मानव जीवन है श्रम साधक
कर्मवीरों का है काम यही
जिनके फौलादी हाथों से होते
निर्मित मशीनें रेल जहाज सुई
बनते छोटे लम्बे पुल-पुलिया
कल - कारखाने मकान यहीं ।
श्रम साधक को विश्राम नहीं ।।
धुँआ धूल-धूसरित जगहें हों
झाड़ू-पोछा बर्तन माँज घर-घर
गिट्टी- सीमेंट बालू - पत्थर
सिर लादे भारी ईंट गट्ठर
अनवरत श्रम करते हर कहीं ।
श्रम साधक को विश्राम नहीं ।।
धरती पर्वत मरुथल अम्बर में
रख धीरज पुरूषार्थ दिखाते
दोनों हाथों के श्रम प्रतिफल से
निज जरूरतें सम्पूरित करते
रचते सृजन बहा स्वेद कण
खुश रह विघ्नों से घबराते नहीं
श्रम साधक को विश्राम नहीं ।।
रचना मौलिक
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