शनिवार को फिर से भूख और तंगी से बेहाल मजदूरों की राष्ट्रीय राजमार्गों पर मंजिल से पहले ही मौत से मुलाकात हो गई 35 से अधिक प्रवासी मजदूरों की सड़क हादसों में जान चली गई अब तक दोस्तों सैकडो प्रवासी मजदूरों की मौत हो चुकी है इस वैश्विक महामारी कोविड -19 से उपजी वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के कारण नहीं जान गई बल्कि सड़क हादसों में गई है जब विभाजन हुआ देश का तब हम साधन विहीन थे लेकिन इस पलायन में साधन की कोई कमी नहीं है लाखो बसे ट्रेनें खड़ी है गोदामें भरे हैं फिर क्यों प्रवासी मजदूर पैदल भूखे चलने को मजबूर है यह नैतिक जवाबदेही सरकार की है मेरे आत्मीय मित्रों हम जानते हैं कि संविधान का अनुच्छेद -21 देश के सभी नागरिकों को जीवन और आजीविका के अधिकार की गारंटी देता है वही अनुच्छेद 39 (1)(ए ) नागरिकों की आजीविका को सुरक्षित रखने के लिए सरकार से पर्याप्त कदम उठाने की बात करता है और अनुच्छेद- 41 सभी लोगों के काम करने के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए आर्थिक क्षमता के दायरे में सरकार द्वारा प्रभावी प्रावधान किए जाने की बात करता है दोस्तों इस महामारी का सबसे अधिक प्रभाव प्रवासी मजदूर वंचित गरीब तबके एवं मध्यमवर्ग पर पड़ा है ,क्या इनकी सुरक्षा की गारंटी सरकार नहीं ले सकती अगर नहीं ले सकती तो फिर कैसा लोकतंत्र फिर कैसा बराबरी संविधान के अनुच्छेद -14 कहता है कि सब बराबर हैं सभी को बराबरी का अधिकार है लेकिन यहां मुझे दिख रहा है कि इंडिया भारत और हिंदुस्तान इन तीनों को अलग तराजू पर नापा जा रहा है इन तीनों के लिए अलग-अलग कानून है अलग-अलग व्यवस्थाएं हैं अगर जिस राज्य में प्रवासी मजदूर वर्षों तक काम किया विकास के लिए क्या वहां की सरकार का यह नैतिक जिम्मेदारी नहीं थी कि उन प्रवासी मजदूरों को वहीं पर रोककर उनके रहने -खाने का उचित प्रबंधन करके वही रोके और लोक कल्याणकारी निधि से इनको जरूरत के हिसाब से धनराशि देकर जनधन खाते में दिया जाए और अगर मे प्रवासी मजदूर अपने घर जाना ही चाह रहे थे तो जिस प्रकार से बंदे भारत योजना के माध्यम से विदेशों से लोगों को लाया जा रहा है वैसे इनके लिए क्यों नहीं कुछ किया गया इनके लिए ट्रेनें चलाई भी गई तो ऑनलाइन टिकट अच्छी बात है लेकिन क्या यह प्रवासी मजदूर इतने - पढ़े -लिखे हैं क्या जो टिकट ऑनलाइन बुक कर पाएंगे? दोस्तों शहरों में फंसे अनौपचारिक क्षेत्रों में काम कर रहे हैं प्रवासी कामगारों के लिए मानसिक शारीरिक आर्थिक और भावनात्मक रूप से बहुत कठिन समय है यह आए दिन सड़क हादसों में मारे जा रहे हैं प्रवासी श्रमिक इसका नैतिक जिम्मेदारी लोक- कल्याणकारी राज्य की होती है दोस्तों 8.2 करोड़ से अधिक प्रवासी मजदूर हैं देश मे वैसे दोस्तों अब केंद्र और राज्य सरकारों को भी चिंता और डर है कि अगर मजदूर वापस ना आए तो अर्थव्यवस्था का क्या होगा? और अर्थव्यवस्था पटरी पर नहीं लौटी तो राज्य और देश का क्या होगा? जो यह रिवर्स माइग्रेशन हुआ है दोस्तों यही अब चिंता है केंद्र और राज्य को इसीलिए पिछले दिनों कर्नाटक सरकार ने बीच में मजदूरों को ले जाने वाली श्रमिक ट्रेन भी रोकी थी लेकिन यह पहल पहले करके इन प्रवासी मजदूरों के लिए रहने -खाने और जनधन खातों में एक निश्चित राशि डाल दी होती तो शायद यह स्थिति ना होती दोस्तों खेतों में बुवाई का काम शुरू होने वाला है और खेतों में काम करने वाले ज्यादातर मजदूर अपने घर लौट चुके हैं लेकिन किसानों को इसके लिए मजदूर नहीं मिल रहे हैं ऐसे में आने वाले दिनों में बड़ा संकट खेती पर भी आने वाला है जिसका सीधा असर अनाज की पैदावार पर पड़ेगा दोस्तों अगला चैलेंज कोरोना का खतरा गांव तक पहुंचने का है अब तक की बीमारी अधिकतर शहरों में केंद्रित थी इसलिए राज्य सरकारों के लिए यह एक चुनौती हो गई है गांव में फैलने से कैसे रोक देखते हैं . दोस्तों अब मनरेगा का बजट 4 गुना ज्यादा बढ़ाने की जरूरत है और जिस राज्यों में ये मजदूर वापस जा रहे हैं वहां सिर्फ 100 दिन काम देने से काम नहीं चलने वाला है अब इस अवधि को बढ़ाना जरूरी हो गया है और साथ ही मनरेगा को गांव तक सीमित ना रखा जाए बल्कि कुछ शहरों में में इसका विस्तार किया जाए और साथ ही शहरों के लिए मनरेगा जैसा एक शहरी रोजगार गारंटी स्किम की शुरुआत करना अब बहुत जरूरी हो गया है तभी यह रिवर्स माइग्रेशन रोका जा सकेगा और निर्दोष प्रवासी मजदूर और किसान मौत के मुंह से बचेंगे मेरे आत्मीय मित्रों आपके आसपास कोई भी वंचित तबका दिखे जिसकी मदद की जरूरत हो उसे जरूर आप करना यह आप सब से मेरा अनुरोध है "दोस्तों एक दिन सब इसी मिट्टी में मिल जाएंगे सब मिट्टी -मिट्टी हो जाएगा याद रखना यहां से बचकर कोई नहीं जाएगा आगे -पीछे जो भी इस धरती पर आया है एक दिन इस मिट्टी में मिल जाएगा इसलिए जिस प्रकार से आप किसी का मदद कर सकते हैं तो जरूर कीजिए l
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