Saturday, May 2, 2020

विश्व हास्य दिवस पर विशेष

बात बेबात हँस लिया करो यार

अब ये तो सही सही नहीं पता कि हर बात पर लोगों का मुखड़ा उखड़ा क्यों रहता है पर आप यकीन मानिए मुझे तो बहुत हँसी आती है।आप पूछोगे कि बिना हँसी की बात के तो हँसी नहीं आती।लो जी ये भी कोई बात हुई मुझे तो इसी बात पर पर हँसी आ रही है कि हँसने के लिए भी हँसी की बात चाहिए।ये तो वही बात हुई कि कोई गौर वर्णा अप्सरा हो और आप कहें कि उसमें अदाएं ही नहीं है।अरे भाई जब गौर वर्ण अप्सरा ही हो गई तो फिर उसकी हर बात में,उसकी चाल में,उसके बोल में,उसके नयनों में अदाएं हो होंगी ही।अब हँसने के लिए हँसी की बात का होना तो बिल्कुल भी जरुरी नहीं जी।अब मुझे ही देख लो मुझे तो अपने आप पर ही हँसी आती है कि आखिर विश्व रचयिता ने मेरा निर्माण ही क्यों किया?मुझे तो दर्पण में अपना मुखड़ा देखकर ही हँसी आ जाती है और सोचता हूँ कि हाय निर्दयी काल!!इतने सुन्दर  मुखड़े को भी तू खा जाएगा फिर दुनिया में रह ही क्या जाएगा?मुझे तो अपनी नादानियों पर भी हँसी आती है कि आखिर मैं ये इतनी सारी नादानियां करता ही क्यों हूँ।कभी-कभी तो मैं सोचता हूँ कि शायद बेमाता ने मुझे नादानियां करने के लिए ही मेरा निर्माण किया है और फिर यह सोचकर ही हँसी आ जाती है कि आखिर निर्माण का निर्माण ही क्यों हुआ?लो जी मुझे तो इस बात पर भी हँसी आ जाती है कि आखिर लोग हँसते क्यों नहीं,कहीं ऐसा तो नहीं कि उनके पेट में गुड़गुड़ हो रही है।मुझे तो बहुत हँसी आती है।कभी-कभी तो अपने आप ही अकेले में लेटा होता हूँ तो तब भी हँसी आ जाती है।शुक्र है ये हँसी कोई हसीना नहीं है वरना तो पता नहीं कौन इसे अपने आगोश में लेकर छोड़ता ही नहीं।मुझे तो अक्सर सार्वजनिक शौचालय में बैठे ठाले भी हँसी आ जाती है कि लोग यहाँ अपना लेखन और वर्तनी दोष फुरसत में सुधारने आते हैं क्या?पता नहीं कैसी-कैसी कारीगरी करते हैं साहब?मुझे तो अपनी जेबों पर भी हंसी आती है कि आखिर जब तुम्हें धन रखना ही नहीं था फिर दर्जी ने तुम्हें लगाया ही क्यों?मुझे तो बात-बात पर हँसी आती है।अब पता नहीं लोगों को क्यों नहीं हँसी आती?कई तो इतने गजब के लोग होते हैं कि जिनको हँसी की बात पर भी हँसी नहीं आती साहब।उनका क्या करें,अब मुझे ही देख लो मुझे तो इस बात पर भी हँसी आ रही है कि आखिर मैं यह हास्य व्यंग्य क्यों लिख रहा हूँ और लिखते-लिखते हँस भी रहा हूँ।अब पता नहीं लोग क्यों नहीं हँसते।मेरा तो हँसते सबसे यहीं कहना है कि हँस लिया करो यार,हँसने की कोई फीस या टैक्स नहीं लगता।कभी बात पर हँस लिया करो तो कभी बिना बात भी हँस लिया करो।चलो अब तो मेरा ये व्यंग्य पढ़कर ही हँस लो यार।वो गाना तो आपने सुना ही होगा कि--हर फ़िक्र को मैं धुएँ में उड़ाता चला गया।हँसो भाई हँसो वरना कहीं ऐसा न हो कि लोग तुम पर हँसने लग जाए।

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