समाचार पत्रों के पीडीएफ को लेकर यह खबर फैल रही है कि जो व्हाट्सएप समूह समाचार पत्रों के पीडीएफ का आदान-प्रदान करेगा उस पर कार्यवाई की जाएगी आखिर यह किस कानून के तहत और किस कोर्ट के आदेश पर है इसका कुछ भी पता नहीं पता तो बस इतना है कि अपनी सत्ता को बचाने के लिए दूसरे का पर कतरना आखिर कहां का न्याय है। जैसा कल था क्या वैसा आज भी है? नहीं! परिवर्तन ही इस नश्वर संसार का नियम है। आगे बढ़ने का अधिकार सभी को बराबर का है एक नन्हा अंकुर ही भविष्य का पौधा होता है। ऐसे में नवीन और छोटे स्तर के समाचार पत्र का भी अधिकार है कि वह भी अपने उत्कृष्ट कार्य संपादन के आधार पर अपनी स्थिति मजबूत करें। आज के नामी-गिरामी समाचार पत्र बीते हुए दिनों में एक नवीन व निम्न पहुंच वाले ही रहे होंगे जो आज राष्ट्रीय स्तर और अन्तरराष्ट्रीय स्तर के खबरों की मेजबानी कर रहे हैं।
ऐसे में सभी व्हाट्सएप समूहों को चेतावनी देना कहाँ का न्याय है कि वह अपने समूह में समाचार पत्रों के पीडीएफ का आदान-प्रदान ना करें इससे स्तरीय समाचार पत्रों की प्रतिष्ठा घट रही है और समाचार पत्र की हार्ड कॉपी की बिक्री में गिरावट आ रही है। जबकि विरोधात्मक आवाज उठाने वाले यह स्तरीय समाचार पत्र खुद अपने समाचार पत्र का पीडीएफ फ्री में डाउनलोड करने की अनुमति देते हैं।
उनका कहना है कि निम्न स्तरीय समाचार पत्र अपने फ्री पीडीएफ फाइल के द्वारा लोगों में अपनी पकड़ मजबूत कर रहे हैं जिससे इन समाचार पत्रों के फॉलोअर्स में तीव्र वृद्धि देखी जा रही है और स्तरीय समाचार पत्रों के पाठकों की संख्या घट रही है।
ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि अगर समाचार पत्रों का पीडीएफ पाठकों तक पहुँचना ही समस्या की जड़ है तो यह पीडीएफ समाचार एजेंसियां बना ही क्यों रही हैं। आज जब पाठक डिजिटल हो रहा है तो इसमें बुराई क्या है जबकि सरकार खुद चाहती है कि देश डिजिटल बने। और इस समय जबकि कोरोना रूपी वैश्विक महामारी के चलते आज लॉकडाउन का यह माहौल पाठक को समाचार पत्र के पीडीएफ की तरफ खुद खींच रहा है तो ऐसे में यह कहाँ का न्याय है कि समाचार पत्रों के पीडीएफ का निःशुल्क आदान-प्रदान अवैधानिक करार दिया जाए।
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