Monday, June 1, 2020

।।आज हैं निर्जला एकादशी व्रत ।।

 2 जून 2020 को ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष की एकादशी है। ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी के नाम से जाना जाता हैं।ऋषि वेदव्यास जी के अनुसार इस एकादशी को भीमसेन जी द्वारा किये जाने के कारण इसका नाम  भीमसेनी एकादशी भी हैं।इसे पाण्डवी एकादशी भी कहा जाता हैं। शास्त्रों में निर्जला एकादशी का बहुत महत्व बताया गया हैं। उपवास तो बिना अन्न ग्रहण के ही किया  जाता हैं, पर इस व्रत को करने वाले व्रती इस दिन अन्न के साथ-साथ जल पीने का भी त्याग कर उपवास करते हैं।इस व्रत का प्रभाव इतना हैं कि इसे करने मात्रा  से 24 एकादशियों के व्रत के समान फल मिलता है।ज्ञातव्य हो कि  प्रत्येक मास के शुक्ल पक्ष एवं कृष्ण पक्ष दोनों  में एकादशी का व्रत आता हैं।इस प्रकार प्रत्येक वर्ष में 24 एकादशी व्रत होते हैं। वही वर्ष अगर अधिकमास या मलमास से युक्त हो तो दो एकादशी अधिक अर्थात इनकी संख्या 26 होती हैं। निर्जला होने के कारण यह व्रत काफी कठिन होता हैं। एक तो ज्येष्ठ मास की तपती गर्मी होती हैं दूसरा बिना जल ग्रहण के व्रत को करना।पर ईश्वर के भक्तो के अटल इच्छाशक्ति के आगे इसका कोई प्रभाव नहीं होता।

  इस दिन नित्य कर्मो से निवृत होकर स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प करना चाहिए। ध्यान रहे स्नान के जल में गंगा जल जरूर मिला लें। संकल्प करने के बाद विधि-विधान एवं श्रद्धा से श्रीहरि भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए।पूजन के बाद कथा सुनना चाहिए।कथा इस प्रकार हैं:-

बात महाभारत के समय की है। 

जब महर्षि वेदव्यास जी के पास भीमसेन जी पहुँचे।उनहोने गुरुदेव को प्रणाम किया।गुरुदेव से कुशल क्षेम होने के बाद भीम ने पूछा की हे आदरणीय मुनिवर! मेरे परिवार के सभी लोग मेरी पूज्य माँ कुन्ती, भ्राता युधिष्ठर, अर्जुन, नकुल, सहदेव द्रौपदी सभी एकादशी का व्रत करते हैं। वे मुझे भी अन्न त्याग कर इस व्रत को करने के लिए कहते हैं।साथ ही मुझे बताते हैं।इस व्रत को न करने से हमें नरक में जाना होगा।हे महात्मन!मुझे भूखा बिल्कुल भी नहीं रहा जाता।प्रत्येक 15 दिन बाद यह एकादशी व्रत आता हैं।आप मुझे बताएं की इस हाल में मुझे क्या करना चाहिए।मुझे नरक से कैसे छुटकारा मिले?मुझे भी मेरे संबंधियों के साथ स्वर्ग कैसे प्राप्त हो?अभीष्ट फलों की प्राप्ति एवं सौभाग्य का उदय कैसे हो? हे गुरुदेव!आप मेरा मार्गदर्शन करें। भीमसेन के अनुरोध पर महर्षि वेद व्यास जी ने कहा कि हे भीम! ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी का निर्जला हैं। आप इस निर्जला एकादशी का व्रत करें।यह व्रत अकाल मृत्यु का हरण करने वाला हैं।बाकी एकादशियों का व्रत आप नहीं कर पाए तो इसके करने से सम्पूर्ण एकादशी का फल आपको प्राप्त होगा।

पूजन दान के साथ-साथ चांदी या मिट्टी का घड़ा भी दान करें।मीठे जल का प्याऊ लगवाएं।अगर आप फलाहारी हैं तो ध्रुव के प्रथम मास की तपस्या के तुल्य उसके एक-एक दिन के समान आपको फल मिलेगा।यदि आप पवन आहारी रहते है तो ध्रुव के षटवें मास की तपस्या के समान फल प्राप्त होता हैं।

नास्तिक का संग, क्रोध,आदि करना वर्जित हैं।सबको वासुदेव का रूप समझकर नमस्कार करना चाहिए।सत्य बोलना चाहिए।द्वादशी को ब्राह्मण को दक्षिणा आदि देना चाहिए।भोजन कराना चाहिए।उनकी परिक्रमा करना चाहिए।

  कथा श्रवण के पश्चात यथाशक्ति दान करना चाहिए। दान के पश्चात श्रीहरि की आरती करना चाहिए एवं क्षमा प्रार्थना करना चाहिए।पूरे दिन भगवान का स्मरण जाप करना चाहिए।

"ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करना चाहिए। यह मंत्र श्रीमद्भागवत पुराण का सार माना जाता हैं। इसके अलावा "ॐ विष्णवे नमः" मंत्र का भी जाप किया जा सकता हैं। इस दिन विष्णुसहस्रनाम, भगवान विष्णु का हजार नामों से अर्चन भी श्रद्धालु करते हैं। इस प्रकार ही एकादशी की रात को  भी शास्त्रों में सोना वर्जित किया गया हैं।रात्रि में जागरण करने से भगवान प्रसन्न होते हैं। भजन-कीर्तन करते रात बिताकर द्वादशी तिथि को सुबह स्नान एवं श्री हरि के पूजन,दान के पश्चात पारण मुहूर्त में ही पारण करना उचित माना गया हैं।अन्यथा व्रत का फल क्षय माना जाता हैं।जो लोग बिना जल ग्रहण किये इस व्रत को कर पाने में सक्षम नहीं हो पाते हैं वो फलाहार के साथ भी इस व्रत को करते हैं एवं पूजन करते हैं। जो व्रत कर ही न पाए वो  चावल एवं जौ से बने भोज्य पदार्थों का त्याग करें। साथ ही लहसुन,प्याज आदि तामसी भोजन का त्यागकर सच्चे मन से भगवान का पूजन करें।

बताया गया हैं इस व्रत महात्म्य को सुनने मात्र से दिव्य चक्षु खुल जाते हैं।इसलिए इस दिन कथा एवं माहत्म्य सुनना एवं सुनाना दोनों पुण्यप्रद हैं।

 

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