एक खेत में दो पेड़ थे जिनमें से एक पेड़ काफी हरा भरा व मीठे मीठे फलों से लदा हुआ था। जिसमें अनेक तरह के पक्षी अपना घोंसला बनाकर रहते थे। वह पेड़ हमेशा पक्षियों के मधुर कलरव से गुंजायमान रहता था। लेकिन उसके पास पर ही एक दूसरा पेड़ था। जो बिल्कुल सूख और जिसमें हरियाली का कोई नामोनिशान नहीं था।उस पेड़ की एक सुखी डाल पर एक कबूतर बहुत उदास बैठा हुआ था।
एक बार ब्रह्माजी घरती पर घूमने आए।घूमते-घूमते उन्होंने उस सूखे पेड़ पर बैठे उस उदास कबूतर को देखा , तो उन्होंने उसके पास जाकर उससे पूछा कि “तुम इस सूखी डाल पर उदास क्यों बैठे हो ।पास पर ही हरा भरा , मीठे फलों से लदा हुआ पेड़ है ।तुम उस पेड़ पर जाकर क्यों नहीं रहते हो। कबूतर बोला “मेरा घोंसला इसी पेड़ पर है। इसलिए मैं इस पेड़ को छोड़कर नहीं जा सकता “। इस पर ब्रह्माजी ने कबूतर से कहा “तुम अपना घोंसला उसी पेड़ पर बना लो”।
कबूतर ने बड़े ही उदास मुद्रा में ब्रह्मा जी को जवाब दिया “हे प्रभु !! कभी यह पेड़ भी हरा-भरा , फूल पत्तियों व फलों से लदा रहता था ।तब इस पेड़ में भी अनेक पक्षी रहते थे ।और यही पेड़ हम सब पक्षियों के बच्चों का घर भी था और उनका पेट भी भरता था। लेकिन समय बदला। आज इस पेड़ की हालत ऐसी हो गई है ।जैसे ही यह पेड़ सूखने लगा। सारे पक्षी एक-एक कर इस पेड़ को छोड़कर जाने लगे।
लेकिन प्रभु मुझे पता है। इस पेड़ ने मुझे और मेरे बच्चों को भी छांव दी है ।मैं इस पेड़ का उपकार नहीं भूल सकता हूं। इसीलिए मैं इस पेड़ को छोड़कर नहीं जाना चाहता हूं। यह बात सुनकर ब्रह्मा जी बहुत खुश हुए ।उन्होंने कबूतर से कहा “मैं तुम्हारे इस सच्चे प्रेम से प्रसन्न हूं। इस सूखे पेड़ को फिर से हरा भरा कर देता हूं”। और देखते ही देखते वह सूखा पेड़ हरी-भरी पत्तियां , फल फूलों से लद गया । यह देख कबूतर की खुशी का ठिकाना ना रहा
*Moral Of The Story* :-
किसी ने सच ही कहा है किसी भी व्यक्ति द्वारा अपने पर किया गया उपकार कभी नहीं भूलना चाहिए। चाहे परिस्थितियां कैसी भी हों।
जय हो गुरुदेव जी
No comments:
Post a Comment