॉलिटिकल उठापटक से रूस अपने आपको निष्पक्ष रूप से एक तरफ कर पाएगा । आपको याद होगा कि 2017 में जब भारत और चीन के बीच डोकलाम विवाद हुआ था तब चीन ने सबसे पहले इसकी जानकारी जिन लोगों को दी थी उसमें चीन में रूस के राजपूत भी शामिल थे, लेकिन देखा गया इसके बावजूद रूस भारत के खिलाफ कुछ नहीं बोला लेकिन नपा -तुला भाषा का प्रयोग जरूर किया था । अब आपको क्या लगता है रूस किसके साथ है ?
मुझे लगता है कि आज की तारीख में रूस किसी के साथ नहीं है रूस मुझे लगता है अब चाह रहा है कि दुनिया मल्टीपोलर हो जाए यानी दुनिया में शक्तियों के कई ध्रुव हो। इसी कारण से मुझे लगता है कि रूस ने जो चीन और अमेरिका के बीच चल रहे व्यापारिक युद्ध में भी खामोश ही बना रहा है ।
याद रखना बात को कि जब अगर भारत और चीन के बीच तनाव ज्यादा बढ़ा जाएगा या छोटी- मोटी लड़ाई हुई तो मुझे लगता है कि रूस की उपयोगिता बहुत ज्यादा होगी क्योंकि भारत के पास भारी संख्या में रूसी हथियार और मशीनें हैं जिनकी सर्विसिंग और रिपेयर में रूस की बहुत जरूरत होगी हमें इसलिए हमें रूस की बहुत जरूरत है । ।
जो भी हो दोस्तों मुझे लगता है कि मौजूदा सदी एशिया की है। इस धरातल पर लाने के लिए आवश्यकता होगा कि इस महाद्वीप की दो बड़ी शक्तियों चीन और भारत के बीच सब कुछ सही ही रहे। इसके लिए भारत ने प्रयास भी किए हैं, लेकिन चीन की हठधर्मिता और अड़ियल रवैया बनती बात को खराब कर दे रहा है। वैसे भी अब हमें जरूरी है कि चीन की चुनौती का आकलन कर उसके काट तैयार करें ।वैसे तो चीन ने समझौता किया कि हम एक दूसरे के सेना सीमा पर से हटा रहे हैं लेकिन वह कब अपने बातो से बदल जाए कहना मुश्किल है ।
दोस्तों जो अभी स्थिति भारत और चीन के बीच बनी हुई है वह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण और संपूर्ण विश्व व्यवस्था के लिए हानिकारक सिद्ध भविष्य में हो सकती है। क्योंकि शत्रु के साथ युद्ध केवल रणक्षेत्र में और हथियारों से ही नहीं लडा जाता है बल्कि मानस में उसकी मानसिकता को हथियार बनाकर भी लड़ा जाता है ।
कवि विक्रम क्रांतिकारी (विक्रम चौरसिया -अंतरराष्ट्रीय चिंतक)
दिल्ली विश्वविद्यालय /आईएएस अध्येता/मेंटर 9069821319
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