हाँ,हाँ घर जाना है मुझे भी,
पर कैसे जाऊँ प्रवासी जो हूँ?
याद आता है मुझे वो घर अपना,
वो बीते लम्हे,वो बीते पल अपने,
माँ का प्रेममयी ममत्व और,
पिता का स्नेहमयी अपनत्व,
याद आता है मुझे वो घर अपना,
पर कैसे जाऊँ प्रवासी जो हूँ?
हाँ,हाँ घर जाना है मुझे भी,
पर कैसे जाऊँ प्रवासी जो हूँ?
भाई से खूब लड़ना-झगड़ना,
और फिर लड़कर एक हो जाना,
बहन की वो स्नेहमयी बातें,
वो बीते लम्हे,वो बीते पल अपने,
याद आता है मुझे वो घर अपना,
पर कैसे जाऊँ प्रवासी जो हूँ?
हाँ,हाँ घर जाना है मुझे भी,
पर कैसे जाऊँ प्रवासी जो हूँ?
वो दबे एहसासों की कशिश,
वो माता-पिता की परवरिश,
साथ अपने लाई हूँ संस्कार अपने,
अपनों की खुशी के लिए,
अपनों से ही दूर आई हूँ,
वो बीते लम्हे,वो बीते पल,
याद आता है मुझे वो घर अपना,
पर कैसे जाऊँ प्रवासी जो हूँ?
वो बीते लम्हे,वो बीते पल अपने,
याद आता है मुझे वो घर अपना,
पर कैसे जाऊँ प्रवासी जो हूँ?
ज्योति रानी
प्रशिक्षित स्नातक शिक्षिका
के.वि.मुजफ्फरपुर
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