दैनिक अयोध्या टाइम्स,रामपुर- किसान कांग्रेस के जिला अध्यक्ष हाजी नाजिश खान ने कहा कि मध्यम वर्ग की स्थिति बहुत खराब हो गई है ना भीड़ में खड़े होकर मांग सकते है, ना लंंगर में खा सकते हैं। ना मदद करने वालों से राशन की पोटली मांग सकते है। जेब में नगदी नही हैं, तनख्वाहें मिली नही यदि कहीं से मिली भी तो टैक्स और 40 % कटौती के बाद खर्च भयानक बढ़ा है लगातार तीसरा माह चल रहा है घर में राशन की खपत बढ़ी है और सब्जी आदि लेने में नगदी खर्च हो गई है। दवाइयों और बाकी छुटपुट खर्चों में सब गुल्लक भी खत्म हो गई।हाजी नाजिश खान ने प्रदेश सरकार की ओर निशाना सादते हुए कहा कि सरकार बनाने-बिगाड़ने में जो वर्ग महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है उसकी स्थिति इस समय सबसे ज़्यादा खराब है बच्चों की फीस, किश्तें, बीमा, फोन, बिजली के बिल, हाउस टैक्स, पानी का बिल आदि का भुगतान लगातार जारी ही है हालांकि यह भी पता है कि बीमे का कोई फायदा नहीं होने वाला है।जिनके बच्चें नौकरी कर भी रहें थे वह भी एक भ्रम था, एक तरह का आई वॉश क्योकि बच्चों का वर्क फ्रॉम होम का भरम वो अपने तथाकथित समाज और रिश्तेदारी में बनाए रखना चाहते हैं। हकीकत यह है कि अधिकांश की नौकरी खत्म हो गई है। मांं-बाप की पेंशन या सस्ती तनख्वाह से घर चल रहे हैं। ऊपर से मदद करने का दिखावा करना ही पड़ रहा है और बल्कि दे भी रहें है काट कसर करके। बस दिक्कत यह है कि वे अपने दर्द, आंसू छुपाकर खाने की डिशेज परोसकर, लूडो खेलकर, ऑन लाइन गप्प करके अपने गम दिल में दबाए बैठे हैं, पर लावा भयानक रूप से जम गया है। घरों में अब एक डेढ़ हफ्ते से ज्यादा का राशन नहींं है। पिछले साल के गेहूं खत्म हो गए हैं। दाल चावल, साबुत अन्न, तेल से लेकर मसाले के डिब्बे अब जवाब दे रहें हैं। मन मे ख़ौफ़, आंखों मे चिंताएं और दिमाग़ में शंकाएं हैं। यदि किसी के पास थोड़ा बहुत काम भी है तो वे करने से डर रहें है कि भुगतान होगा या नही क्योंकि पुराने भुगतान पेंडिंग है और जिनका मिलना अब मुश्किल है!लॉक डाउन खुल भी गया तो बैंक के सेविंग में न्यूनतम जमा राशि भी शेष नही है और अगले छह माह या एक दो साल रुपया आने की उम्मीद नही - अभी तीन से पांच क्विंटल गेहूं के लिए ही दस बारह हजार नगद कहां से आएंगे- यह चिंता घर कर गई है। सब अमीरों-गरीबों के लिए पर हम जैसों के लिए क्या जिनके पास एक बाय एक फुट की जगह नहीं, खेत नहीं,मकान नही ,दुकान नही, कोई उद्योग नहीं और कुछ भी नहीं और सब कुछ निभाकर ले जाना है सामाजिकता के नाम पर - खुद्दारी इतनी है कि अपने जमीर को जिंदा भी रखना है - किसी को कह भी नही सकते कि दस बीस हजार उधार ही दे दो।मरण हमेशा इसी वर्ग का होता है ना नौकरी, ना आरक्षण, ना बीपीएल कार्ड , ना लोन, ना सुविधा और इज्जत के नाम पर सिवाय श्राप और बद्दुआएं मिलती है सबकी और सरकार से तो कोई आशा भी नही कि कभी सोचेगी हमारे बारे में।
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