क्या हो गया है लोगों को अजीबो-गरीब शौक पाल बैठे हैं नशे को भी सम्मान में बड़े शान से पेश किया करते हैं। धुँए में जिन्दगीं ढूँढ़ रहे है लोग जबकि उन्हें नहीं पता कि जिन्दगीं खुद में एक घना धुँआ हुआ करती है। कहते हैं कि बड़े हो गये हैं लोग उम्र में मगर बचपन की वह हठ भरी जिद्द अभी तक जारी है। समझदारी तो इतनी बढ़ गयी है कि लिखा देख लें यदि कि "यह उत्पाद स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है" तो उसे बिना चख लिये नहीं मानते।
अब तो स्वास्थ्य से ज्यादा शान और शौक का महत्व है क्योंकि लोग कहते हैं कि सेहत तो कभी भी बन सकती है पर शान एक बार जो चली जाये तो फिर नहीं बन पाती यह विचार केवल गन्दी लत के लिए ही देखने को मिल रही है अच्छी चीजों में तो देखा-देखी बिल्कुल नहीं चलती।
आज लोग धुँए की कश से उभरते छल्लों में खुद के शौक रूपी पतंग को इतनी ऊँचाई देना चाह रहे हैं कि शायद ही धरातल का स्पर्श कभी नसीब हो। यह धुँआ भी क्या चीज है दोस्तों खुद तो फिजाओं में घुल जाती है हमें कालिख देकर। धुँआ भी क्या चीज है आँख में लगे तो आँख से पानी निकाल देती है और फेफड़े पर छा जाये तो फेफड़ों को जलाने में क्या कोताही बरतेगी? पर मानव यह सब जानकर भी बार-बार उसे गले लगाना चाहता है जिससे हमेशा जान को खतरा होता है। आग की खोज जब हुई थी तो कोई नहीं सोचा होगा कि मानव खुद आग का सेवन करेगा आज स्थिति वह आ गयी है कि कवि कह रहा है "जिन्दगीं को धुँए में उड़ाता चला गया" और लोग खुशी-खुशी इसे अपना रहे हैं।
इस लत और शौक का फायदा बिचौलिये कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में उठा ही रहे हैं। देखा जाता है कि सरकारें राजस्व बढ़ोत्तरी में भी इसका लाभ उठाने में लगी हुई हैं मगर ऐसे में हमारे भविष्य निर्माणकर्ताओं का भविष्य अंधेरे में घिरता जा रहा है। इस पर सरकारों का एक पक्षीय (फायदे का) नजरिया बेहद ही चिंतनीय है और लत में उलझी हमारी युवा व पाश्चात्य पीढ़ी इन सब बातों को दरकिनार कर शानो-शौकत में मदमस्त नशे के रूप में मौत को गले लगाने को आतुर दिख रही है। ऐसे में एक स्वस्थ्य, सुरक्षित और सुंदर राष्ट्र का निर्माण आखिर कहां संभव हो सकता है।
नशे में मदमस्त युवा पीढ़ी अब तो खुद पर गर्व भी करने लगी हैं जब से लॉकडाउन के चलते उसको यह पता चला कि अर्थव्यवस्था में पीयक्कड़ और नशेड़ियों का भरपूर योगदान होता है। अर्थव्यवस्था की गाड़ी जो पटरी से उतर गई थी सबसे पहले शराब तालाबंदी को हटाकर यह बताया गया कि यह उस अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का महत्वपूर्ण जरिया है। जिससे नशेड़ियों का कद और भी बढ़ सा गया। नशे की लत पर प्रतिबंध लगाने के बजाय उसे बढ़ावा देना बहुत ही शर्मनाक रहा।
धुम्रपान की यह लत इस नवीन पीढ़ी को इस कदर लगती जा रही है कि जैसे लगता है कि इसके बिना जीवन बेकार हो। गम और खुशी दोनो ही स्थिति में खुद को धोखा यह कहकर दिया जा रहा है कि दिमाग को संतुलित करने के लिए मै इसका प्रयोग कर रहा हूँ जबकि सच तो यह है कि नशा तो फैशन बन गया है।नशे के हर उत्पाद पर लिखा है कि "यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है" फिर भी हम इसे तेजी से अपना रहे है,
अब तो शायद भगवान ही बचाएं इस बला से!
रचनाकार :- मिथलेश सिंह 'मिलिंद'
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