शिव की जटा से,गंगा अवतरित हुई
धरती को शुद्ध करने,जब लायी आयी।।
सुगम सरल कल कल,गंगा की धारा।
महिमा से उत्थान है, भारतवर्ष हमारा।।
है जगत की माता, निर्मल है धारा।
संसार का जीवन तो,इन्ही से उभारा।।
कल कल बहती पावन, शुद्ध हो तन मन।
गंगा के जल बिना,पूरा न होय हवन।।
रोम रोम निखार दे ,पवित्र पावन गंगा।
हरितक्रांति की घूरी,ये सौभाग्य हमारा।।
पडे जहाँ इनके चरण, जीवन उद्धार है।
अंतकाल दो बूँद से, भवसागर पार है।।
आशुतोष
पटना बिहार
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