कल रात लॉक डाउन 4.0 की घोषणा के बाद श्री नायडू ने, कोविड 19 संक्रमण द्वारा उठाए गए गभीर वैचारिक और नैतिक प्रश्नों पर एक विस्तृत फेसबुक पोस्ट लिखा जिसमें भावी जीवनशैली पर विमर्श किया गया है। लॉक डाउन 4.0 में पर्याप्त ढील दी गई है। श्री नायडू का विचार है कि जीवन को अलग थलग अकेले नहीं जिया जा सकता, इस संक्रमण ने हमारी आपसी निर्भरता को रेखांकित किया है। उनका कहना है कि " जो चीज कहीं किसी एक व्यक्ति को प्रभावित करती है वो सबको, सभी जगह प्रभावित करेगी, चाहे वह बीमारी हो या अर्थव्यवस्था"।
कोरोना से पूर्व, मानव प्रवृत्ति की चर्चा करते हुए श्री नायडू ने लिखा कि भौतिक सुखों और उपभोग की अंधी दौड़ में मनुष्य अकेला बन गया था। परिवार और समाज उसके लिए बंधन मात्र थे। उसका आत्मविश्वास अभिमान की सीमा तक बढ़ गया था जिसने उसे यकीन दिला दिया था कि दूसरों के जीवन को नजरंदाज करके भी, वह अकेले सिर्फ अपने लिए ही जी सकता है। उन्होंने लिखा है "पहले की महामारियों की तुलना में जीन एडिटिंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, बिग डाटा आदि कहीं बेहतर तकनीकों से लैस आज का मानव भगवान बनने की कोशिश कर रहा था।"
कोरोना के बाद के जीवन पर टिप्पणी करते हुए श्री नायडू ने लिखा है कि खुद के लिए जीने वाले मानव की आत्मकेंद्रित जीवनशैली को इस वायरस ने हिला कर रख दिया है। प्रकृति और अखिल मानवता के साथ जीने की आवश्यकता को उजागर किया है। उन्होंने लिखा है कि इस अदृश्य जीवाणु ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि जीवन बड़ी तेज़ी से बदल भी सकता है। उसने जीवन की अनिश्चितताओं को सामने ला खड़ा किया है।
उपराष्ट्रपति का विचार है कि इस महामारी ने जीवन के अर्थ और उद्देश्य को ले कर सवाल उठाए हैं, सहचर जीव जंतुओं से हमारे रिश्ते कैसे हों, वर्तमान विकास नीति का प्राकृतिक परिवेश तथा समावेशी सामाजिक विकास की अवधारणा पर क्या प्रभाव पड़ रहा है, इस विषय गंभीर नैतिक सवाल उठाए हैं। उन्होंने लिखा है कि " इस वायरस ने समाज में विकास के साथ साथ पनपी गहरी आर्थिक विषमताओं को भी रेखांकित किया है। अनिश्चितताएं अभी भी मनुष्य को घेरे हैं। अनिश्चितता दुश्चिंताओं को जन्म देती है जो मनोवैज्ञानिक समस्याओं को जन्म देती है। इससे बचें कैसे? बचने के लिए शांत रहें, विश्वास रखें और समाज की नई सामान्यता, नए नॉर्मल को स्वीकार करें"
उन्होंने लिखा है कि हर सभ्यता का उद्देश्य मानव जीवन के अवसरों, उसकी संभावनाओं का संरक्षण और संवर्धन करना होता है। श्री नायडू ने लिखा है कि कोरोना सिर्फ व्यक्ति के निजी जीवन के लिए ही नहीं बल्कि सभ्यता के लिए भी चुनौती है। वर्तमान सभ्यता को बचाने के लिए नए मूल्य और मानदंड अपनाने होंगे।
श्री नायडू ने लिखा कि जीवन को अधिक समय तक बांधा नहीं जा सकता। उन्होंने गत रात्रि घोषित लॉक डाउन 4.0 में प्रस्तावित छूट का स्वागत किया। एचआईवी के विरुद्ध वैक्सीन के अभाव में भी, अपनी आदतों में सुधार ला कर लोगों द्वारा सामान्य जीवन जिए जाने का ज़िक्र करते हुए श्री नायडू ने इस वायरस के साथ जीवन जीने की स्थिति में, उसी प्रकार लोगों से अपनी जीवन शैली में बदलव लाने तथा प्रकृति और साथी नागरिकों के प्रति दृष्टिकोण बदलने का आग्रह किया।
श्री नायडू ने कोरोना काल में 12 सूत्री नव नॉर्मल प्रस्तावित किए हैं जैसे - प्रकृति और साथी नागरिकों के साथ सद्भाव पूर्वक रहना, यह समझना कि हमारे जीवन की सुरक्षा परस्पर हम सब पर निर्भर है, हर कदम या गतिविधि का संक्रमण के प्रसार पर क्या प्रभाव पड़ेगा इसका विवेकपूर्ण आंकलन करना, किसी स्थिति का सामना भावावेश में आकर नहीं बल्कि यह विश्वास रख कर करना कि विज्ञान और तकनीकी इसका समाधान ढूंढ ही लेंगे,हमारे व्यवहार में आए अच्छे परिवर्तनों जैसे मास्क पहनना, निजी स्वच्छता, सामाजिक दूरी को बनाए रखना, संक्रमित लोगों को जांच उपचार के लिए प्रेरित करने के लिए उनके विरुद्ध पूर्वाग्रह से बचना, आपने साथी नागरिकों को संक्रमण के लिए दोषी मानने वाले भ्रामक प्रचार से बचना और उसे समाप्त करना, चारों ओर व्याप्त निराशा की जगह हमारी साझा नियति और परस्पर निर्भरता पर विश्वास करना।
उपराष्ट्रपति ने हर वर्ग के मीडिया से भी आग्रह किया कि वे वायरस और बीमारी के बारे में सिर्फ प्रामाणिक और वैज्ञानिक सूचना का ही प्रसार करे। इसे किसी विप्लव या प्रलय के तौर पर न प्रचारित करें।
श्री नायडू ने लोगों से बदली हुई जीवन शैली के साथ सुरक्षित रहने का आह्वान किया।
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